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फल

फल ------- लालिमा ,    ज़िन्दगी में वैसी ही आती है जैसे सूर्यउदय सूर्यास्त में आती है ठीक उसी प्रकार तुम्हारा आना मेरी ज़िंदगी मे लालिमा का काम कर जाता है    मेरी ज़िंदगी मे तुम्हारा आना एक ऐसी क्रिया है जिससे मेरा  संचालन  हो रहा है या यूं कहूँ तुम मुझे अपने प्रकाश से वो सब चीज़ दे जाती हो जिस से एक वृक्ष को बढ़ने में मदद मिलती है। तुम देखना एक दिन मैं भी विशाल वृक्ष होकर तुम्हे  छांव दूंगा  लेकिन मैंने सुना है    जो पौधे की सेवा करता है उसे कभी उस वृक्ष का फल, छांव नही मिलता है  क्या ये बात सही है ? या तुम मेरे लिए उतने साल का लंबा इंतजार कर सकोगी जिससे मैं बड़े होकर तुम्हें छांव दे सकूँ ? ------------------------------------------------------------- ©मिन्टू/@tumharashahar  Pic credit-google

प्रेम पत्र

प्यार के नाम एक खत ________________________ वैसे ये प्रेम , इश्क़, प्यार  इन शब्दों से आप तो परिचित है ही सबका एक ही मतलब होता है समर्पण,त्याग,भक्ति, आत्मा का मिलन।  "हम जब भी बात करते है प्रेम की तो समर्पण, त्याग तक ही सीमित नही रहते अपितु भक्ति से ऊपर उठ परमात्मा और आत्मा का मिलन तक जाकर ठहर जाते है जो आज के समय मे मुश्किल है ।"  खैर मेरा प्यार अभी तो आत्मा या परमात्मा तक नही पहुंचा है और न कभी पहुंचेगा , अब इसका क्या कारण है ये जब आप स्वयं के अंदर झाँक कर देखेंगे तो महसूस हो जाएगा क्यों कि हम सब एक ही मिट्टी से बने है , एक ही तन, एक ही मन है और एक ही राह से गुज़रते है  परंतु किन्ही की थोड़ी मिलती, किन्ही की ज्यादा मिलती या किन्ही की देर से मिलती है । वैसे मैं उस से मिला तो नही हूँ या यूं कहूँ मैं मिल भी लिया हूँ लेकिन जो भी हो एहसास जबतक जीवित है  मेरा प्रेम सदैव जीवित ही रहेगा। इस प्रेम में मैंने लेखन को लिखना सिख रहा हूँ ।।  मुझे यकीन है मेरा प्रेम तुमतक पहुँचे  मैं चाहता हूं भले हम मिले या न मिले एक हो या न हो परंतु तुम मुझे पढ़ते रहना, मुझे समझते रहना उसमे खोते जाना तुम ।

ऐसा क्यों लगता है ?

जीवन का सम्पूर्ण रस, ज्ञान इसमे ही निहित है बस एक नज़र जो देख ले तो ऐसे पागल हो जाते है जैसे कोई ख़ोया चीज़ मिल गया हो.. लेकिन ये गलत है, बेमानी है मगर क्या इसके बिना कोई रह पाया है प्रेम के बिना, स्त्री के बिना ? नही न... तभी तो ये सब मोह माया है, बंधन है , जाल है, यहाँ से चल चलो कही दूर जहाँ पहाड़ हो, झरने हो, तलाब हो, पेड़-पौधे हो, जहाँ हम अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके कंकड़ मार कर उस तालाब में, बात कर सके पेड़ो से, झरनों से तुम्हे क्या लगता है ?  ©मिन्टू/@tumharashahar

मैं नही कर पाता हूँ

मैं कहता था न कि लड़कियां जितनी शिद्दत से गाना का चुनाव करती है प्रेम में रहकर मैं नही कर पाता हूँ  तभी तो मुझे ये लड़कियां पसंद है जो पहचान करा जाती है उस मधुर धुन की और सीखा जाती है जीना उन पलों को  जो भरी रहती है प्रेम से, ऐसा प्रेम जहां से वापस लौट आना नामुमकिन है मुमकिन है तो सिर्फ खुद को अकेला पाना, एकांत की तलाश में भटकते रहना अपने ही देश के शहर में, जंगल में, मन्दिर में,  आस-पास खोजता तालाब जहां फेक सके पत्थर जहाँ बढ़ा सकें सोच को  जहाँ धुन हो बांसुरी के, जहाँ चिड़िया गाती हो गाना.... और मचलते मन को मिले कुछ पल के लिए  सुकून, शांति, स्थिरता । ©मिन्टू/@tumharashahar 

