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अप्रैल, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उम्र से मंझे धागे

 Pic-@pinterest  चश्मे का नंबर बढ़ गया सुई में धागे नहीं लग रहे हाथ अब कांपते और  पैर थरथराते पत्नी  साथ  देती मगर बहुएं साथ नही देती बस एक वक्त की रोटी दो वक्त की ताने दे दिया करती है मैं जैसे-जैसे तजुर्बा में लीन होता गया मेरी सिलाई मशीन में जंग लगने लगे रिश्तेदारों का आना बंद हो गया अब घर पर बस मेरी दवा आती है वो भी अपने समय से एक सप्ताह देरी से क्योंकि डाक खाना का पोस्ट मास्टर  अब समय पर नही दे जाता दवा वो भी बुढ़ा हो चला है  वो जब भी आता  हमलोग पेड़ के  नीचे बैठ  घंटों बात करते है बात करते-करते कब  वो और मैं एक पहिये  हो जाते है  पता ही नही चलता....

गर्भ में

 Pic-@pinterest  मैं पृथ्वी हूँ मेरे कोर में समाया है गुस्से के रूप में ज्वालामुखी मेरे कोख में पल रहा है हरयाली जो आने वाले समय में देगा "कोहिनूर" सा फल एक स्त्री के रूप में जिसको हर पड़ाव पर  लांघा जाएगा किसी पुरुष, महिला या किसी सरकारी तंत्र के योजना के तहत  तब मैं लड़ते रहूंगी छुईमुई की तरह  ढोंगी समाज से, अपने परिजन से अपने पति से.. पति वो जिसको हमने माना है  "परमेश्वर " लेकिन क्या परमेश्वर से लड़कर मैं  पाप का भागीदार बन सकती हूँ ? शायद "हां" परंतु ध्यान रहें समय और धैर्य के आगे  अपने बचाव के लिए किया गया कार्य पाप नही होता वो अलगाव और बचाओ का एक जरिया है जिसपर पैर रख मैं स्वर्गलोक तक पहुंच पाऊँगी । @tumharashahar0

पाती

 Pic- @pinterest  पहला खत 6 अप्रैल 2021 झारखंड प्रान्त   प्रिये,    आज पहली बार तुम्हारे नाम का ख़त लिख रहा हूँ । इस से पहले भी बहुत कुछ लिखा है जब से तुम्हें देखा और महसूस किया है मैंने , परंतु ये खत इसलिए भी खास है कि तुम दूर किसी शहर में, किसी पवित्र नदी किनारे बसती हो जहां वास है देवी देवता का।    मुझे पता है तुम किसी और के लिए बनी हो, तुम प्रेम से बहुत आगे निकल चुकी हो.. लेकिन क्या मैं आज भी तुम्हारे इंतज़ार में हूँ ? क्यों तुम्हारा ख़्याल  भरपूर बना रहता है मेरे भीतर ? क्या तुम्हें नही लगता मेरा प्रेम आज के समय के अनुसार  पर्याप्त है ?  वैसे प्रेम पर्याप्त तो नही होता वो अनगिनत है जिसका कोई ओर-छोर नहीं।  मैं अक्सर तुम्हारी तस्वीर देख  बीते पलों और संवादों में खो जाता हूँ । मुझे हमेशा तुम्हारा खिड़की पर रहना और गुलाब भेजा याद आता है । पता नही मैं कैसे खुद को बना रहा या बर्बाद कर रहा इस आस में कि मेरा प्रेम तुम्हें एक दिन संवारते हुए मेरा कर देगा।  माना कि दूरियां है बहुत  लेकिन ये दूरियां मौन रहकर, सांसो की रफ्तार, उसके उतार-चढ़ाव से एहसास करवा जाएगा एक दिन तुम्हें मेरा तुम्हारे प्रति

देवालय

 Pic-self click किसान की मेहनत, पसीने से सींचे  मिट्टी से बने, कलाकृतियों से सजे देवालय सा घर  जिसमें वास करती है देवी-देवता जिसे चढ़ता है पूंडरी जलते है दीपक  रात के समय चाँद की उपस्थिति में आँगन होती रौशन... बटोरने खुशियां  कभी लौट आना शहरों से तुम उस गाँव की तरफ जहां वास करती है आज भी संस्कृति, पवित्रता, अध्यात्म निश्च्छल प्रेम घर आँगन में । @tumharashahar0