जिनके अंदर इतना प्रेम हो, भला वो दूर क्यों रहेगी प्रेम से ? आहिस्ता-आहिस्ता प्रेम में पड़ कर वो खुद को और मजबूत करेगी, बस इतना ही नही वो तो उस रात सजायगी खुद को डूबती जायगी ख्वाबो में एक सुबह के इंतजार में ताकि उसे एहसास हो प्रेम के उस अंतिम छोर का जो निसन्देह बहुत खूबसूरत होगा उस लालिमा की छांव में और गाढ़ा होता जायेगा उसका प्रेम । ©मिंटू/@tumharashahar
दिखाई दिए भी तो ऐसे जैसे चांद हो गए, चले भी गए तो ऐसे जैसे मरीचिका हो गए।