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इंतजार

वो जानती है कि मैं पढ़ लेता हूँ उसका मन मगर फिर भी वो मेरी बात रखने के लिए अपनी बात को रख देती है उसी मेज़ पर जहाँ वो रखा करती है किताब और करती रहती है मेरा इंतजार उस ठंड वाली रात में मैं उसको उसकी बात समझकर सो जाता हूँ उसी रात जिस रात वो करना चाहती है बेइंतेहा इश्क़, कहना चाहती है बहुत कुछ मेरे बाहों में आकर, वो बताना चाहती है कि मुझे तुमसे बहुत प्यार है मगर कह नही पाती बस हमेशा की तरह "इंतजार" से जता देती है वो अपना निश्छल प्रेम अपना निस्वार्थ प्रेम ।

सुनहरे बालो वाली

वो सुनहरे लंबे बालों वाली लड़की, लंबी कद काठी की , गोरी सी बहुत ही मासूम दिखने वाली, शरारती लड़कीं, वो मेरी किताबो वाली लड़की, बहुत प्यार से दबाए रखती है दिल मे जज़्बात, और उसे जब गढ़ती है पन्नो पर तो मानो जैसे सच मे वो एक एहसास उतार देती , न जाने कितने लोग आह- वाह की सौगात लिए पहुंच जाते है उसके द्वार, वो किसी को न नही कहती सबको अपना समझती अल्फाज़ो जैसा और उसके लिए दिल मे एक अलग सा सम्मान झलकता है, वो जैसी भी है जिस धरती की है,जहाँ से भी आई है सच मानो वो बहुत ही खूबसूरत है सूरत से भी और सिरत से भी,  उसका नाम जो भी हो पर मैं उसे प्यार से  कहता वो मेरी किताबो वाली लड़की है, उसके ख़्वाब हज़ार है मन मे मगर वो कुछ करना एक चाहती है या कभी-कभी वो सब करना चाहती है जिससे उसे वो मकाम मिले, वो खुलकर जीना चाहती है ठीक उसी तितली की तरह और लिपट जाना चाहती है किसी मद्म से, और छोड़ जाना चाहती है अपनी एक अलग पहचान, वो जो भी है, जैसी भी है वो मेरी किताबो वाली लड़की है । वो लिखना तो चाहती है, वो पढना भी चाहती है मगर उसे खुद नही पता कि वो एक खुद किताब है, वो खुद एक नायाब तोहफा है किस

कोई बात हो

यूँ नज़रों का मिल जाना एक गुनाह है तो ये गुनाह हो जाए तो कोई बात हो आकर पास मेरे तुम बैठ जाओ कर जाओ तुम दिल को घर , तो कोई बात हो, तुम करती रहना ये साज-सज्जा नखरे-वखरे जो पहली मुलाकात हो तो कोई बात हो, ठहर जाना तुम उस घर जो सजा पाओ  ज़िन्दगी में तो कोई बात हो, मिलेंगी वो खुशियां-वूशिया जहाँ सजन से दिन-रात  मुलाकात  हो तो कोई बात हो, लगा लेना अपने सपनो में पंख हौसलों के समझ जाओ तुम ये बतिया तो कोई बात हो यूँ ही कट  जाएगी ज़िन्दगी पाकर सजन जैसा सखियां जो तुम पास आकर रुक जाओ तो कोई बात हो... यूँ नज़रों का मिल जाना एक गुनाह है तो ये गुनाह हो जाए तो कोई बात हो.....

लड़कियां जब होती है प्यार में

लड़कियां , मोह्बत में बैठी रहती है नदी किनारे, करती रहती है गुफ्तगू खुद से जब भी चलता रहता उनके मन मे उथल-पुथल कुछ दांतो तले दबा लेती है उंगलियां, कुछ कहती है नदी की धारा से तो कुछ कहती है वहां के वातावरण से फिर कुछ पल संभाल लेती है वहां की मन मे गढ़ती रहती है असीमित प्रेम अपने प्रिये के लिए मंद-मंद मुस्कुराती है लड़कियां ।

गुलाब नही उसका मन है

 जब कोई लड़कीं किसी को देती है गुलाब तो वो सिर्फ गुलाब नही देती है वो देती है  अपना सबसे अजीज चीज वो देती है अपना मन, वो देती है अपना सुख, दुख अपना जीवन वो कर देती है समर्पण खुद को ताकि उसे वो सजा सके, सँवार सके रख सके उसे सहेज कर वो करती है हर रात उसका इंतजार  ताकि वो कर सके कुछ गुफ्तगू  वो बता सके कि मैं क्या हूँ वो कर देती है अपना सब कुछ निछावार अपना एक ख़्वाब के लिए वो हो जाती है उस समय के लिए  या यूं कहुँ वो हो जाती है पूरा का पूरा अपने महबूब का वो निकाल कर रख देती है सबकुछ उसके सामने ताकि वो लिख सके एक नया इतिहास ज़िन्दगी का ।

लड़कियां लिखती है प्रेम

लड़कियां लिखती है प्रेम मन की लड़के लिखते है प्रेम तन की नही लिखते वो जज़्बात मन की लडकिया लिखती है कथा अंतर्मन की नही लिख पाते लड़के चलते रहते है दोनों के मन मे शीत युद्ध पिसता जाता है  कोरा कागज और कलम इन दोनों के बीच बच जाता है तो सिर्फ अंर्तमन का  एहसास ज़िसे पढ़कर लोग समझते है कितना गहरा  है ये प्रेम अगर सच मे कहूँ तो उन्हें ये नही पता लगता कि कितने गहरे डूबकर लिखी होती है  कल्पना होती है सच होती है ये  कोरे कागज पर  स्याही के निशान ।

बनाना है तुम्हे

मैं तुम्हे चूमना चाहता हूँ सर् से पांव तक मैं तुम्हे लिखना चाहता हूं कविता से कहानी तक मैं तुम्हे बनाना चाहता हूं शहर से गाँव तक मैं तुम्हे रंगना चाहता हु प्रेम से इंद्रधनुष तक मैं तुम्हे सींचना चाहता हूं दुख से सुख तक मैं तुम्हारा होना चाहता हूं आज से लेकर अनंत  तक । ©मिन्टू

