सर पर बोझ डुबोकर ख़्वाब फटे एड़ियां,घिसकर चप्पल लालन-पालन है ज़िन्दगी बुन कर, सहेज कर तारीफ एक गलती पर बदनाम होना है ज़िन्दगी थाम कर उंगली बांध कर कलाई विदा कर बिटिया आँसू बहाना है ज़िन्दगी इकट्ठा कर मेहनत को पोटली में बांध घर से धक्के खाना है ज़िन्दगी भटकते राहों में ठोकर खाकर बिना बेटे/बेटियों के हाथों अग्नि से प्यार होना है ज़िन्दगी । @tumharashahar
दिखाई दिए भी तो ऐसे जैसे चांद हो गए, चले भी गए तो ऐसे जैसे मरीचिका हो गए।