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जुलाई 20, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सादगी वाली लड़की

उसकी आवाज़ मधुर है, वो अदाओं से भरपूर है रहती तो गंगा तट पर है मगर हल्का सा भी न गुरूर है न गुमान है वो सुंदर है, सुशील है सब से अनोखी, अलबेली है, खुद में मस्तमॉली, छरहरी ,नाजूक, छुईमुई सी है उसके जुल्फों जब भी चूमि है उसको गालों को, झलकती है मुस्कान और सादगी, जो भरपूर है ,भोली है मगर सबकी चहेती बोली है वो गंगा तट की छोरी है वो अनोखी अलबेली है उसकी बातों से झलकती मासूमियत, प्यार है वो अपने आँगन की खुशबूदार पेड़ है देती है छांव करती है रखवाली मृदा की वो अनोखी अलबेली वो गंगा तट की छोरी है ।

एक पहाड़न

वो जानती है कि मुझे कैसे मनाना है वो हर बार जीत जाती है मेरी हार से खुद को बदनाम न कर मेरा नाम कर जाती है ये वही सुनहरे बालो वाली लड़की है, जो उस रात मिली थी मुझे पीपल पेड़ के पास, कुछ आस लिए, कुछ ख्याब लिए टूटना जानती है वो म गर जुड़ने के लिए उसे किसी का साथ चाहिए, वो रहना चाहती है सबके साथ मगर उसे उसकी तन्हाई ने रहने नही दिया, मान रखना जानती है वो सबका मगर उसे किसी ने समझा ही नही आजतक, वो वही लड़कीं है पहाडोवाली जो जुगनुओं सी रात भर जगी रहती है मगर आंखों में टिमटिमाते तारो की झलक की जगह मोतियों जैसी बूंद रहती है पानी की, ये वही कोमल कली है, खुशबूओं से भरी, गुलमोहर सी चमक वाली, महफ़िल लूट ले जाने वाली, खुले मन की,  स्वतंत्र विचार की, पहाडोवाली लड़कीं न जाने कौन सी मिट्टी की बनी है ये शायद कुछ अंश है चट्टानों वाली, नमी है , हरियाली है, ठंडक है इसकी आंखों में, मगर जैसी भी है , है तो हिम्मत वाली क्यों कि ये वही लड़कीं है पहाड़ोवाली पहाड़ोवाली.....

झुमके वाली लड़की

उसके बाल बिखरे थे, माथे पर बिंदी कानों पे झुमके थे, गाल मख़मली सी, होंठो पर हल्की मुस्कान थी कत्थई साड़ी में जब वो राह चल रही थी गुलाबो के पत्ते बिखेरते हुए, लटक झटक कर वो बहुत खूबसूरत लग रही थी पाँव में पायल, चाल में हल्की शरारत लेकर जब वो ठुमक-ठुमक चल रही थी, मेरी आँखें थोड़ी अड़ गयी थी उसपर मैं हो चला दीवाना था उसका शायद वो मेरे शहर जैसी ही थी सुंदर, स्वच्छ, निर्मल, पवित्र वो मेरी झुमके वाली थी.. जब भी बिखेरती थी जलवा अपने अल्फाज़ो से न जाने कितने आह-वाह की तान छेड़ जाते थे, कई चुरा लेते थे उसके अल्फ़ाज़ तो कई उसके राह कदम पर चल पड़ते थे जो भी थी वो जैसी भी थी वो मेरी झुमके वाली थी वो मेरी झुमके वाली थी ।
जिनके अल्फ़ाज़ इतने सुंदर हो सोचो ज़रा  वो दिल की कितनी सुंदर होगी , ।मानो कल्पनाओं से ही जी भर उठता हो, और एक नए राह में जाने के लिए उत्सुक हो जाता हो मन, उसकी तलाश में, उसे पढ़ने के लिए, उसको अपना बनाने के लिए, सब कुछ खोकर सिर्फ उसके ख्याल में डूब जाना ही तो इश्क़ की पहली सीढ़ी है और फिर उसका इस तरह से अल्फाज़ो का तराना छेड़ना मानो दिल मे कोई संगीत बज जाने के जैसा ही तो है, और इश्क और तान जहाँ न छेड़े जाए भला वाला इश्क़ कैसे हो सकता है, मेरे लिए वो तो संपूर्ण संगीत की देवी लगती है सुर वही, अंदाज़ वही, अल्फ़ाज़ तो ऐसे जैसे मानो की कोई मोहिनी हो, और फिर उसका न होना ये अपने आप मे थोड़ा पाप करने जैसा ही तो है ।