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अहंकार

हम पढें इसलिए कि विकास हो ,तरक्की हो संस्कार सीखें, लोगो को जान सकें उन्हें समझ सकें  परन्तु हम  सब इन चीज़ों से असल मायने में उतना ही दूर चले गये जितना पास जाना था । झोपड़ी में पढ़ने के वजाए पढ़े आधुनिक खेल मैदान के स्कूल में  घर छोड़ा, पढ़ने और नौकरी की तलाश में मिट्टी के मकान छोड़ गए पक्के मकानों में रहने लगे रिश्ते बनाने की जगह हम पैसे बना रहे  पैसे तो बन रहें मगर  रिश्ते, रिश्तेदार सब दूर हो रहें प्रेम की वजाये भीतर पनप रहा है ईर्ष्या, जलन.... आखिर क्यों ? किस तरफ जा रहा है ये जीवन, ये काल प्रेमी बिछड़ रहे सिर्फ इसलिए कि  वो योग्य नही । योग्य , प्रेम के लिए नही अपितु घर- संसार चलाने के लिए  उन्हें लगता है आज खाली हाथ है तो कल भी रहेगा  वैसे ये बात तो सत्य है खाली हाथ तो रहेंगे लेकिन  किसी झूठी आस से तो अच्छा रहेगा  किसी की उम्मीदों को तार-तार तो नही करेगा .... खैर  जीवन  एक  काल  खंड है जहाँ  अतीत के संग- संग कर्म  अपना दम-खम दिखाती है । @tumharashahar 

आखिर ऐसा क्यों ?

 कभी-कभी लोगों पर हँसी भी आती हैं और कभी-कभी बुरा भी लगता हैं।  हँसी इसलिए क्यों कि वो आपके साथ रहकर इतने बेवाकी से सफाई देते चलते रहते है कि वो अच्छे हैं, अपने या आपके साथ अच्छा करना चाहते हैं लेकिन इसके पीछे उलट हो जाता हैं। बुरा इसलिए क्यों कि वो साथ होकर, दिखावा करके भी साथ नही होते। "वो ऐसे सकारात्मक के जगह नकारात्मक हो जाते हैं जैसे धूप में घनघोर काले बादल"। वो बातें तो इतनी बड़ी-बड़ी करेंगे लेकिन जब बारी आएगी तो सबसे पहले पीछे कदम हटा लेंगे।  अगर कोई इंसान तनाव में या तनाव में आकर कोई गलत कदम उठा लेता हैं तो उसके बाद कि जो परिस्थिति उत्पन्न होती है ,जो भी बातें अखबार में या समाचार चैनल पर देखते है तो  "कहते है उन्हें ऐसा नही करना चाहिए था, ये कदम उठाने से पहले बात करनी चाहिए थी, हमलोग किसलिए है ? उसने गलत किया, उसका परिवार का क्या होगा... न जाने ऐसे कितने सवाल कर बैठते है , न जाने कितने सवाल गोली की तरह दाग देते है।" लेकिन जब तनावग्रस्त व्यक्ति ,मित्र,परिवार का कोई सदस्य यही बात उसके सामने रखता हैं या अपने आप को उस जगह से उभारने की कोशिश करता है तो ऐस कितने लोग

