साल की आखिरी चाय हम उस वक्त मिले जब मुझे प्यार की ना तो जरूरत थी नहीं प्यार से नफरत लेकिन हमारी स्टोरी कुछ वैसी है कैजुअल फ्रेंड्स थे फिर क्लोज फ्रेंड्स हो गए बेस्ट फ्रेंड्स हो गए फिर लव स्टार्ट हो गया यह किस्सा साल की आखरी शाम का है हमारी दोस्ती को काफ़ी वक्त बीत चुका था साल की आखिरी शाम जो सर्द थी पर गुलाबी भी हम कोचिंग के बाहर खड़े थे, क्लास शुरू होने में पंद्रह मिनट बचे थे मेरे हाथ हमेशा की तरह ठंडे और बिल्कुल सुन्न थे । "चाय पियेगी... चलते चलते बस यूं ही पूछा उसने हां... मैंने फट से जवाब दिया जैसे कि मैं बस उसके पूछने के इंतजार में थी हम एक दूसरे के सामने बैठे हैं अदरक के साथ चाय की महक हवा में घुलने लगी "अरे जल्दी कर दो भैया" ... उसने मेरे हाथ अपनी गर्म हथेलियों में थामते हुए कहा । मुझे कोई जल्दी नहीं थी । बैकग्राउंड में बज रही गाने ने "सोनिए हीरिए तेरी याद औंदिए, सीने विच तड़पता है दिल जान जांदिए" उस शाम को और भी रूमानी बना दिया था । चाय आई... "जल्दी से पीले क्लास स्टार्ट होने वाली है " उसने चाय की पहली चुस्की लेते हुए कहा
दिखाई दिए भी तो ऐसे जैसे चांद हो गए, चले भी गए तो ऐसे जैसे मरीचिका हो गए।