वो सुनहरे लंबे बालों वाली लड़की, लंबी कद काठी की , गोरी सी बहुत ही मासूम दिखने वाली, शरारती लड़कीं, वो मेरी किताबो वाली लड़की, बहुत प्यार से दबाए रखती है दिल मे जज़्बात, और उसे जब गढ़ती है पन्नो पर तो मानो जैसे सच मे वो एक एहसास उतार देती , न जाने कितने लोग आह- वाह की सौगात लिए पहुंच जाते है उसके द्वार, वो किसी को न नही कहती सबको अपना समझती अल्फाज़ो जैसा और उसके लिए दिल मे एक अलग सा सम्मान झलकता है, वो जैसी भी है जिस धरती की है,जहाँ से भी आई है सच मानो वो बहुत ही खूबसूरत है सूरत से भी और सिरत से भी, उसका नाम जो भी हो पर मैं उसे प्यार से कहता वो मेरी किताबो वाली लड़की है, उसके ख़्वाब हज़ार है मन मे मगर वो कुछ करना एक चाहती है या कभी-कभी वो सब करना चाहती है जिससे उसे वो मकाम मिले, वो खुलकर जीना चाहती है ठीक उसी तितली की तरह और लिपट जाना चाहती है किसी मद्म से, और छोड़ जाना चाहती है अपनी एक अलग पहचान, वो जो भी है, जैसी भी है वो मेरी किताबो वाली लड़की है । वो लिखना तो चाहती है, वो पढना भी चाहती है मगर उसे खुद नही पता कि वो एक खुद किताब है, वो खुद एक नायाब तोहफा है किस
दिखाई दिए भी तो ऐसे जैसे चांद हो गए, चले भी गए तो ऐसे जैसे मरीचिका हो गए।