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Deepu-memsaab

पहला भाग ----------------------------- "मैमसाब नीचे उतरिए, नीचे चलिए,पाल टूट जाएगी खेत की तो पानी कैसे रुकेगा". 'ओफ्फो तुम्हें हर चीज़ से दिक्कत है, और भला ये मैमसाब क्यों बुलाते हो मुझे? मेरा इतना सुंदर नाम है। केवल इसलिए कि मैं शहर में रहती हूँ?' . "आप ही तो सिखाती हैं कि 'थैंक यु' के बाद 'योर वेलकम' और 'माय पेलज़र' बोलते हैं, तो हुई ना आप अध्यापिका, तो अध्यापिका को हम मैमसाब बुलाते हैं" . 'तुम और तुम्हारे तर्क, खिल्ली उड़ाने को करते हो बस, और 'प्लेज़र' होता है, पेलज़र नहीं......अरे बाप रे! दीपू, इतने सारे बेर वह भी इतने लाल, मुझे बेर बहुत पसंद है मुझे बेर खाने हैं' . . "अरे मैमसाब आराम से, काँटे हैं चुभ जाएँगे, पीछे हटिए, मैं तोड़ता हूँ" . 'अच्छा जी और तुम्हारे तो खैर से रिश्तेदार लगते हैं ये काँटे जो तुम्हें नहीं चुभेंगें, है न?' . . "हाँ बस यही समझ लीजिए, इन्होंने ही पाला है। अपना दुपट्टा फैलाओ, मैं तोड़-तोड़ कर डालता हूँ" . 'अंधे हो गए हो? मैंने जीन्स पहना है&#

प्रेम पत्र

प्यार के नाम एक खत ________________________ वैसे ये प्रेम , इश्क़, प्यार  इन शब्दों से आप तो परिचित है ही सबका एक ही मतलब होता है समर्पण,त्याग,भक्ति, आत्मा का मिलन।  "हम जब भी बात करते है प्रेम की तो समर्पण, त्याग तक ही सीमित नही रहते अपितु भक्ति से ऊपर उठ परमात्मा और आत्मा का मिलन तक जाकर ठहर जाते है जो आज के समय मे मुश्किल है ।"  खैर मेरा प्यार अभी तो आत्मा या परमात्मा तक नही पहुंचा है और न कभी पहुंचेगा , अब इसका क्या कारण है ये जब आप स्वयं के अंदर झाँक कर देखेंगे तो महसूस हो जाएगा क्यों कि हम सब एक ही मिट्टी से बने है , एक ही तन, एक ही मन है और एक ही राह से गुज़रते है  परंतु किन्ही की थोड़ी मिलती, किन्ही की ज्यादा मिलती या किन्ही की देर से मिलती है । वैसे मैं उस से मिला तो नही हूँ या यूं कहूँ मैं मिल भी लिया हूँ लेकिन जो भी हो एहसास जबतक जीवित है  मेरा प्रेम सदैव जीवित ही रहेगा। इस प्रेम में मैंने लेखन को लिखना सिख रहा हूँ ।।  मुझे यकीन है मेरा प्रेम तुमतक पहुँचे  मैं चाहता हूं भले हम मिले या न मिले एक हो या न हो परंतु तुम मुझे पढ़ते रहना, मुझे समझते रहना उसमे खोते जाना तुम ।

मुझे नही पता मैं ....

