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मई 3, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बिखरते उम्मीद

उम्मीदों की गांठ बाँधे, मंज़िल को चल दिये साधे, टूटता , बिखरता, तड़पता हुआ फरेब की गलियों से होता पहुंचा हुँ तुम्हारे पास, और तुम कहती हो तुम किसी काम से नही । तमाम उम्र, खुद को झोंक दिया इश्क़ की भट्टी में, घूमता रहा तेरे इर्द-गिर्द तितलियों की तरह, और तुम कहती हो किसी काम के नही । कभी जो तुम्हे अकेला छोड़ गए थे सब बस सहारा बना था मैं , अजनबी होकर भी अपना माना था तुम्हें और तुम कहती हो किसी काम के नही । ~~मिन्टू