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फ़रवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मेरा देह मिट्टी है

मेरा देह मिट्टी है मेरा देह, मिट्टी है  यहां की सरकार कुदाल, फावड़ा ,खुरपी , ट्रेक्टर  हर बार नई फसल की रोपाई, कटाई के बीच फायदे नुकसान का सौदा तय करती है  मैं जब त्रस्त ,सुखाड़ से हो जाता हूँ तो बस आसमान ही ओर देखता रह जाता हूँ अपने नग्न आंखों से, न तो आँसू गिरते है, न दाँते चियारता हूँ बस इंतज़ार में रहता हूँ कि मेरी हालात देख  आसमां कब रोयेगा । क्या आपके लिए भी कोई रोया है जब आप सुखाड़ से त्रस्त हो तब ? @tumharashahar0 Pic credit- @pinterest

साल की आखिरी चाय

साल की आखिरी चाय हम उस वक्त मिले जब मुझे प्यार की ना तो जरूरत थी  नहीं प्यार से नफरत  लेकिन हमारी स्टोरी कुछ वैसी है  कैजुअल फ्रेंड्स थे  फिर क्लोज फ्रेंड्स हो गए  बेस्ट फ्रेंड्स हो गए   फिर लव स्टार्ट हो गया  यह किस्सा साल की आखरी शाम का है  हमारी दोस्ती को काफ़ी वक्त बीत चुका था  साल की आखिरी शाम जो सर्द थी  पर गुलाबी भी  हम कोचिंग के बाहर खड़े थे,  क्लास शुरू होने में पंद्रह मिनट बचे थे  मेरे हाथ हमेशा की तरह ठंडे और बिल्कुल सुन्न थे । "चाय पियेगी... चलते चलते बस यूं ही पूछा उसने हां...  मैंने फट से जवाब दिया  जैसे कि मैं बस उसके पूछने के इंतजार में थी  हम एक दूसरे के सामने बैठे हैं अदरक के साथ चाय की महक हवा में घुलने लगी  "अरे जल्दी कर दो भैया" ... उसने मेरे हाथ अपनी गर्म हथेलियों में थामते हुए कहा । मुझे कोई जल्दी नहीं थी । बैकग्राउंड में बज रही गाने ने  "सोनिए हीरिए तेरी याद औंदिए, सीने विच तड़पता है दिल जान जांदिए" उस शाम को और भी रूमानी बना दिया था । चाय आई... "जल्दी से पीले क्लास स्टार्ट होने वाली है "  उसने चाय की पहली चुस्की लेते हुए कहा  

अच्छी चीजें कौन तय करेगा ?

  अच्छी चीजें जानकारी के अभाव में पीछे रह जाती है और उसे परखने की कला भी आपको घोर अपराध की ओर ले जाती है  इसलिए जो अच्छी चीजें मिलती है उसे ग्रहण कर लेना चाहिए उसे संजोए रखना चाहिए अगर उनसे प्रेम है, लगाव है तो खुद से जुदा नही होने देना चाहिए ... लेकिन ये कौन तय करेगा कि वो अच्छी है या बुरी ? समय या आप या फिर मैं खुद एक समय बीत जाने के बाद ? @tumharashahar0 Pic-@pinterest अच्छी चीजें कौन तय करेगा ?

क्या खुद को घिस कर कोई पापी हो सकता है ?

 Pic-@pinterest  क्या कोई खुद को घिस कर पापी हो सकता है ? तुमने नही देखा वो खेल जो तकदीर खेल रही तुम्हें दिखा सिर्फ प्यार भविष्य, खुद को समेट कर किसी पोटली में तुम बंध तो जाते थे लेकिन खुले कभी नही  गर कभी खुल भी सके तो खुलते-खुलते चमड़िया झूल गयी, हड्डियां दिखने लगी नही दिखा तो किसी को तुम्हारा संघर्ष लेकिन खुद को घिस कर तुमने  दुनिया को दिया नीलम, कोहिनूर जैसे अनमोल रत्न परन्तु उस पर भी सेंध लगायें गए जाति के नाम पर, तो कभी रंगों के नाम पर अंत मे तुम्हारे हाथ फिर से लगा वही उदासी, अकेलापन, घृणा, दोष  और राख  जो कभी प्रवाहित हो न  सकी गंगा में एक बार फिर तुम वंचित रह गए पवित्र होने से, वंचित रह गए तुम्हारे पाप धुलने से  लेकिन क्या खुद को घिस कर कोई पापी हो सकता है ? @tumharashahar0