प्रेम में जीया

प्रेम में जिया व्यक्तित्व कभी मरता नही वो समय के साथ-साथ होता जाता है गहरा गहरा समंदर सा नही बल्कि पृथ्वी के कोर सा गहरा कोर सा धधकता लाल नही बल्कि गंगा जल सा शुद्ध, पवित्र, ठंडा जिसका मन भी रहता है शांत,शिथिल । ©मिंटू/@tumharashahar

इंतजार

वो जानती है कि मैं पढ़ लेता हूँ उसका मन मगर फिर भी वो मेरी बात रखने के लिए अपनी बात को रख देती है उसी मेज़ पर जहाँ वो रखा करती है किताब और करती रहती है मेरा इंतजार उस ठंड वाली रात में मैं उसको उसकी बात समझकर सो जाता हूँ उसी रात जिस रात वो करना चाहती है बेइंतेहा इश्क़, कहना चाहती है बहुत कुछ मेरे बाहों में आकर, वो बताना चाहती है कि मुझे तुमसे बहुत प्यार है मगर कह नही पाती बस हमेशा की तरह "इंतजार" से जता देती है वो अपना निश्छल प्रेम अपना निस्वार्थ प्रेम ।

सुनहरे बालो वाली

वो सुनहरे लंबे बालों वाली लड़की, लंबी कद काठी की , गोरी सी बहुत ही मासूम दिखने वाली, शरारती लड़कीं, वो मेरी किताबो वाली लड़की, बहुत प्यार से दबाए रखती है दिल मे जज़्बात, और उसे जब गढ़ती है पन्नो पर तो मानो जैसे सच मे वो एक एहसास उतार देती , न जाने कितने लोग आह- वाह की सौगात लिए पहुंच जाते है उसके द्वार, वो किसी को न नही कहती सबको अपना समझती अल्फाज़ो जैसा और उसके लिए दिल मे एक अलग सा सम्मान झलकता है, वो जैसी भी है जिस धरती की है,जहाँ से भी आई है सच मानो वो बहुत ही खूबसूरत है सूरत से भी और सिरत से भी,  उसका नाम जो भी हो पर मैं उसे प्यार से  कहता वो मेरी किताबो वाली लड़की है, उसके ख़्वाब हज़ार है मन मे मगर वो कुछ करना एक चाहती है या कभी-कभी वो सब करना चाहती है जिससे उसे वो मकाम मिले, वो खुलकर जीना चाहती है ठीक उसी तितली की तरह और लिपट जाना चाहती है किसी मद्म से, और छोड़ जाना चाहती है अपनी एक अलग पहचान, वो जो भी है, जैसी भी है वो मेरी किताबो वाली लड़की है । वो लिखना तो चाहती है, वो पढना भी चाहती है मगर उसे खुद नही पता कि वो एक खुद किताब है, वो खुद एक नायाब तोहफा है किस

कोई बात हो

यूँ नज़रों का मिल जाना एक गुनाह है तो ये गुनाह हो जाए तो कोई बात हो आकर पास मेरे तुम बैठ जाओ कर जाओ तुम दिल को घर , तो कोई बात हो, तुम करती रहना ये साज-सज्जा नखरे-वखरे जो पहली मुलाकात हो तो कोई बात हो, ठहर जाना तुम उस घर जो सजा पाओ  ज़िन्दगी में तो कोई बात हो, मिलेंगी वो खुशियां-वूशिया जहाँ सजन से दिन-रात  मुलाकात  हो तो कोई बात हो, लगा लेना अपने सपनो में पंख हौसलों के समझ जाओ तुम ये बतिया तो कोई बात हो यूँ ही कट  जाएगी ज़िन्दगी पाकर सजन जैसा सखियां जो तुम पास आकर रुक जाओ तो कोई बात हो... यूँ नज़रों का मिल जाना एक गुनाह है तो ये गुनाह हो जाए तो कोई बात हो.....

गुलाब नही उसका मन है

 जब कोई लड़कीं किसी को देती है गुलाब तो वो सिर्फ गुलाब नही देती है वो देती है  अपना सबसे अजीज चीज वो देती है अपना मन, वो देती है अपना सुख, दुख अपना जीवन वो कर देती है समर्पण खुद को ताकि उसे वो सजा सके, सँवार सके रख सके उसे सहेज कर वो करती है हर रात उसका इंतजार  ताकि वो कर सके कुछ गुफ्तगू  वो बता सके कि मैं क्या हूँ वो कर देती है अपना सब कुछ निछावार अपना एक ख़्वाब के लिए वो हो जाती है उस समय के लिए  या यूं कहुँ वो हो जाती है पूरा का पूरा अपने महबूब का वो निकाल कर रख देती है सबकुछ उसके सामने ताकि वो लिख सके एक नया इतिहास ज़िन्दगी का ।

