Pic-@pinterest चश्मे का नंबर बढ़ गया सुई में धागे नहीं लग रहे हाथ अब कांपते और पैर थरथराते पत्नी साथ देती मगर बहुएं साथ नही देती बस एक वक्त की रोटी दो वक्त की ताने दे दिया करती है मैं जैसे-जैसे तजुर्बा में लीन होता गया मेरी सिलाई मशीन में जंग लगने लगे रिश्तेदारों का आना बंद हो गया अब घर पर बस मेरी दवा आती है वो भी अपने समय से एक सप्ताह देरी से क्योंकि डाक खाना का पोस्ट मास्टर अब समय पर नही दे जाता दवा वो भी बुढ़ा हो चला है वो जब भी आता हमलोग पेड़ के नीचे बैठ घंटों बात करते है बात करते-करते कब वो और मैं एक पहिये हो जाते है पता ही नही चलता....
दिखाई दिए भी तो ऐसे जैसे चांद हो गए, चले भी गए तो ऐसे जैसे मरीचिका हो गए।