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खोत बा बचपन

 खोत बा बचपन ----------------------- "एक समय रहल जब हमनी के शिकार करत रहीं अब हमनी के शिकार होत बा ।" हम बात कर रहल बानी बचपन से जुड़ल वो सब घटना के जवन एक फूल, पौधन के खूबसूरती और विशाल रूप दिहलस ।  हम बात करम मजबूत नींव से तैयार होत मकान के।  हम बात करम आँगन में चहक़त चिड़ैया ,तुलसी के । एक समय रहल जहां आधुनिकता से दूर-दूर तक नाता न रहल, सब भागत रहें , जुड़ल न चाहत रहे अब समय अइसन आ गईल बा कि एकरा बिना काम ठप पड़ जाला । बचपन के रूप खरा सोना हs। बचपन मे मिलल प्यार, स्नेह, दुलार, मार  ई सब अनमोल खज़ाना है  जवन कबहुँ पूरा न क़ईल जा सकेला एक समय बीत जइला पर । बचपन पर जब से आधुनिकता , दिखावा आउर दबाब के दीमक लागल बा का कहीं हम , बचपन एकदम बिखर गईल बा। जहां एक तरफ खुशियां चहक़त रहें, प्रेम मिलत रहे संस्कृति के साथ-साथ  आशीर्वाद मिलत रहें और प्रकृति पनपत रहें ऊहे अब धीरे-धीरे सब खत्म हो रहल बा। इहवाँ दुगो बात करम  एक त आधुकनिकता के हवा में बचपन के खेल हवा में उड़ गईल  आउर दूसरा कोरोना काल मे बचन के खुशियां दबाब में कही कौनो कोना में दब गईल । जहाँ ई पूस में , कार्तिक माह में कंचा, लट्टू, ति