न जाने क्यूँ न चाहते हुए भी खिंचा चला आ रहा तेरी ओर, अपनी मंज़िल से भटकता हुआ, ठोकर खाता हुआ, कुछ अल्फ़ाज़ निकालते हुए, तो कुछ रचना करते कविताओं की जो अक्सर तेरे होने का सवाल छोड़ जाता है । ~~मिन्टू
दिखाई दिए भी तो ऐसे जैसे चांद हो गए, चले भी गए तो ऐसे जैसे मरीचिका हो गए।