मुझे नही पता मैं क्या हूँ लेकिन यकीन मानो मैं पूरा का पूरा गांव हूँ, मैं कितने भी डिग्री ले लूं मगर मैं रहूँगा देशी ही, मिट्टी का ही शायद तुम मुझे अनपढ़,गंवार समझ लो भला-बुरा कह लो मगर यकीन मानो मैं गाँव ही रहूँगा और रहना चाहूंगा मुझे नही चाहिए ये टाइल्स वाली, दिखावटी दुनिया मुझे तो मेरी मिट्टी पसंद है, बारिश की बूंदों के बाद का सौंधी खुश्बू, शुद्ध हवा, पवित्र पावन जल, संस्कृति,प्यार,सम्मान यकीन मानो तुम सब भी एक दिन इसी गांव की पगडंडियों को चुनोगे अपने आने वाले पीढ़ी को बताओगे इस "मिट्टी की मातृत्व" को मेरा यकीन मानो तुम सब एक दिन शहर से हो जाओगे गाँव । ©मिन्टू/@tumharashahar

ऐसा क्यों लगता है ?

जीवन का सम्पूर्ण रस, ज्ञान इसमे ही निहित है बस एक नज़र जो देख ले तो ऐसे पागल हो जाते है जैसे कोई ख़ोया चीज़ मिल गया हो.. लेकिन ये गलत है, बेमानी है मगर क्या इसके बिना कोई रह पाया है प्रेम के बिना, स्त्री के बिना ? नही न... तभी तो ये सब मोह माया है, बंधन है , जाल है, यहाँ से चल चलो कही दूर जहाँ पहाड़ हो, झरने हो, तलाब हो, पेड़-पौधे हो, जहाँ हम अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके कंकड़ मार कर उस तालाब में, बात कर सके पेड़ो से, झरनों से तुम्हे क्या लगता है ?  ©मिन्टू/@tumharashahar

मैं नही कर पाता हूँ

मैं कहता था न कि लड़कियां जितनी शिद्दत से गाना का चुनाव करती है प्रेम में रहकर मैं नही कर पाता हूँ  तभी तो मुझे ये लड़कियां पसंद है जो पहचान करा जाती है उस मधुर धुन की और सीखा जाती है जीना उन पलों को  जो भरी रहती है प्रेम से, ऐसा प्रेम जहां से वापस लौट आना नामुमकिन है मुमकिन है तो सिर्फ खुद को अकेला पाना, एकांत की तलाश में भटकते रहना अपने ही देश के शहर में, जंगल में, मन्दिर में,  आस-पास खोजता तालाब जहां फेक सके पत्थर जहाँ बढ़ा सकें सोच को  जहाँ धुन हो बांसुरी के, जहाँ चिड़िया गाती हो गाना.... और मचलते मन को मिले कुछ पल के लिए  सुकून, शांति, स्थिरता । ©मिन्टू/@tumharashahar 

अंधकार की ओर

यूँ ही कुछ अधूरा सा ---------------------------  गुरूर, गुमान, अहंकार, द्वेष, जलन,अज्ञानता  जैसी   ज्ञान जो अर्जित कर ले वो विनाश की ओर ही गया है शायद ये संकेत ज़िन्दगी हर किसी को देती है  किसी न किसी रूप में  अब बात है कि कितने लोग समझ पाते है.... जहाँ तक मेरी बात है मैं विनाश की ओर अग्रसर हूँ मेरे अंदर वो सारे गुण मौजूद है जो इशारा करती है कि आप कुछ भी नही है...और ये सच भी है "मैं कुछ भी नही "... मुझे जो आभास होता है, जो प्रतिबिंब दिखता है वो आज नही तो कल सत्य ज़रूर होता है और मेरा मानना है कि मैं अंधकार की ओर जा रहा हूँ जहां से वापस आना बहुत कठिन है शायद जिस दिन इंसान सच्चाई से रूबरू होगा उसे उस दिन असली आज़ादी मिलेगी, उसे खुशी मिलेगी अन्यथा जलन, झूठ, वाहवाही में ही वो रहकर अंधकार को स्वीकार कर खुद को कोसता हुआ एक दिन तड़प के साथ अकेले रहते रहते मिल जाएगा मिट्टी में । शायद मैं उसी राह पर हूँ । ©मिंटू/@tumharashahar