खत

गर वो खत पढ़ लिया होता लिख दिया होता तुम्हे जवाब देर हो चुकी अब तो बहुत तुम अब, लिखी जाती हो दूसरो के खतों में दूसरों के स्याही से, किसी दूसरे के जज़्बात के साथ और मैं तलाश रहा हूँ तुम्हारी ही जैसी कोई ताकि ज़िंदा रहूँ और लिखता रहूँ ताउम्र कोई कविता, कोई गज़ल या कोई कहानी या फिर लिखूं अंदर दबे जज़्बातों को और बन जाऊं पुरातत्व विभाग। ~~~मिन्टू

कुछ अधूरा सा

कुछ अधूरा सा - खुद में कमी हो तो हमलोग दूसरों को दोषी ठहराने में कोई कसर नही छोड़ते अरे इतना फुरसत भी किसे रहता है जो तुम्हे याद करे और वैसे भी "काम के न काज के दुश्मन अनाज के" न जाने कितने बरस हो गए आजतक तुमने मुझे दिया ही क्या है ? बस जब देखो तब शिकायतों के लड़िया लगा देते हो अरे वो तो  हम है जो आजतक उफ्फ तक नही किए और तुम्हारा क्या है घर से बाहर, बाहर से घर और लाए भी तो मेरे लिए क्या... बस शिकायतों की फुलझड़ियां और वो भी इस दीवाली हमपर  ही .... अरे जाओ भी अब यहाँ से , हमे काम करने दो अच्छा ठीक है, जा रहे है इतना भी न इतराओ अपने काम पर हम है तो इतना सहायता कर भी देते है दूसरा कोई रहता न तो दर्जन भर सुनाता और  कुछ देता भी नही....

फिर तेरी याद

फिर तेरी याद आ गयी रात गुजरते-गुजरते, दिन ढल रही है जज़्बात  संग चलते-चलते, मर्म इतना सा है तू रहती पास हफ्ते-हफ्ते, मैं करता रहता  प्यार आहिस्ते-आहिस्ते, फिर तेरी याद आ गयी रात गुजरते-गुजरते ।। ----मिन्टू Pic- google से

इंतजार

वो नादान लड़कीं, मासूम , भोली सी, आज भी उसी पेड़ की छांव में करती है मेरा इंतजार, आज भी वो उसी उम्मीद में जी रही है कि मेरा साजन आएगा, मगर वक़्त को क्या भरोसा, उसकी आश को भी तोड जाएगा, दिल की साफ, मन की पवित्र चंचल अदाकारा वाली लड़की, अपना सबकुछ छोड़कर बस करती रही प्रकृति के साथ-साथ मेरा इंतजार, उसे क्या पता था किस्मत उसकिंकया रंग लाएगी मगर वो अडिग रही, तन से , मन से, और करती रही मेरा इंतजार उसी पेड़ की छांव में । ~~~मिन्टू

वो पागल लड़की

पागल सी लड़की, कोमल, नाज़ुक सी आँखों से करती थी वो शिकार अपने महबूब का, जुल्फों से फसा लेती थी, करती थी होंठो से घायल लफ़्ज़ों से चलाती थी खंजर अपने महबूब पर वो पागल सी लड़की, जब भी करती थी  सोलहों श्रृंगार मचलने लगते थे सरफिरे आशिक़ मछलियों की तरह, कोमल अदा की अदाकारा थी वो जो सजाते रहती थी शब्दो से दिल की बात कोरे कागज पर, जो लिखा करती थी अपने महबूब के नाम खत, वो पागल सी लड़की, कर देती थी अपनी मुस्कान से वार होते थे कई कायल उनके तो कई मर-मिटने को होते थे तैयार, जब भी पहनती थी हल्की कोई रंग के वस्त्र, भूल जाते थे सब कोई इश्क का मंत्र, सुध-बुध खो जाते थे सब जब देखा करते थे उसे राह में थी वो अपनी शहर की एक कली रहती थी गुमनाम मगर उसके भी होते थे नाम कई के होंठो पर तो कई के दिलो पर वो पागल सी लड़की आज भी किसी के इंतजार में खोती जा रही है अपना वजूद, अपना नाम, अपना काम.....

तन्हा हूँ

जब तुम्हारे दिल मे कुछ नही तो मेरी इतनी फिक्र क्यूँ ? मैं तो आज भी अकेला हुँ अगर तुम चाहो तो मेरा हाथ थाम सकती हो मुझे अपना बना सकती हो बस विश्वास रखना होगा तुम्हे की मैं आज भी अकेला हूँ... मैं ये नही कर रहा कि मैं बहुत अच्छा हूं हो सकता है मेरे बातों से मेरे स्वभाव से तुम्हे प्यार हो जाये मगर ये मत कहना कि इश्क ऐसे नही होता, ये मत कहना कि मिले हुए चार दिन तो हुए है और प्यार  कैसे हो गया ये तो  दो पल की एहसास है जो समझ लो तो प्यार ही प्यार है नही तो कुछ नही.... हाँ मगर इतना ज़रूर कहूंगा कि मैं तुम्हे पसन्द करने लगा हूँ... और मैं आज भी अकेला हु अगर तुम साथ चल सको और मुझपर विश्वास रखो तो मैं सारी उम्र तुम्हे सजा कर रखूंगा, मैं तुम्हे अपना अंग बनाकर रखूंगा, मैं तुम्हे चाहता रहूँगा क्यों कि चोट खाया इंसान वो हर पल के दर्द, प्यार को समझ सकता है अगर जो कभी न समझ पाया तुम्हे  तो बस तुम मुझे भर लेना अपनी बाहों में बना लेना मुझे अपने अज़ीज़, अपना अंग, अपना प्रेम...... क्यों कि मैं आज भी अकेला हूं तन्हा हूँ ।

