क्या तुम मेरी कविता बनोगी, क्या तुम मेरी ग़ज़ल बनोगी, क्या तुम मेरी शायरी बनोगी, या फिर यूं कहूँ क्या तुम मेरी बनोगी, क्या तुम मेरे संग संग चलोगी, क्या तुम मेरी परछाई बनोगी, या फिर यूं कहूँ क्या तुम लता बन पाओगी, क्या तुम नदी की धार बनोगी, क्या तुम ठंड में सूर्य बनोगी, या फिर यूं कहूँ .......... मुझे अकेला तो छोड़ न जाओगी.... उसी अमावस्या की रात की तरह..... क्या हुआ कुछ तो बोलो प्रिये... ऐसे कस्तूरी न बनो... बात अंदर रखकर... जगह जगह न ढूंढ़ते फिरो... अपने मुख से ये राज़ तो खोलो प्रिये...... क्या तुम आओगी..... मेरी कविता, मेरी ग़ज़ल, मेरी शायरी, मेरी परछाई बन पाओगी....