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कुछ अधूरा सा

कुछ अधूरा सा - खुद में कमी हो तो हमलोग दूसरों को दोषी ठहराने में कोई कसर नही छोड़ते अरे इतना फुरसत भी किसे रहता है जो तुम्हे याद करे और वैसे भी "काम के न काज के दुश्मन अनाज के" न जाने कितने बरस हो गए आजतक तुमने मुझे दिया ही क्या है ? बस जब देखो तब शिकायतों के लड़िया लगा देते हो अरे वो तो  हम है जो आजतक उफ्फ तक नही किए और तुम्हारा क्या है घर से बाहर, बाहर से घर और लाए भी तो मेरे लिए क्या... बस शिकायतों की फुलझड़ियां और वो भी इस दीवाली हमपर  ही .... अरे जाओ भी अब यहाँ से , हमे काम करने दो अच्छा ठीक है, जा रहे है इतना भी न इतराओ अपने काम पर हम है तो इतना सहायता कर भी देते है दूसरा कोई रहता न तो दर्जन भर सुनाता और  कुछ देता भी नही....

फिर तेरी याद

फिर तेरी याद आ गयी रात गुजरते-गुजरते, दिन ढल रही है जज़्बात  संग चलते-चलते, मर्म इतना सा है तू रहती पास हफ्ते-हफ्ते, मैं करता रहता  प्यार आहिस्ते-आहिस्ते, फिर तेरी याद आ गयी रात गुजरते-गुजरते ।। ----मिन्टू Pic- google से