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मार्च, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रेम में जीया

प्रेम में जिया व्यक्तित्व कभी मरता नही वो समय के साथ-साथ होता जाता है गहरा गहरा समंदर सा नही बल्कि पृथ्वी के कोर सा गहरा कोर सा धधकता लाल नही बल्कि गंगा जल सा शुद्ध, पवित्र, ठंडा जिसका मन भी रहता है शांत,शिथिल । ©मिंटू/@tumharashahar

ये मुस्कान देख रहे हो

ये मुस्कान देख रहे हो  कितनी प्यारी है है न लेकिन ये मुस्कान ही प्यारी है  बाकी दर्द बहुत है इसके पीछे क्या तुम्हें दिख रहा है वो दर्द ? ये आंखे देख रहे हो  कितनी सुंदर है है न लेकिन ये आंखे ही सुंदर है बाकी आंखों के पीछे छूपे है आंसू  क्या तुम्हें दिख रहा है वो दर्द ? कितना कुछ बदल जाता है ज़िन्दगी में जब छायादार वृक्ष न हो तो है न न कोई सुनने वाला, न कोई समझने वाला बस थोप दिए जाते है ज़िन्दगी में कुछ काम, कुछ हिस्से  जिसके हक़दार हो भी और न भी पता नही ज़िन्दगी मेरी क्या रंग लाएगी न जाने कहाँ ले जाएगी, किस मोड़ पर लोग पूछेंगे और न जाने किस मोड़ पर ठुकराएँगे दर्द है , देखो कौन-कौन साथ है और कौन-कौन नही वक़्त, सब्र सब सफल हो रहे असफल हो रहा तो बस अकेला ये मन चंचल मन जो कभी रहा ही नही बस में हमेशा किया अलग ही और जो भी किया  वो गलत ही रहा और ये गलत अक्सर गुजर जाने के बाद ही पता चला तब तक बहुत देर हो चुकी होती है । ©मिंटू/@tumharashahar

मुस्कान देखोगे

मुस्कान देखोगे अरे जाओ भी पहले इसके पीछे झाँक कर तो आओ.... चाल देखोगे अरे जाओ भी पहले कदम तो मिलाओ तुम कोई खुदा हो अरे जाओ भी विश्वास जगाकर तो लाओ तुम शायर हो अरे जाओ भी अल्फ़ाज़, छंद तो उठा लाओ अरे, क्या बोला तुम बेरोजगार हो अरे जाओ भी सबके चेहरे पर मुस्कान तो लाते हो इस से बड़ा और क्या चाहिए तुम्हें ..... ©मिंटू/@tumharashahar

गाँव हो जाना

मेरे लिए तुम जितनी प्यारी और मासूम हो उतना ही मेरा लिए मेरा गाँव भी है तुम्हे देखना एक गाँव को देखने जैसा ही तो है या यूं कहूँ तुम्हारे अंदर पूरा गांव समाया हुआ है मुझे कभी कमी महसूस नही हुई गाँव की जब मैं तुम्हारे इर्द-गिर्द रहा हूँ  बस ये हुआ है कि मैं गले नही लगा पाया हूँ अबतक मगर उम्मीद है कि मैं तुम्हारे संग-संग रहकर एक दिन पूरा गांव हो जाऊंगा और  फिर हम दोनों के पीछे-पीछे ये शहर दौड़ा आएगा।  ये शहर ,  जो पहले कभी गाँव हुआ करता था और हम भागते रहते थे इसके पीछे-पीछे मगर वो तो तुम जानती ही हो जो चीज़ जहाँ से शुरू होती है वही आकर खत्म भी होती है। जैसे शून्य का सफर शून्य तक जन्म का सफर जन्म तक ठीक उसी तरह "गाँव का सफर गाँव तक " और इस तरह से तुमसे मिलकर मेरा गाँव हो जाना  एक बार फिर से दर्शा गया ये कथन...  देखो तुम गाँव ही रहना ताकि मैं तुम्हें तलाशते शहर से गाँव हो जाऊं।  ठीक है न....  ©मिंटू/@tumharashahar

प्रेम

आवारा मन,आवारा लड़का का कोई शहर नही होता कुछ धुन, छंद , अल्फ़ाज़ होते है इनके जिससे कर देते है साजो-श्रृंगार काल्पनिक रूप में स्त्रियों की और साक्षात दर्शन पाने पर हो जाते है मंत्रमुग्द , और साध लेते है चुप्पी बस एकटक निहारते रहते है । ©मिंटू/@tumharashahar

प्रेम में कुछ भी नही रहता

प्रेम में पुरूष का नही रहता कुछ भी सब हो जाता है उस स्त्री का और वो स्त्री हो जाती है वहाँ के रह रहे पौधो, झरना, पेड़ से लटकते लत्तर का, अपने जुल्फ का, फूलों पर बैठे तितलियों का यहाँ तक कि खो जाती है उन तमाम ख्यालो में जो काल्पनिक परिवेश में बुना गया है वो स्त्री हो जाती है घुमंतू  वक़्त-बेवक्त कही ठहरकर कुछ ख़्वाब बुनकर फिर निकल पड़ती है किसी अन्य तलाश में और ये तलाश जब तक जारी रहती है तब तक उसे चैन या सुकून न मिल जाए और वैसे भी प्रेम  में स्त्री को कहाँ मिलता है चैन, सुकून, वो तो निरंतर गढ़ते रहती है सींचते रहती है ढलते रहती है अपने प्रेमी में खुद को अलग कर खुद को बना लेती है पुरूष । ©मिंटू/@tumharashahar

यूँ ही बैठे-बैठे

कोई जहर लाया है  कोई दवात लाया है तुही बता मेरे खुदा तू मेरी ज़िंदगी मे क्या बिसात लाया है  ? ©मिंटू/@tumharashahar