लड़कियां , मोह्बत में बैठी रहती है नदी किनारे, करती रहती है गुफ्तगू खुद से जब भी चलता रहता उनके मन मे उथल-पुथल कुछ दांतो तले दबा लेती है उंगलियां, कुछ कहती है नदी की धारा से तो कुछ कहती है वहां के वातावरण से फिर कुछ पल संभाल लेती है वहां की मन मे गढ़ती रहती है असीमित प्रेम अपने प्रिये के लिए मंद-मंद मुस्कुराती है लड़कियां ।
दिखाई दिए भी तो ऐसे जैसे चांद हो गए, चले भी गए तो ऐसे जैसे मरीचिका हो गए।