लड़कियां लिखती है प्रेम

लड़कियां लिखती है प्रेम मन की लड़के लिखते है प्रेम तन की नही लिखते वो जज़्बात मन की लडकिया लिखती है कथा अंतर्मन की नही लिख पाते लड़के चलते रहते है दोनों के मन मे शीत युद्ध पिसता जाता है  कोरा कागज और कलम इन दोनों के बीच बच जाता है तो सिर्फ अंर्तमन का  एहसास ज़िसे पढ़कर लोग समझते है कितना गहरा  है ये प्रेम अगर सच मे कहूँ तो उन्हें ये नही पता लगता कि कितने गहरे डूबकर लिखी होती है  कल्पना होती है सच होती है ये  कोरे कागज पर  स्याही के निशान ।

बनाना है तुम्हे

मैं तुम्हे चूमना चाहता हूँ सर् से पांव तक मैं तुम्हे लिखना चाहता हूं कविता से कहानी तक मैं तुम्हे बनाना चाहता हूं शहर से गाँव तक मैं तुम्हे रंगना चाहता हु प्रेम से इंद्रधनुष तक मैं तुम्हे सींचना चाहता हूं दुख से सुख तक मैं तुम्हारा होना चाहता हूं आज से लेकर अनंत  तक । ©मिन्टू

खत

गर वो खत पढ़ लिया होता लिख दिया होता तुम्हे जवाब देर हो चुकी अब तो बहुत तुम अब, लिखी जाती हो दूसरो के खतों में दूसरों के स्याही से, किसी दूसरे के जज़्बात के साथ और मैं तलाश रहा हूँ तुम्हारी ही जैसी कोई ताकि ज़िंदा रहूँ और लिखता रहूँ ताउम्र कोई कविता, कोई गज़ल या कोई कहानी या फिर लिखूं अंदर दबे जज़्बातों को और बन जाऊं पुरातत्व विभाग। ~~~मिन्टू

फिर तेरी याद

फिर तेरी याद आ गयी रात गुजरते-गुजरते, दिन ढल रही है जज़्बात  संग चलते-चलते, मर्म इतना सा है तू रहती पास हफ्ते-हफ्ते, मैं करता रहता  प्यार आहिस्ते-आहिस्ते, फिर तेरी याद आ गयी रात गुजरते-गुजरते ।। ----मिन्टू Pic- google से

इंतजार

वो नादान लड़कीं, मासूम , भोली सी, आज भी उसी पेड़ की छांव में करती है मेरा इंतजार, आज भी वो उसी उम्मीद में जी रही है कि मेरा साजन आएगा, मगर वक़्त को क्या भरोसा, उसकी आश को भी तोड जाएगा, दिल की साफ, मन की पवित्र चंचल अदाकारा वाली लड़की, अपना सबकुछ छोड़कर बस करती रही प्रकृति के साथ-साथ मेरा इंतजार, उसे क्या पता था किस्मत उसकिंकया रंग लाएगी मगर वो अडिग रही, तन से , मन से, और करती रही मेरा इंतजार उसी पेड़ की छांव में । ~~~मिन्टू

वो पागल लड़की

पागल सी लड़की, कोमल, नाज़ुक सी आँखों से करती थी वो शिकार अपने महबूब का, जुल्फों से फसा लेती थी, करती थी होंठो से घायल लफ़्ज़ों से चलाती थी खंजर अपने महबूब पर वो पागल सी लड़की, जब भी करती थी  सोलहों श्रृंगार मचलने लगते थे सरफिरे आशिक़ मछलियों की तरह, कोमल अदा की अदाकारा थी वो जो सजाते रहती थी शब्दो से दिल की बात कोरे कागज पर, जो लिखा करती थी अपने महबूब के नाम खत, वो पागल सी लड़की, कर देती थी अपनी मुस्कान से वार होते थे कई कायल उनके तो कई मर-मिटने को होते थे तैयार, जब भी पहनती थी हल्की कोई रंग के वस्त्र, भूल जाते थे सब कोई इश्क का मंत्र, सुध-बुध खो जाते थे सब जब देखा करते थे उसे राह में थी वो अपनी शहर की एक कली रहती थी गुमनाम मगर उसके भी होते थे नाम कई के होंठो पर तो कई के दिलो पर वो पागल सी लड़की आज भी किसी के इंतजार में खोती जा रही है अपना वजूद, अपना नाम, अपना काम.....