कुछ न लिखो

कुछ न लिखो, चंद ख़्वाब लिखो, चंद छंद लिखो, चंद अल्फ़ाज़ लिखो, कुछ हाल लिखो, कुछ चाल लिखो, कुछ पुरानी कुछ नई सवाल लिखो,  बस लिखो गुलाल ज़िन्दगी के, कुछ न लिखो, चंद प्यार, चंद तकरार लिखो, चंद सपने , कुछ अपने लिखो, ज़िन्दगी से जुड़े सारे वो पल लिखो, लिखो माँ का आँचल, लिखो पिता का सहारा, लिखो बहना का प्यार, कुछ मुझे लिखो, कुछ घर-परिवार की लिखो कुछ न लिखो चंद ख़्वाब लिखो, चंद छंद लिखो लिखो तुम कुछ घर-परिवार लिखो ।

प्रिये

वो मेरी सुर थी वो मेरी लय थी वो मेरी गीत थी मेरी संगीत थी, वो मेरी नृत्य थी मेरी नृत्यांगना थी, वो छेड़ जाया करती थी अक्सर मुझे मैं बन जाया करता था उसका वाद्ययंत्र, रम जाया करता था उसके संग-संग बनते-बिगड़ते एक नए सुर में पहचान बनती एक नए रंग रूप में ऐसी थी मेरी प्रिये

सादगी वाली लड़की

उसकी आवाज़ मधुर है, वो अदाओं से भरपूर है रहती तो गंगा तट पर है मगर हल्का सा भी न गुरूर है न गुमान है वो सुंदर है, सुशील है सब से अनोखी, अलबेली है, खुद में मस्तमॉली, छरहरी ,नाजूक, छुईमुई सी है उसके जुल्फों जब भी चूमि है उसको गालों को, झलकती है मुस्कान और सादगी, जो भरपूर है ,भोली है मगर सबकी चहेती बोली है वो गंगा तट की छोरी है वो अनोखी अलबेली है उसकी बातों से झलकती मासूमियत, प्यार है वो अपने आँगन की खुशबूदार पेड़ है देती है छांव करती है रखवाली मृदा की वो अनोखी अलबेली वो गंगा तट की छोरी है ।

एक पहाड़न

वो जानती है कि मुझे कैसे मनाना है वो हर बार जीत जाती है मेरी हार से खुद को बदनाम न कर मेरा नाम कर जाती है ये वही सुनहरे बालो वाली लड़की है, जो उस रात मिली थी मुझे पीपल पेड़ के पास, कुछ आस लिए, कुछ ख्याब लिए टूटना जानती है वो म गर जुड़ने के लिए उसे किसी का साथ चाहिए, वो रहना चाहती है सबके साथ मगर उसे उसकी तन्हाई ने रहने नही दिया, मान रखना जानती है वो सबका मगर उसे किसी ने समझा ही नही आजतक, वो वही लड़कीं है पहाडोवाली जो जुगनुओं सी रात भर जगी रहती है मगर आंखों में टिमटिमाते तारो की झलक की जगह मोतियों जैसी बूंद रहती है पानी की, ये वही कोमल कली है, खुशबूओं से भरी, गुलमोहर सी चमक वाली, महफ़िल लूट ले जाने वाली, खुले मन की,  स्वतंत्र विचार की, पहाडोवाली लड़कीं न जाने कौन सी मिट्टी की बनी है ये शायद कुछ अंश है चट्टानों वाली, नमी है , हरियाली है, ठंडक है इसकी आंखों में, मगर जैसी भी है , है तो हिम्मत वाली क्यों कि ये वही लड़कीं है पहाड़ोवाली पहाड़ोवाली.....

झुमके वाली लड़की

उसके बाल बिखरे थे, माथे पर बिंदी कानों पे झुमके थे, गाल मख़मली सी, होंठो पर हल्की मुस्कान थी कत्थई साड़ी में जब वो राह चल रही थी गुलाबो के पत्ते बिखेरते हुए, लटक झटक कर वो बहुत खूबसूरत लग रही थी पाँव में पायल, चाल में हल्की शरारत लेकर जब वो ठुमक-ठुमक चल रही थी, मेरी आँखें थोड़ी अड़ गयी थी उसपर मैं हो चला दीवाना था उसका शायद वो मेरे शहर जैसी ही थी सुंदर, स्वच्छ, निर्मल, पवित्र वो मेरी झुमके वाली थी.. जब भी बिखेरती थी जलवा अपने अल्फाज़ो से न जाने कितने आह-वाह की तान छेड़ जाते थे, कई चुरा लेते थे उसके अल्फ़ाज़ तो कई उसके राह कदम पर चल पड़ते थे जो भी थी वो जैसी भी थी वो मेरी झुमके वाली थी वो मेरी झुमके वाली थी ।
जिनके अल्फ़ाज़ इतने सुंदर हो सोचो ज़रा  वो दिल की कितनी सुंदर होगी , ।मानो कल्पनाओं से ही जी भर उठता हो, और एक नए राह में जाने के लिए उत्सुक हो जाता हो मन, उसकी तलाश में, उसे पढ़ने के लिए, उसको अपना बनाने के लिए, सब कुछ खोकर सिर्फ उसके ख्याल में डूब जाना ही तो इश्क़ की पहली सीढ़ी है और फिर उसका इस तरह से अल्फाज़ो का तराना छेड़ना मानो दिल मे कोई संगीत बज जाने के जैसा ही तो है, और इश्क और तान जहाँ न छेड़े जाए भला वाला इश्क़ कैसे हो सकता है, मेरे लिए वो तो संपूर्ण संगीत की देवी लगती है सुर वही, अंदाज़ वही, अल्फ़ाज़ तो ऐसे जैसे मानो की कोई मोहिनी हो, और फिर उसका न होना ये अपने आप मे थोड़ा पाप करने जैसा ही तो है ।

गाँव प्रेम

यूँ ढूंढने से क्या मिलेगा साहिबा जब पूरा शहर ही ईट का हो, ज़रा घूम आओ वो गाँव जहाँ पूरा घर मिट्टी का हो, तुम पाओगे वो संस्कार, वो प्यार तुम ढल जाओगे उस आकार, फिर बनेगी तुम्हारी मिट्टी सी सौन्धी खुश्बू वाली इश्क़ की कहानी, इश्क़ की खुश्बू , जो हर मौसम आबाद रहेगी, महक उठेगी बारिश की बूंदों से जब पड़ेगी, इश्क़ की मिट्टी से पूरा गांव महक उठेगा, और करता रहेगा सदा के लिए इश्क़ सनम से । ~~~~मिन्टू

