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मुझे नही पता मैं ....

मुझे नही पता मैं क्या हूँ लेकिन यकीन मानो मैं पूरा का पूरा गांव हूँ, मैं कितने भी डिग्री ले लूं मगर मैं रहूँगा देशी ही, मिट्टी का ही शायद तुम मुझे अनपढ़,गंवार समझ लो भला-बुरा कह लो मगर यकीन मानो मैं गाँव ही रहूँगा और रहना चाहूंगा मुझे नही चाहिए ये टाइल्स वाली, दिखावटी दुनिया मुझे तो मेरी मिट्टी पसंद है, बारिश की बूंदों के बाद का सौंधी खुश्बू, शुद्ध हवा, पवित्र पावन जल, संस्कृति,प्यार,सम्मान यकीन मानो तुम सब भी एक दिन इसी गांव की पगडंडियों को चुनोगे अपने आने वाले पीढ़ी को बताओगे इस "मिट्टी की मातृत्व" को मेरा यकीन मानो तुम सब एक दिन शहर से हो जाओगे गाँव । ©मिन्टू/@tumharashahar

मैं नही कर पाता हूँ

मैं कहता था न कि लड़कियां जितनी शिद्दत से गाना का चुनाव करती है प्रेम में रहकर मैं नही कर पाता हूँ  तभी तो मुझे ये लड़कियां पसंद है जो पहचान करा जाती है उस मधुर धुन की और सीखा जाती है जीना उन पलों को  जो भरी रहती है प्रेम से, ऐसा प्रेम जहां से वापस लौट आना नामुमकिन है मुमकिन है तो सिर्फ खुद को अकेला पाना, एकांत की तलाश में भटकते रहना अपने ही देश के शहर में, जंगल में, मन्दिर में,  आस-पास खोजता तालाब जहां फेक सके पत्थर जहाँ बढ़ा सकें सोच को  जहाँ धुन हो बांसुरी के, जहाँ चिड़िया गाती हो गाना.... और मचलते मन को मिले कुछ पल के लिए  सुकून, शांति, स्थिरता । ©मिन्टू/@tumharashahar 

प्रेम में जीया

प्रेम में जिया व्यक्तित्व कभी मरता नही वो समय के साथ-साथ होता जाता है गहरा गहरा समंदर सा नही बल्कि पृथ्वी के कोर सा गहरा कोर सा धधकता लाल नही बल्कि गंगा जल सा शुद्ध, पवित्र, ठंडा जिसका मन भी रहता है शांत,शिथिल । ©मिंटू/@tumharashahar