खोत बा बचपन

 खोत बा बचपन ----------------------- "एक समय रहल जब हमनी के शिकार करत रहीं अब हमनी के शिकार होत बा ।" हम बात कर रहल बानी बचपन से जुड़ल वो सब घटना के जवन एक फूल, पौधन के खूबसूरती और विशाल रूप दिहलस ।  हम बात करम मजबूत नींव से तैयार होत मकान के।  हम बात करम आँगन में चहक़त चिड़ैया ,तुलसी के । एक समय रहल जहां आधुनिकता से दूर-दूर तक नाता न रहल, सब भागत रहें , जुड़ल न चाहत रहे अब समय अइसन आ गईल बा कि एकरा बिना काम ठप पड़ जाला । बचपन के रूप खरा सोना हs। बचपन मे मिलल प्यार, स्नेह, दुलार, मार  ई सब अनमोल खज़ाना है  जवन कबहुँ पूरा न क़ईल जा सकेला एक समय बीत जइला पर । बचपन पर जब से आधुनिकता , दिखावा आउर दबाब के दीमक लागल बा का कहीं हम , बचपन एकदम बिखर गईल बा। जहां एक तरफ खुशियां चहक़त रहें, प्रेम मिलत रहे संस्कृति के साथ-साथ  आशीर्वाद मिलत रहें और प्रकृति पनपत रहें ऊहे अब धीरे-धीरे सब खत्म हो रहल बा। इहवाँ दुगो बात करम  एक त आधुकनिकता के हवा में बचपन के खेल हवा में उड़ गईल  आउर दूसरा कोरोना काल मे बचन के खुशियां दबाब में कही कौनो कोना में दब गईल । जहाँ ई पूस में , कार्तिक माह में कंचा, लट्टू, ति

जिंदगी

 सर पर बोझ डुबोकर ख़्वाब फटे एड़ियां,घिसकर चप्पल  लालन-पालन है ज़िन्दगी  बुन कर, सहेज कर तारीफ एक गलती पर  बदनाम होना है ज़िन्दगी थाम कर उंगली बांध कर कलाई विदा कर बिटिया  आँसू बहाना है ज़िन्दगी  इकट्ठा कर मेहनत को पोटली में बांध घर से धक्के खाना है ज़िन्दगी  भटकते राहों में ठोकर खाकर  बिना बेटे/बेटियों के हाथों अग्नि से प्यार होना है ज़िन्दगी । @tumharashahar

बेवजह

  किसी का हाल पूछ लेना बेवजह सुकून तो नही दे सकता लेकिन उसकी परेशानी बढ़ा सकता है नज़र बन्द करके रखना ये शहर तुम्हें डूबा सकता है कमरे के अंदर कैद है तो क्या हुआ एक मुस्कान किसी की जान बना सकता है न चाहते हुए भी हम आए तेरे शहर शहर डूबा सकता है पके है सब यहां ज़िन्दगी की कड़वी धूप में हर कोई जला सकता है नजदीकियां बढ़ाने से पहले भांप लेते है वो समय आने पर दूरियां बना सकता है नज़रबंद करके रखो खुद को अजनबी बिना जाने हाल बता सकता है किसी का हाल पूछ लेंना बेवजह सुकून तो नहीं दे सकता लेकिन उसकी परेशानी बढ़ा सकता है । @tumharashahar

उम्र से मंझे धागे

 Pic-@pinterest  चश्मे का नंबर बढ़ गया सुई में धागे नहीं लग रहे हाथ अब कांपते और  पैर थरथराते पत्नी  साथ  देती मगर बहुएं साथ नही देती बस एक वक्त की रोटी दो वक्त की ताने दे दिया करती है मैं जैसे-जैसे तजुर्बा में लीन होता गया मेरी सिलाई मशीन में जंग लगने लगे रिश्तेदारों का आना बंद हो गया अब घर पर बस मेरी दवा आती है वो भी अपने समय से एक सप्ताह देरी से क्योंकि डाक खाना का पोस्ट मास्टर  अब समय पर नही दे जाता दवा वो भी बुढ़ा हो चला है  वो जब भी आता  हमलोग पेड़ के  नीचे बैठ  घंटों बात करते है बात करते-करते कब  वो और मैं एक पहिये  हो जाते है  पता ही नही चलता....

गर्भ में

 Pic-@pinterest  मैं पृथ्वी हूँ मेरे कोर में समाया है गुस्से के रूप में ज्वालामुखी मेरे कोख में पल रहा है हरयाली जो आने वाले समय में देगा "कोहिनूर" सा फल एक स्त्री के रूप में जिसको हर पड़ाव पर  लांघा जाएगा किसी पुरुष, महिला या किसी सरकारी तंत्र के योजना के तहत  तब मैं लड़ते रहूंगी छुईमुई की तरह  ढोंगी समाज से, अपने परिजन से अपने पति से.. पति वो जिसको हमने माना है  "परमेश्वर " लेकिन क्या परमेश्वर से लड़कर मैं  पाप का भागीदार बन सकती हूँ ? शायद "हां" परंतु ध्यान रहें समय और धैर्य के आगे  अपने बचाव के लिए किया गया कार्य पाप नही होता वो अलगाव और बचाओ का एक जरिया है जिसपर पैर रख मैं स्वर्गलोक तक पहुंच पाऊँगी । @tumharashahar0