ठहर सको

अभी थोड़ा पीछे गया हूं, जो साथ चल सको तो ठहरो अभी थोड़ा वक्त लगेगा तुम तक आने में, जो तुम ठहर सको तो ठहरो वक़्त साथ दे रहा कभी कभी, तुम जीवन भर साथ दे सको तो ठहरो मेरा प्रेम तो तुम तक ही सीमित है, जो तुम अनंत तक चल सको तो ठहरो आशियाना बनाएंगे कविताओं की, जो तुम कविता बन सको तो ठहरो कोई इल्ज़ाम लग जाये मुझपर, जो तुम संभाल सकोगी तो ठहरो साथ रहेगा सदैव मेरा, जो तुम खेवइया बन सको तो ठहरो अभी थोड़ा वक्त लगेगा तुम तक आने में, जो तुम ठहर सको तो ठहरो अभी थोड़ा पीछे गया हूं, जो साथ चल सको तो ठहरो।।

अकेलापन

तुम क्यूँ रहते हो इतना दर्द मे ?  सिर्फ इसलिए न कि इश्क़ कर बैठते हो सबसे, अल्फाज़ो से, कविताओं से, उसकी लिखी जज़्बातों से.... तो सुन लो तुम अकेले आये थे अकेले ही जाओगे वैसे भी तुम आज अकेले ही हो आज पहली बार एहसास हो रहा तुम्हरा( माँ और पापा), पता नही जब तुम थी तो मैं बिखरने से नही डरता था, नही डरता था टूटने से मगर आज फिर से टूट गया , बिखर गया जानती हो, तुम्हारे होने से मुझे एक ऊर्जा मिलती थी मगर अब मैं अब खुद की ही ऊर्जा में जलने लगा हुँ, हो सके तो संभाल लो मुझे उस ताप में जलने से तुम सुन रही हो न माँ.....😢😢😢 ~~~मिन्टू

मेरा प्रेम

वो लिखती है बहुत कमाल , निकाल रख देती है दिल पन्नो पर, मजबूर कर देती है पढ़ने को, वो बहुत लाजवाब है वो नायाब तोहफा है मेरे लिए, मेरी नही है तो क्या हुआ जिसकी भी है वो किसी कोहिनूर से कम नही क्यूँ की वो लिखती है बहुत कमाल, निकाल रख देती है दिल पन्नो पर मैं हर बार कायल हो जाता हुँ उसकी कलम का, मैं कायल हो जाता हूँ उसके अल्फ़ाजो से पिरोए माला का, मैं डूब जाता हूं उसकी लेखनी में, क्यूँ की वो है बहुत कमाल, मेरी नही है तो क्या हुआ जिसकी भी है वो है बहुत लाजवाब, वो है कोहिनूर वो है मेरा प्यार वो है नायाब तोहफा मेरी ज़िंदगी का, मैं संभाल कर रखना चाहता हूं उसे किसी म्यूजियम में रहते है जैसे अज़ीज़, नायाब तोहफे कोई इतिहास जैसा सजा रखा होता, क्यों कि वो भी तो मेरे लिए नायाब है, उसका प्यार मेरे लिए तोहफा । ~~~मिन्टू

कभी बन न सका

भावनाओ में बह जाता हूँ लेकिन कभी नदी न हो सका, गुस्सा हो जाता हूं मगर कभी पत्थर न हो सका, टूट जाता हूँ मगर कभी काँच न हो सका, बिखर जाता हूं लेकिन कभी किसी के  राहों का फूल न हो सका, सिमट जाता हूँ मगर कभी पन्ना न हो सका , लिख पाता हूँ लेकिन कभी कलम न हो सका । ~~~~मिन्टू

मेरी राह

तुम चलती रही उस राह और मैं कब तेरी राह का राहगीर हो गया पता ही नही चला, तेरी बिखरती मुस्कान को समेटते रहा मगर कब रात हो गयी पता ही नही चला, चांदनी रात में तुम और खूबसूरत  लगने लगी तुम्हें देखते रहे रात के परहेदार और मैं कब तेरा काजल होता गया पता ही नही चला, तुम चलती रही उस राह और मैं कब तेरी राह का राहगीर हो गया पता ही नही चला । ~~~मिन्टू

शिकायतें

आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे एक दूसरे पर, गर दिल मे क्या है एक दूसरे के, ये जानने की कोशिश नही की कभी बिछड़ते गए समय के साथ-साथ, टूटते-बिखरते , हालात बिगड़ते, अपना अजीज खोया, बिलखते रहे, इंतज़ार करते रहे, और आज तुम फिर याद आ गए, और छलक आए आँसू इन आँखों से जिसमे तुम कभी ख़्वाब देखा करती थी ।

उड़ान

उड़ान देखने आया हुँ आसमान तक कि जमीन से, क्या ज़िन्दगी की उड़ान भी ऐसी ही है जैसे इस वायुयान की या फिर पक्षियों सी , क्या तुम बता सकते हो तकदीर के लेखक ? क्या तुम उड़ना सीखा सकते हो सफर के राहगीर ? या मैं भी वैसे ही वापस लौट जाऊँगा दाने चुंग-चुंग  कर या कोई इतिहास रच जाऊंगा लड़-लड़ कर, क्या तुम साथ दोगे मेरे जन्मदाता उड़ान भरने में मेरी या तुम भी वही छोड़ जाओगे जहाँ से मुझे उड़ान भरनी है ? ~~~मिन्टू

टूटते ख़्वाब

तुम्हारी तलाश में भटकता रहा राह गुजर बनकर, हर तकलीफ, हर दर्द से अंजान होकर, मिलो तक का सफर तय कर आया  पास तेरे, कई राते बीती है संग , कुछ ख्यालों के कुछ उम्मीदों के तो कुछ विश्वास के साथ, न जाने ये अल्फ़ाज़ भी आज दगा दे रहे है तुमसे मिलने के बाद हम तन्हा , अकेले से हो गए, क्यूँ ये वही प्यार है न जो तुम पहले किया करती थी ? क्यूँ आज ठोकर मार जला रही हो प्यार को इस जेठ की दोपहर की तरह, आज भी इतने तकलीफ देकर तुम्हे खुशियों से भेंट होती है न तो ठीक है मैं भी टूटकर बिखर जाऊँगा टूटे कांच के तरह, चूर चूर हो जाऊंगा , बिछ जाऊंगा तेरी राह में उस टूटे फूल की तरह, तब तो तुम्हे जाकर मुझपर विश्वास होगा न की मेरा प्यार भी आज वैसा ही है जो पहले हुआ करता था । बोलो तो कुछ.....

