सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मार्च 14, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रेम

आवारा मन,आवारा लड़का का कोई शहर नही होता कुछ धुन, छंद , अल्फ़ाज़ होते है इनके जिससे कर देते है साजो-श्रृंगार काल्पनिक रूप में स्त्रियों की और साक्षात दर्शन पाने पर हो जाते है मंत्रमुग्द , और साध लेते है चुप्पी बस एकटक निहारते रहते है । ©मिंटू/@tumharashahar

प्रेम में कुछ भी नही रहता

प्रेम में पुरूष का नही रहता कुछ भी सब हो जाता है उस स्त्री का और वो स्त्री हो जाती है वहाँ के रह रहे पौधो, झरना, पेड़ से लटकते लत्तर का, अपने जुल्फ का, फूलों पर बैठे तितलियों का यहाँ तक कि खो जाती है उन तमाम ख्यालो में जो काल्पनिक परिवेश में बुना गया है वो स्त्री हो जाती है घुमंतू  वक़्त-बेवक्त कही ठहरकर कुछ ख़्वाब बुनकर फिर निकल पड़ती है किसी अन्य तलाश में और ये तलाश जब तक जारी रहती है तब तक उसे चैन या सुकून न मिल जाए और वैसे भी प्रेम  में स्त्री को कहाँ मिलता है चैन, सुकून, वो तो निरंतर गढ़ते रहती है सींचते रहती है ढलते रहती है अपने प्रेमी में खुद को अलग कर खुद को बना लेती है पुरूष । ©मिंटू/@tumharashahar

यूँ ही बैठे-बैठे

कोई जहर लाया है  कोई दवात लाया है तुही बता मेरे खुदा तू मेरी ज़िंदगी मे क्या बिसात लाया है  ? ©मिंटू/@tumharashahar