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अप्रैल 24, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तेरी ओर

न जाने क्यूँ न चाहते हुए भी खिंचा चला आ रहा तेरी ओर, अपनी मंज़िल से भटकता हुआ, ठोकर खाता हुआ, कुछ अल्फ़ाज़ निकालते हुए, तो कुछ रचना करते कविताओं की जो अक्सर तेरे होने का सवाल छोड़ जाता है । ~~मिन्टू

माँ प्रेम 5

-तुम छोड़ गई माँ उस आँगन में,  जिसे  सजाया था, जिसे सींचा था अपने कर्मो से, अपने बलिदान से, अपने अश्को से, और कह गयी थी मैं न रहूं तो जीना सीख लेना वर्तमान के हालतों में कुछ सीख लेना हुनर वर्तमान के हालातों में

माँ प्रेम 4

आज भी उस बंधन में बंधा हूँ माँ मोह के बंधन में जो तुमसे है जो मेरे इश्क़ से है टूटता भी हूँ उन यादों के बीच जुड़ता भी हूँ तुम्हरे उम्मीदों के साथ देखो न माँ आज भी बंधा हूँ मैं उस बंधन में मोह के बंधन में ।