नदी जैसी तुम

जब कोई नदी जैसा मिलता है न,  मन करता  उसके साथ-साथ बहता जाऊ, बहता जाऊं जहाँ-जहाँ वो बहती है, टकराता जाऊ उन चट्टानों से भी, छूता जाऊ उस धरती को भी बस बहता जाऊ  उसके संग-संग । ~~मिन्टू Pic- अमित शाह(fb)

कड़ी मेहनत

नंगे पांव , पक्की सड़क, जेठ की कड़क धूप ज़िन्दगी भी कुछ इस तरह से  हो गयी है , तपती , झुलसती हुई । मगर इतना तो पता है ''जो तपेगा वो बनेगा, वही निखरेगा भी '' गर्म लोहा को जैसा रूप दे दो वो उसमें ढल जायेगा / ढल जाता भी है उसी तरह ज़िन्दगी गर्म हो रही है और  वो भी ढलेगी अपने नक्शा पर, अपने आकार में, अपने रंग में, अपने रूप में, निखरेगी संवरेगी एक दिन फिर से जानी जायगी उसी नाम से एक अलग पहचान के साथ । ~~~मिन्टू

यारी

ये जो रंगत है, ये जो संगत है ये तो तुम्हारे(मुस्कान) से है, तुम(किस्मत) कितना ज़ोर लगा लो, ये जो मुस्कान है, तुम सिर्फ कुछ पल के लिए ही रोक सकते हो मगर जानते हो समय और वक़्त सबका है, मुस्कान तो रहेगा जबतक रहेगी ये रंगत ये संगत ये जो यारी है बरसो पुरानी है तुम्हरे बिगड़ने से कुछ नही होगा कुछ देर अलग कर सकते हो मगर हम तो आएंगे नए रूप, नए रंग में, उस समय वक़्त भी मेरा होगा और वार भी, मुस्कान से रहेगी ये रंगत ये संगत ~~~~मिन्टू

सोच- गली की

मैं निकला था गलियों में पहले जैसा दौर लाने को, मगर बदनामियों के जंजीर ने मेरे पैर जकड़ लिए, सोचा समझा दु उन्हें , हालाते-ए-मंजर शहर की मगर सोचें-ए-परिंदे उनके उड़ते चले गए, ऐसा नही की वो नासमझ है मगर वो नासमझी के शिकार होते चले गए । ~~मिन्टू

बिखरते उम्मीद

उम्मीदों की गांठ बाँधे, मंज़िल को चल दिये साधे, टूटता , बिखरता, तड़पता हुआ फरेब की गलियों से होता पहुंचा हुँ तुम्हारे पास, और तुम कहती हो तुम किसी काम से नही । तमाम उम्र, खुद को झोंक दिया इश्क़ की भट्टी में, घूमता रहा तेरे इर्द-गिर्द तितलियों की तरह, और तुम कहती हो किसी काम के नही । कभी जो तुम्हे अकेला छोड़ गए थे सब बस सहारा बना था मैं , अजनबी होकर भी अपना माना था तुम्हें और तुम कहती हो किसी काम के नही । ~~मिन्टू

राहें - ज़िन्दगी की

कभी टूटते तो कभी जूझते हालातो से, कभी झड़ते तो कभी बिखरते उम्मीदों से, सीखा है बहुत कुछ इन सब राहों से, क्या कभी तुम भी आओगी इन राहों पर अपने कोमल पाँव लेकर ? तुम्हारे लिए भी तो गया हुँ इन राहों से आँसुओ के साथ, टूटते जज़्बातों के साथ बदनामियों  के साथ... क्या कभी तुम भी आओगी इन राहों पर अपने कोमल पाँव लेकर ? नाउम्मीदी से , नफ़रतों से , सुनापन से गहरा नाता रहा है, जो इन राहों को सजाए रखता है, क्या कभी तुम भी आओगी इन राहों पर अपने कोमल पाँव लेकर ? ~~~मिन्टू

शहर की ओर

मिट्टी की गलियों से होकर संक्रिर्ण पक्की गलियों तक जाना है जिसे लोग 'फर्श से अर्श' तक के नाम से जाना है, बाधाएं आएंगी  टांगे खीची जाएगी, मगर कछुए की चाल ही सही मुझे मिट्टी की गलियों से होकर संक्रिर्ण पक्की गलियों तक जाना है । ~~~~मिन्टू

शहर में गांव

ये गांव की दौलत आज शहरों में घुमक्कड़ी कर रही है लोग कहते है हमारा गांव मिट रहा है गांव के बचपन की दौलत समेटे हुए,  शहरों में उसको लुटाना कितना अच्छा होता है ना , जो मन मे दबाए इच्छा को आज निकलते देख रहा हूं जो शर्म से अंदर दफ़्न ख्वाइश है, उसे रोड पर उतरते देख रहा हूँ जो कभी गांव में खेला करता था वो ख़्वाब आज शहर में देख रहा हूँ तो ये तो अच्छा ही है ना, देखो न , ये मासूमियत को क्या पता कि ये बैंगलोर की सड़कों पर गांव के रंग बिखेर रहा है, कितनों की यादें ताज़ा कर रहा है सबसे अलग, मग्न होकर निकल रहा है ये तो अच्छा है ना गांव की दौलत शहरों में घुम्मकड़ी कर रही है। ~~~मिन्टू Pic- sarita sail

