भावनाओ में बह जाता हूँ लेकिन कभी नदी न हो सका, गुस्सा हो जाता हूं मगर कभी पत्थर न हो सका, टूट जाता हूँ मगर कभी काँच न हो सका, बिखर जाता हूं लेकिन कभी किसी के राहों का फूल न हो सका, सिमट जाता हूँ मगर कभी पन्ना न हो सका , लिख पाता हूँ लेकिन कभी कलम न हो सका । ~~~~मिन्टू
दिखाई दिए भी तो ऐसे जैसे चांद हो गए, चले भी गए तो ऐसे जैसे मरीचिका हो गए।