पाती

 Pic- @pinterest  पहला खत 6 अप्रैल 2021 झारखंड प्रान्त   प्रिये,    आज पहली बार तुम्हारे नाम का ख़त लिख रहा हूँ । इस से पहले भी बहुत कुछ लिखा है जब से तुम्हें देखा और महसूस किया है मैंने , परंतु ये खत इसलिए भी खास है कि तुम दूर किसी शहर में, किसी पवित्र नदी किनारे बसती हो जहां वास है देवी देवता का।    मुझे पता है तुम किसी और के लिए बनी हो, तुम प्रेम से बहुत आगे निकल चुकी हो.. लेकिन क्या मैं आज भी तुम्हारे इंतज़ार में हूँ ? क्यों तुम्हारा ख़्याल  भरपूर बना रहता है मेरे भीतर ? क्या तुम्हें नही लगता मेरा प्रेम आज के समय के अनुसार  पर्याप्त है ?  वैसे प्रेम पर्याप्त तो नही होता वो अनगिनत है जिसका कोई ओर-छोर नहीं।  मैं अक्सर तुम्हारी तस्वीर देख  बीते पलों और संवादों में खो जाता हूँ । मुझे हमेशा तुम्हारा खिड़की पर रहना और गुलाब भेजा याद आता है । पता नही मैं कैसे खुद को बना रहा या बर्बाद कर रहा इस आस में कि मेरा प्रेम तुम्हें एक दिन संवारते हुए मेरा कर देगा।  माना कि दूरियां है बहुत  लेकिन ये दूरियां मौन रहकर, सांसो की रफ्तार, उसके उतार-चढ़ाव से एहसास करवा जाएगा एक दिन तुम्हें मेरा तुम्हारे प्रति

देवालय

 Pic-self click किसान की मेहनत, पसीने से सींचे  मिट्टी से बने, कलाकृतियों से सजे देवालय सा घर  जिसमें वास करती है देवी-देवता जिसे चढ़ता है पूंडरी जलते है दीपक  रात के समय चाँद की उपस्थिति में आँगन होती रौशन... बटोरने खुशियां  कभी लौट आना शहरों से तुम उस गाँव की तरफ जहां वास करती है आज भी संस्कृति, पवित्रता, अध्यात्म निश्च्छल प्रेम घर आँगन में । @tumharashahar0

रातें वीरान है !

 चलती बस, सुनसान सड़कें, हवाओं से बातें करता मेरा शरीर और मन पल में उमड़ते ख्याल, दिखते हालात लोगों के फागुन के धुन मन को करते तृप्त  वही बीच-बीच मे दस्तक देते क़ई सवाल आखिर ये सड़क जाती कहाँ है जिधर मैं जा रहा हूँ उधर या सड़क जिधर जा रही उधर जा रहा हूँ मैं ? क्या ज़िन्दगी वीरान रातें लेकर गुज़ारी जा सकती है ? पनपते खंडहर पर पौधें, रिसते पानी  रातें वीरान है ! ढहता ईंट, खुद का मिटाता अस्तित्व आखिर इशारा किस ओर है समय का  क्या चाहता है ये समय मुझसे, तुमसे धरती पर रह रहे सभी जीव-जंतुओं से ? क्या इसका जवाब है किसी के पास ? क्या हर सवाल का जवाब है ? आखिर है तो किसके पास....