तेरी ओर

न जाने क्यूँ न चाहते हुए भी खिंचा चला आ रहा तेरी ओर, अपनी मंज़िल से भटकता हुआ, ठोकर खाता हुआ, कुछ अल्फ़ाज़ निकालते हुए, तो कुछ रचना करते कविताओं की जो अक्सर तेरे होने का सवाल छोड़ जाता है । ~~मिन्टू

माँ प्रेम 5

-तुम छोड़ गई माँ उस आँगन में,  जिसे  सजाया था, जिसे सींचा था अपने कर्मो से, अपने बलिदान से, अपने अश्को से, और कह गयी थी मैं न रहूं तो जीना सीख लेना वर्तमान के हालतों में कुछ सीख लेना हुनर वर्तमान के हालातों में

माँ प्रेम 4

आज भी उस बंधन में बंधा हूँ माँ मोह के बंधन में जो तुमसे है जो मेरे इश्क़ से है टूटता भी हूँ उन यादों के बीच जुड़ता भी हूँ तुम्हरे उम्मीदों के साथ देखो न माँ आज भी बंधा हूँ मैं उस बंधन में मोह के बंधन में ।

वेक उप(up)

मैं उठता हूँ तेरे ख्यालो से तेरे सीख से तेरे चाय से मैं उठता हूँ तेरे संस्कार से तेरे आवाज़ से तेरे प्यार से मैं उठता हूँ अपने माँ से उसके त्याग से उसके बलिदान से

देश भक्ति

धरती के रंग में रंग गए  जो , वो सिंह, सुख और राज थे । तीनो ने जो कर दिखाया लाज बचाई माँ की,  हँसी खुशी फांसी चढ़ गए जो  वो धरती के  लाल थे । रंग गए जो भक्ति के रंग में  सिंह , सुख और राज थे।

प्यासा हूँ

इश्क़ का तो पता नही मगर इश्क़ की तलाश में भटकता राही हूँ, हर किसी से मिल जाता हूँ इश्क़ हूँ फरेबी नहीं, राही इश्क़ से जानिए या इश्क़ से बस प्यासा हूँ प्यासा हूँ प्यास हूँ

तुम तक

तुम्हारी नामौजूदगी में हमने साहित्य को चुन लिया, अब तो इसी से हर बाते होती है, शिकवे, गिले, और इश्क़ भी, मगर जानती हो, इस तक पहुँचने के लिए भी न मुझे तुमसे होकर गुजरना ही पड़ता है, और मेरा इश्क़ हर रोज़ जवां हो उठता  है।

त्याग

बाबा जो ऐसे देखन मैं रोज़ पढने को जाई उसे कितनी पीड़ा सही ये एहसास मोहे रास न आयी, मैं पढ़ के जग नाम कमाऊ बाबा ये आश लगायी उसे कितनी पीड़ा सही ये एहसास मोहे रास न आयी।

चुपके से

अच्छा सुनो ये जो तुम चुपके चुपके मेरे वॉल पढते हो न इश्क़ की पहली सीढ़ी है थोड़ा सम्भल कर चढ़ना कही गिर गए न तो ..... तो क्या... तो मैं भी गिर जाऊंगी... समझे तुम... और हां सुनो.. जब एक बार आ जाओगे न तो जाना नही छोड़ कर.... वैसे भी सब चले जाते है ...... अगर तुम गए न तो मेरी साँसे भी लेते जाना ... समझे तुम...

सच

ये जो तुम कहते हो न कि मेरी उम्र बढ़ रही है मैं आगे बढ़ रहा हूं मगर सच तो ये है कि तुम मौत की ओर जा रहे हो धीरे धीरे कुछ दर्द लेकर तो कुछ मीठा दर्द लेकर तुम तो आज भी सन्देह में जी रहे हो सत्य से जिस दिन अवगत हो गए न तुम उस दिन से ये मोह, माया त्याग कर सिर्फ प्रेम करोगे प्रकृति से।

गिरना

क्यूँ शोहरत के शाख से ही क्यों नज़रों से भी तो गिरते है लोग चरित्र से भी तो गिरते है मगर इनका गिरना , गिरना नही होता क्या ? चढ़ने के लिए गिरते ही है लोग अब धीरे से हो या तेज़ी से शायद इसमें थोड़ी बहुत ठहराव आ जाये तो शायद बच सकते है शोहरत शाख से भी और नज़रों से भी

रचना काव्य की

तुम खुद एक काव्य हो और काव्य की रचना करना कितना अच्छा होता है न, न जाने कितने सवालों के घेरो से तुम्हें होकर जाना होता सबका ख्याल रखना होता , खुद का भी और काव्य का भी देखो तो कितना सुंदर लगता जब कोई काव्या, एक काव्य के रचना करती है तो मानो जैसे धरती पर चांद उत्तर आया हो अच्छा सुनो, तुम न ऐस ही लिखते रहना रचना करते रहना सबकी , अपनी और मेरी भी । ये जो शब्दों से पिरोकर तुम एक माला बनाती हो न वो अपने आप मे ही एक अनूठा रचना होती है और इस रचना को पढ़कर न जाने कितने लोग दोनों के दीवाने हो जाते है,तुम ऐसे ही रचते रहना, गढ़ते रहना नई नई रचनाओ को अपने अंदर और फिर एक नई काव्य की रचना करना। ठीक है न ।

आवारगी

आवारगी की भी हद थी न तो अपना जाना न पराया जिसने सिखाया था चलना आज उसी की कर बैठा अवहेलना मन की चेतना कही मर मिटी है उसकी तभी तो पल पल आवारगी में वो सब भूल बैठा है कौन अपना कौन पराया

बातों का सिलसिला

बातों का सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा जबतक सफर में रहूँगा धीरे-धीरे आहिस्ता-आहिस्ता तेरे करीब आकर तुझसे बहुत कुछ कहूँगा जबतक......... कबतक दूर जाओगे मुझसे , तेरी बातें तेरी ख़्वाब के साथ आता जाता रहूँगा जबतक ........ नदी की धार जैसी, झरनों की धार जैसी तुम्हे छूता हुआ आता जाता रहूँगा जबतक सफर में रहूँगा

