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आखिर ऐसा क्यों ?

 कभी-कभी लोगों पर हँसी भी आती हैं और कभी-कभी बुरा भी लगता हैं।  हँसी इसलिए क्यों कि वो आपके साथ रहकर इतने बेवाकी से सफाई देते चलते रहते है कि वो अच्छे हैं, अपने या आपके साथ अच्छा करना चाहते हैं लेकिन इसके पीछे उलट हो जाता हैं। बुरा इसलिए क्यों कि वो साथ होकर, दिखावा करके भी साथ नही होते। "वो ऐसे सकारात्मक के जगह नकारात्मक हो जाते हैं जैसे धूप में घनघोर काले बादल"। वो बातें तो इतनी बड़ी-बड़ी करेंगे लेकिन जब बारी आएगी तो सबसे पहले पीछे कदम हटा लेंगे।  अगर कोई इंसान तनाव में या तनाव में आकर कोई गलत कदम उठा लेता हैं तो उसके बाद कि जो परिस्थिति उत्पन्न होती है ,जो भी बातें अखबार में या समाचार चैनल पर देखते है तो  "कहते है उन्हें ऐसा नही करना चाहिए था, ये कदम उठाने से पहले बात करनी चाहिए थी, हमलोग किसलिए है ? उसने गलत किया, उसका परिवार का क्या होगा... न जाने ऐसे कितने सवाल कर बैठते है , न जाने कितने सवाल गोली की तरह दाग देते है।" लेकिन जब तनावग्रस्त व्यक्ति ,मित्र,परिवार का कोई सदस्य यही बात उसके सामने रखता हैं या अपने आप को उस जगह से उभारने की कोशिश करता है तो ऐस कितने लोग