कुछ न लिखो

कुछ न लिखो, चंद ख़्वाब लिखो, चंद छंद लिखो, चंद अल्फ़ाज़ लिखो, कुछ हाल लिखो, कुछ चाल लिखो, कुछ पुरानी कुछ नई सवाल लिखो,  बस लिखो गुलाल ज़िन्दगी के, कुछ न लिखो, चंद प्यार, चंद तकरार लिखो, चंद सपने , कुछ अपने लिखो, ज़िन्दगी से जुड़े सारे वो पल लिखो, लिखो माँ का आँचल, लिखो पिता का सहारा, लिखो बहना का प्यार, कुछ मुझे लिखो, कुछ घर-परिवार की लिखो कुछ न लिखो चंद ख़्वाब लिखो, चंद छंद लिखो लिखो तुम कुछ घर-परिवार लिखो ।

सादगी वाली लड़की

उसकी आवाज़ मधुर है, वो अदाओं से भरपूर है रहती तो गंगा तट पर है मगर हल्का सा भी न गुरूर है न गुमान है वो सुंदर है, सुशील है सब से अनोखी, अलबेली है, खुद में मस्तमॉली, छरहरी ,नाजूक, छुईमुई सी है उसके जुल्फों जब भी चूमि है उसको गालों को, झलकती है मुस्कान और सादगी, जो भरपूर है ,भोली है मगर सबकी चहेती बोली है वो गंगा तट की छोरी है वो अनोखी अलबेली है उसकी बातों से झलकती मासूमियत, प्यार है वो अपने आँगन की खुशबूदार पेड़ है देती है छांव करती है रखवाली मृदा की वो अनोखी अलबेली वो गंगा तट की छोरी है ।

एक पहाड़न

वो जानती है कि मुझे कैसे मनाना है वो हर बार जीत जाती है मेरी हार से खुद को बदनाम न कर मेरा नाम कर जाती है ये वही सुनहरे बालो वाली लड़की है, जो उस रात मिली थी मुझे पीपल पेड़ के पास, कुछ आस लिए, कुछ ख्याब लिए टूटना जानती है वो म गर जुड़ने के लिए उसे किसी का साथ चाहिए, वो रहना चाहती है सबके साथ मगर उसे उसकी तन्हाई ने रहने नही दिया, मान रखना जानती है वो सबका मगर उसे किसी ने समझा ही नही आजतक, वो वही लड़कीं है पहाडोवाली जो जुगनुओं सी रात भर जगी रहती है मगर आंखों में टिमटिमाते तारो की झलक की जगह मोतियों जैसी बूंद रहती है पानी की, ये वही कोमल कली है, खुशबूओं से भरी, गुलमोहर सी चमक वाली, महफ़िल लूट ले जाने वाली, खुले मन की,  स्वतंत्र विचार की, पहाडोवाली लड़कीं न जाने कौन सी मिट्टी की बनी है ये शायद कुछ अंश है चट्टानों वाली, नमी है , हरियाली है, ठंडक है इसकी आंखों में, मगर जैसी भी है , है तो हिम्मत वाली क्यों कि ये वही लड़कीं है पहाड़ोवाली पहाड़ोवाली.....

झुमके वाली लड़की

उसके बाल बिखरे थे, माथे पर बिंदी कानों पे झुमके थे, गाल मख़मली सी, होंठो पर हल्की मुस्कान थी कत्थई साड़ी में जब वो राह चल रही थी गुलाबो के पत्ते बिखेरते हुए, लटक झटक कर वो बहुत खूबसूरत लग रही थी पाँव में पायल, चाल में हल्की शरारत लेकर जब वो ठुमक-ठुमक चल रही थी, मेरी आँखें थोड़ी अड़ गयी थी उसपर मैं हो चला दीवाना था उसका शायद वो मेरे शहर जैसी ही थी सुंदर, स्वच्छ, निर्मल, पवित्र वो मेरी झुमके वाली थी.. जब भी बिखेरती थी जलवा अपने अल्फाज़ो से न जाने कितने आह-वाह की तान छेड़ जाते थे, कई चुरा लेते थे उसके अल्फ़ाज़ तो कई उसके राह कदम पर चल पड़ते थे जो भी थी वो जैसी भी थी वो मेरी झुमके वाली थी वो मेरी झुमके वाली थी ।

गाँव प्रेम

यूँ ढूंढने से क्या मिलेगा साहिबा जब पूरा शहर ही ईट का हो, ज़रा घूम आओ वो गाँव जहाँ पूरा घर मिट्टी का हो, तुम पाओगे वो संस्कार, वो प्यार तुम ढल जाओगे उस आकार, फिर बनेगी तुम्हारी मिट्टी सी सौन्धी खुश्बू वाली इश्क़ की कहानी, इश्क़ की खुश्बू , जो हर मौसम आबाद रहेगी, महक उठेगी बारिश की बूंदों से जब पड़ेगी, इश्क़ की मिट्टी से पूरा गांव महक उठेगा, और करता रहेगा सदा के लिए इश्क़ सनम से । ~~~~मिन्टू