सिगरेट जैसी तुम

मैं किसी सिगरेट सा, तुम किसी धुंआ सी मैं तुझको पीता गया तू कुछ उड़ी कुछ  अंदर ही अंदर गलाते गयी मैं पीता रहा मैं पीता रहा और देख मेरी क्या हालात हो गयी। तू जीते रही मैं मरता गया..... ~~~मिन्टू

जाने के बाद

तुम्हारे जाने के बाद मैं तो हर रोज़ बनता बिगड़ता गया खिलता गया, मुरझाता गया टूटता गया, बिखरता गया तुम्हारे जाने के बाद मैं तो हर रोज़ बनता बिगड़ता गया मगर न आजतक बन पाया न बिगड़ पाया और देखो न आज भी उसी राह पर खड़ा हूँ... बनने और बिगड़ने के लिए।।।।

इज़ाज़त

बैठे है हम वहाँ, जहाँ तेरी अनुमति की ज़रूरत है अगर दे सको कुछ देर और ठहरने की इजाज़त तो हम कुछ कलाकृति प्रस्तुत करेगें, कुछ तस्वीर बनेगी मेरी कुछ तस्वीर बनेगी तेरी दो अधूरे तस्वीर को पूरा करने की स्वीकृति तो दो जैसे शिव और पार्वती की बनी थी अंतर्मन से, पवित्र और पाक।

काव्यांजलि

प्रेम चलते चलते कविता के पास आई, कविता उदास सी बैठी कहानी के पास गई हुआ कुछ यूं उन्हें पसंद न आई कोई गाना तो वो बच्चों संग रंग में रंग गयी तन से न थकी , पर मन से थक गई उसे मिला एक ख्याब जो हमेशा लिपटा रहता था चंदन के साथ और चंदन की गमक इतनी तेज उसके पास और भी लोग आये और हुई फिर एक काव्य की रचना जिसे हम काव्यांजलि के नाम से जानते है

सोच तुम तक

सुना है,        वो बहुत खूबसूरत है, संगमरमर जैसी तराशी गयी है उसपर नक्काशी... अगर मैं ये कहूँ की वो नायाब तोहफा मैं हु तो? चल झूठी..... और फिर उसने अपने बदन पर लगे चोट दिखाए... अब वो आज भी स्तब्ध है, और उसे उसी तरह चाहने लगा.. पवित्र गंगा की तरह निर्मल और स्वच्छ भाव से ।

माँ प्रेम 3

माँ आमों की बगीया में कभी खिलाया करती है आज खिलाने की मेरी बारी है, घर का लाडला  हूँ और सफ़र करता भी हूँ क्यों कि हिम्मत जारी है, उन गलियों में लड़ते झगड़ते जब भी घर आया करता था, तुम खड़ी रहती थी, आज खड़े रहने की मेरी बारी है, पल पल अपने अश्रु से भिगोए तुमने आँचल है, आज उस लोर को पोछने की मेरी बारी है, ममता हर बार छलकाती थी जो उसपर प्यार बरसाने की अब मेरी बारी है, माँ आमों की बगीया में कभी खिलाया करती है आज खिलाने की मेरी बारी है । ~~मिन्टू🙏🏻😭

चयन

चयन,  उम्र के साथ बदलती गई, बढ़ती गई दूरियां तो नज़दीक आती गई  मजबूरियां, सच से टूटता गया नाता तो झूठ से जुड़ता गया, चेहरा मासूमियत पर मिटती थी जो अब दिखावे  पर आ रुकती है चयन, उम्र के साथ बदलती गई । ~~~मिन्टू

उम्र बीते

अब बीते, तब बीते, अबके बरस जब बीते, उन यादों के गलियों से होकर ये उम्र बीते, मीत मिले , जीत मिले, वो संगीत मिले, उस लय उस ताल से मनप्रीत मिले । ~~मिन्टू

ज़िन्दगी- एक दौड़

जिंदगी की दौड़ में कुछ आगे आये तो कुछ पीछे छोड़ आये रिश्ते बस अब तो हमेशा कुछ पाने की ललक रहती है शायद फिर से जीरो की ओर बढ़ने लगते धीरे धीरे... और तरक्की करवाते है किसी और कि ज़िन्दगी की या फिर यूँ कहे उन्हें भी जीरो से उठाकर फिर से जीरो पर पहुंचाने की एक नाकामयाब कोशिश करते है।

रचना तुम्हारी

वो लठ थी वो हठ थी वो मेरे मन की मठ थी मठ में रहता था उसका प्रेम, उसका जीवन रस, मठ में रहता था एक योगी जिसको प्रेम था उस मठ पर राज करती राजकुमारी से धीरे धीरे ये बढ़ता गया निरंतर बिना स्वार्थ के अनंत तक और मन के मठ  में एक विशालकाय रूप बन बैठा था उसकी हठ , उसकी लत वो मन की मठ.....

दोस्ती का रंग

जब देखना हो बता देना पास से गुजर जाऊंगा तेरे हवा के साथ साथ कुछ खुश्बू बिखेरता हुआ चूमता हुआ गुजर जाऊंगा घर से तेरे.....

प्रेम ओम

जो मुझे पसंद है वो कभी गुनगुनाओ तो सही कोई बात और हो तो बताओ तो सही तेरे उस श्रृंगार से अक्सर दूर ही रह हूँ जब पास आऊं तो वो श्रृंगार करके दिखाओ तो सही ।

माता का द्वार

आज दर पर गया था तेरे कोई मुराद नही थी गर कभी हुई तो क्या पूरा कर पाओगे, माना कि कई खामियां है मुझ में मगर क्या पूरा कर पाओगे, कई गलतियां हुई होगी अभीतक के जीवन के सफर में मगर क्या कभी क्षमा कर पाओगे, ???

