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फल

फल ------- लालिमा ,    ज़िन्दगी में वैसी ही आती है जैसे सूर्यउदय सूर्यास्त में आती है ठीक उसी प्रकार तुम्हारा आना मेरी ज़िंदगी मे लालिमा का काम कर जाता है    मेरी ज़िंदगी मे तुम्हारा आना एक ऐसी क्रिया है जिससे मेरा  संचालन  हो रहा है या यूं कहूँ तुम मुझे अपने प्रकाश से वो सब चीज़ दे जाती हो जिस से एक वृक्ष को बढ़ने में मदद मिलती है। तुम देखना एक दिन मैं भी विशाल वृक्ष होकर तुम्हे  छांव दूंगा  लेकिन मैंने सुना है    जो पौधे की सेवा करता है उसे कभी उस वृक्ष का फल, छांव नही मिलता है  क्या ये बात सही है ? या तुम मेरे लिए उतने साल का लंबा इंतजार कर सकोगी जिससे मैं बड़े होकर तुम्हें छांव दे सकूँ ? ------------------------------------------------------------- ©मिन्टू/@tumharashahar  Pic credit-google

Deepu-memsaab

पहला भाग ----------------------------- "मैमसाब नीचे उतरिए, नीचे चलिए,पाल टूट जाएगी खेत की तो पानी कैसे रुकेगा". 'ओफ्फो तुम्हें हर चीज़ से दिक्कत है, और भला ये मैमसाब क्यों बुलाते हो मुझे? मेरा इतना सुंदर नाम है। केवल इसलिए कि मैं शहर में रहती हूँ?' . "आप ही तो सिखाती हैं कि 'थैंक यु' के बाद 'योर वेलकम' और 'माय पेलज़र' बोलते हैं, तो हुई ना आप अध्यापिका, तो अध्यापिका को हम मैमसाब बुलाते हैं" . 'तुम और तुम्हारे तर्क, खिल्ली उड़ाने को करते हो बस, और 'प्लेज़र' होता है, पेलज़र नहीं......अरे बाप रे! दीपू, इतने सारे बेर वह भी इतने लाल, मुझे बेर बहुत पसंद है मुझे बेर खाने हैं' . . "अरे मैमसाब आराम से, काँटे हैं चुभ जाएँगे, पीछे हटिए, मैं तोड़ता हूँ" . 'अच्छा जी और तुम्हारे तो खैर से रिश्तेदार लगते हैं ये काँटे जो तुम्हें नहीं चुभेंगें, है न?' . . "हाँ बस यही समझ लीजिए, इन्होंने ही पाला है। अपना दुपट्टा फैलाओ, मैं तोड़-तोड़ कर डालता हूँ" . 'अंधे हो गए हो? मैंने जीन्स पहना है&#

प्रेम पत्र

प्यार के नाम एक खत ________________________ वैसे ये प्रेम , इश्क़, प्यार  इन शब्दों से आप तो परिचित है ही सबका एक ही मतलब होता है समर्पण,त्याग,भक्ति, आत्मा का मिलन।  "हम जब भी बात करते है प्रेम की तो समर्पण, त्याग तक ही सीमित नही रहते अपितु भक्ति से ऊपर उठ परमात्मा और आत्मा का मिलन तक जाकर ठहर जाते है जो आज के समय मे मुश्किल है ।"  खैर मेरा प्यार अभी तो आत्मा या परमात्मा तक नही पहुंचा है और न कभी पहुंचेगा , अब इसका क्या कारण है ये जब आप स्वयं के अंदर झाँक कर देखेंगे तो महसूस हो जाएगा क्यों कि हम सब एक ही मिट्टी से बने है , एक ही तन, एक ही मन है और एक ही राह से गुज़रते है  परंतु किन्ही की थोड़ी मिलती, किन्ही की ज्यादा मिलती या किन्ही की देर से मिलती है । वैसे मैं उस से मिला तो नही हूँ या यूं कहूँ मैं मिल भी लिया हूँ लेकिन जो भी हो एहसास जबतक जीवित है  मेरा प्रेम सदैव जीवित ही रहेगा। इस प्रेम में मैंने लेखन को लिखना सिख रहा हूँ ।।  मुझे यकीन है मेरा प्रेम तुमतक पहुँचे  मैं चाहता हूं भले हम मिले या न मिले एक हो या न हो परंतु तुम मुझे पढ़ते रहना, मुझे समझते रहना उसमे खोते जाना तुम ।

कुछ अधूरा सा

कुछ अधूरा सा - खुद में कमी हो तो हमलोग दूसरों को दोषी ठहराने में कोई कसर नही छोड़ते अरे इतना फुरसत भी किसे रहता है जो तुम्हे याद करे और वैसे भी "काम के न काज के दुश्मन अनाज के" न जाने कितने बरस हो गए आजतक तुमने मुझे दिया ही क्या है ? बस जब देखो तब शिकायतों के लड़िया लगा देते हो अरे वो तो  हम है जो आजतक उफ्फ तक नही किए और तुम्हारा क्या है घर से बाहर, बाहर से घर और लाए भी तो मेरे लिए क्या... बस शिकायतों की फुलझड़ियां और वो भी इस दीवाली हमपर  ही .... अरे जाओ भी अब यहाँ से , हमे काम करने दो अच्छा ठीक है, जा रहे है इतना भी न इतराओ अपने काम पर हम है तो इतना सहायता कर भी देते है दूसरा कोई रहता न तो दर्जन भर सुनाता और  कुछ देता भी नही....