मेरा देह मिट्टी है

मेरा देह मिट्टी है मेरा देह, मिट्टी है  यहां की सरकार कुदाल, फावड़ा ,खुरपी , ट्रेक्टर  हर बार नई फसल की रोपाई, कटाई के बीच फायदे नुकसान का सौदा तय करती है  मैं जब त्रस्त ,सुखाड़ से हो जाता हूँ तो बस आसमान ही ओर देखता रह जाता हूँ अपने नग्न आंखों से, न तो आँसू गिरते है, न दाँते चियारता हूँ बस इंतज़ार में रहता हूँ कि मेरी हालात देख  आसमां कब रोयेगा । क्या आपके लिए भी कोई रोया है जब आप सुखाड़ से त्रस्त हो तब ? @tumharashahar0 Pic credit- @pinterest

साल की आखिरी चाय

साल की आखिरी चाय हम उस वक्त मिले जब मुझे प्यार की ना तो जरूरत थी  नहीं प्यार से नफरत  लेकिन हमारी स्टोरी कुछ वैसी है  कैजुअल फ्रेंड्स थे  फिर क्लोज फ्रेंड्स हो गए  बेस्ट फ्रेंड्स हो गए   फिर लव स्टार्ट हो गया  यह किस्सा साल की आखरी शाम का है  हमारी दोस्ती को काफ़ी वक्त बीत चुका था  साल की आखिरी शाम जो सर्द थी  पर गुलाबी भी  हम कोचिंग के बाहर खड़े थे,  क्लास शुरू होने में पंद्रह मिनट बचे थे  मेरे हाथ हमेशा की तरह ठंडे और बिल्कुल सुन्न थे । "चाय पियेगी... चलते चलते बस यूं ही पूछा उसने हां...  मैंने फट से जवाब दिया  जैसे कि मैं बस उसके पूछने के इंतजार में थी  हम एक दूसरे के सामने बैठे हैं अदरक के साथ चाय की महक हवा में घुलने लगी  "अरे जल्दी कर दो भैया" ... उसने मेरे हाथ अपनी गर्म हथेलियों में थामते हुए कहा । मुझे कोई जल्दी नहीं थी । बैकग्राउंड में बज रही गाने ने  "सोनिए हीरिए तेरी याद औंदिए, सीने विच तड़पता है दिल जान जांदिए" उस शाम को और भी रूमानी बना दिया था । चाय आई... "जल्दी से पीले क्लास स्टार्ट होने वाली है "  उसने चाय की पहली चुस्की लेते हुए कहा  

अच्छी चीजें कौन तय करेगा ?

  अच्छी चीजें जानकारी के अभाव में पीछे रह जाती है और उसे परखने की कला भी आपको घोर अपराध की ओर ले जाती है  इसलिए जो अच्छी चीजें मिलती है उसे ग्रहण कर लेना चाहिए उसे संजोए रखना चाहिए अगर उनसे प्रेम है, लगाव है तो खुद से जुदा नही होने देना चाहिए ... लेकिन ये कौन तय करेगा कि वो अच्छी है या बुरी ? समय या आप या फिर मैं खुद एक समय बीत जाने के बाद ? @tumharashahar0 Pic-@pinterest अच्छी चीजें कौन तय करेगा ?

क्या खुद को घिस कर कोई पापी हो सकता है ?

 Pic-@pinterest  क्या कोई खुद को घिस कर पापी हो सकता है ? तुमने नही देखा वो खेल जो तकदीर खेल रही तुम्हें दिखा सिर्फ प्यार भविष्य, खुद को समेट कर किसी पोटली में तुम बंध तो जाते थे लेकिन खुले कभी नही  गर कभी खुल भी सके तो खुलते-खुलते चमड़िया झूल गयी, हड्डियां दिखने लगी नही दिखा तो किसी को तुम्हारा संघर्ष लेकिन खुद को घिस कर तुमने  दुनिया को दिया नीलम, कोहिनूर जैसे अनमोल रत्न परन्तु उस पर भी सेंध लगायें गए जाति के नाम पर, तो कभी रंगों के नाम पर अंत मे तुम्हारे हाथ फिर से लगा वही उदासी, अकेलापन, घृणा, दोष  और राख  जो कभी प्रवाहित हो न  सकी गंगा में एक बार फिर तुम वंचित रह गए पवित्र होने से, वंचित रह गए तुम्हारे पाप धुलने से  लेकिन क्या खुद को घिस कर कोई पापी हो सकता है ? @tumharashahar0