कल्पना- मन की

मन एक समुंदर है जहाँ उथल-पुथल होते रहती है, सोच की धारा बहते रहती है, कभी तेज़ तो कभी धीमी रफ्तार पकड़े हुए, एक दूसरे को बहाते हुए एक जगह से दूसरे जगह पहुँचते हुए, किसी तरह एकांत या स्थिर होती है और फिर एक नए सैलाब के तलाश में रहती है।

रिश्ते

बदलते रिश्तों के डोर , बदलते सोच का बागडोर, कही ये भी तो मौसम की ही तरह है न, देखो न बदलने के साथ साथ पीछे छोड़ते जाते है अनमोल तोहफे ज़िन्दगी का और तो और जोड़ते है नए रिश्ते वो भी चंद महीनों के लिये तो ये भी तो  मौसम की ही तरह हुए न, मिज़ाज़ भी तो बिल्कुल वैसी ही है  दिन के साथ चढ़ते उतरते बदलते कई रंग जेठ में अलग ,आसार में अलग सावन में झिमझिम करते तो ये भी तो मौसम के ही तरह है न ..... बस सब मिलाकर बात एक ही है ज़िन्दगी जो है न वो बदलते मौसम की तरह ही है। ~~~~

तस्वीर बनाने की कोशिश

जो कभी  छोड़ गयी थी तन्हा, आज तेरी तस्वीर भी बगावत कर गयी, बनाना चाहता था उस रात की तरह तुझे, मगर देखो न तुम न बन पायी  उस रात की तरह । ~~~~मिन्टू

प्रेम लगाव

न जाने क्यूँ न चाहते हुए भी खिंचा चला आ रहा तेरी ओर, अपनी मंज़िल से भटकता हुआ, ठोकर खाता हुआ, कुछ अल्फ़ाज़ निकालते हुए, तो कुछ रचना करते कविताओं की जो अक्सर तेरे होने का सवाल छोड़ जाता है ।

तुम्हारी याद में

क्या तुम मेरी कविता बनोगी, क्या तुम मेरी ग़ज़ल बनोगी, क्या तुम मेरी शायरी बनोगी, या फिर यूं कहूँ क्या तुम मेरी बनोगी, क्या तुम मेरे संग संग चलोगी, क्या तुम मेरी परछाई बनोगी, या फिर यूं कहूँ क्या तुम लता बन पाओगी, क्या तुम नदी की धार बनोगी, क्या तुम ठंड में सूर्य बनोगी, या फिर यूं कहूँ .......... मुझे अकेला तो छोड़ न जाओगी.... उसी अमावस्या की रात की तरह..... क्या हुआ कुछ तो बोलो प्रिये... ऐसे कस्तूरी न बनो... बात अंदर रखकर... जगह जगह न ढूंढ़ते फिरो... अपने मुख से ये राज़ तो खोलो प्रिये...... क्या तुम आओगी..... मेरी कविता, मेरी ग़ज़ल, मेरी शायरी, मेरी परछाई बन पाओगी....

बचपन

ये तो नियति की देन है, कभी चुलबुली सी है तो, कभी मासूमियत से भरी, कभी गुनगुनाते हुए अकेले तो , कभी बेजुबान जान के साथ, ये तो नियति की देन है, कभी अपने सपनो को बुनते हुए, तो कभी उसे बाहों में समेटे हुए, कभी इशारों में तो कभी कानों में फुसफुसाते हुए, ये तो नियति की देन है......

कुम्भ

आओ तुम्हे एक छवि दिखाए, चले चलो कुम्भ नहाए। आओ तुम्हे परंपरागत विधियो से अवगत कराएं, चले चलो कुम्भ नहाए। आओ तुम्हे अपनी संस्कृति दिखाए, चले चलो कुम्भ नहाए। आओ तुम्हे साधुओं के दर्शन कराए, चले चलो कुम्भ नहाए। आओ तुम्हरे पाप धुलवाए, चले चलो कुम्भ नहाए। आओ चले उस सृंगार से सज जाए, चले चलो कुम्भ नहाए। आओ चले पवित्र नगरी , संगम में रम जाए, चले चलो कुम्भ नहाए।

ठहर सको

अभी थोड़ा पीछे गया हूं, जो साथ चल सको तो ठहरो अभी थोड़ा वक्त लगेगा तुम तक आने में, जो तुम ठहर सको तो ठहरो वक़्त साथ दे रहा कभी कभी, तुम जीवन भर साथ दे सको तो ठहरो मेरा प्रेम तो तुम तक ही सीमित है, जो तुम अनंत तक चल सको तो ठहरो आशियाना बनाएंगे कविताओं की, जो तुम कविता बन सको तो ठहरो कोई इल्ज़ाम लग जाये मुझपर, जो तुम संभाल सकोगी तो ठहरो साथ रहेगा सदैव मेरा, जो तुम खेवइया बन सको तो ठहरो अभी थोड़ा वक्त लगेगा तुम तक आने में, जो तुम ठहर सको तो ठहरो अभी थोड़ा पीछे गया हूं, जो साथ चल सको तो ठहरो।।

तुम्हारी कल्पना

कमाल है इसका डुबना भी न , जो एक रंग खूबसूरती का दे जाता है ठीक तुम्हारी मुस्कान की तरह न, और फिर भी कहती हो कि मैं(स्त्री) कुछ भी नही। कमाल है इसके आस पास भी खूबसूरती दे जाती हो, लालिमा, सुंदर दृश्य और मनमोहक छटा और फिर भी कहती हो कि मैं(स्त्री) कुछ भी नही। कमाल है इतराना तेरा बादलों के बीच मे, बारिशों के साथ मिलकर इंद्रधनुष का निर्माण तेरा, और फिर भी कहती हो कि मैं (स्त्री) कुछ भी नहीं।

मैं इश्क़ में हूँ

तुम्हारी बिंदी खूब भा रही क्यों कि मैं इश्क़ में हूँ तुम्हारी काजल नज़र उतार रही क्यों कि मैं इश्क़ में हूँ तुम शर्मा रही तुम्हारी आँखे कुछ बता रही क्यों कि मैं इश्क़ में हूँ तुम्हरी बातें हो रही ये मुस्कान बता रही क्यों कि मैं इश्क़ में हूँ, तुम्हारी होंठो की लाली गहरा रही क्यों कि मैं इश्क़ में हूँ तुम सज रही ये ख्यालात बता रही क्यों कि मैं इश्क़ में हूँ ।