प्रेम में जीया

प्रेम में जिया व्यक्तित्व कभी मरता नही वो समय के साथ-साथ होता जाता है गहरा गहरा समंदर सा नही बल्कि पृथ्वी के कोर सा गहरा कोर सा धधकता लाल नही बल्कि गंगा जल सा शुद्ध, पवित्र, ठंडा जिसका मन भी रहता है शांत,शिथिल । ©मिंटू/@tumharashahar

ये मुस्कान देख रहे हो

ये मुस्कान देख रहे हो  कितनी प्यारी है है न लेकिन ये मुस्कान ही प्यारी है  बाकी दर्द बहुत है इसके पीछे क्या तुम्हें दिख रहा है वो दर्द ? ये आंखे देख रहे हो  कितनी सुंदर है है न लेकिन ये आंखे ही सुंदर है बाकी आंखों के पीछे छूपे है आंसू  क्या तुम्हें दिख रहा है वो दर्द ? कितना कुछ बदल जाता है ज़िन्दगी में जब छायादार वृक्ष न हो तो है न न कोई सुनने वाला, न कोई समझने वाला बस थोप दिए जाते है ज़िन्दगी में कुछ काम, कुछ हिस्से  जिसके हक़दार हो भी और न भी पता नही ज़िन्दगी मेरी क्या रंग लाएगी न जाने कहाँ ले जाएगी, किस मोड़ पर लोग पूछेंगे और न जाने किस मोड़ पर ठुकराएँगे दर्द है , देखो कौन-कौन साथ है और कौन-कौन नही वक़्त, सब्र सब सफल हो रहे असफल हो रहा तो बस अकेला ये मन चंचल मन जो कभी रहा ही नही बस में हमेशा किया अलग ही और जो भी किया  वो गलत ही रहा और ये गलत अक्सर गुजर जाने के बाद ही पता चला तब तक बहुत देर हो चुकी होती है । ©मिंटू/@tumharashahar

मुस्कान देखोगे

मुस्कान देखोगे अरे जाओ भी पहले इसके पीछे झाँक कर तो आओ.... चाल देखोगे अरे जाओ भी पहले कदम तो मिलाओ तुम कोई खुदा हो अरे जाओ भी विश्वास जगाकर तो लाओ तुम शायर हो अरे जाओ भी अल्फ़ाज़, छंद तो उठा लाओ अरे, क्या बोला तुम बेरोजगार हो अरे जाओ भी सबके चेहरे पर मुस्कान तो लाते हो इस से बड़ा और क्या चाहिए तुम्हें ..... ©मिंटू/@tumharashahar

गाँव हो जाना

मेरे लिए तुम जितनी प्यारी और मासूम हो उतना ही मेरा लिए मेरा गाँव भी है तुम्हे देखना एक गाँव को देखने जैसा ही तो है या यूं कहूँ तुम्हारे अंदर पूरा गांव समाया हुआ है मुझे कभी कमी महसूस नही हुई गाँव की जब मैं तुम्हारे इर्द-गिर्द रहा हूँ  बस ये हुआ है कि मैं गले नही लगा पाया हूँ अबतक मगर उम्मीद है कि मैं तुम्हारे संग-संग रहकर एक दिन पूरा गांव हो जाऊंगा और  फिर हम दोनों के पीछे-पीछे ये शहर दौड़ा आएगा।  ये शहर ,  जो पहले कभी गाँव हुआ करता था और हम भागते रहते थे इसके पीछे-पीछे मगर वो तो तुम जानती ही हो जो चीज़ जहाँ से शुरू होती है वही आकर खत्म भी होती है। जैसे शून्य का सफर शून्य तक जन्म का सफर जन्म तक ठीक उसी तरह "गाँव का सफर गाँव तक " और इस तरह से तुमसे मिलकर मेरा गाँव हो जाना  एक बार फिर से दर्शा गया ये कथन...  देखो तुम गाँव ही रहना ताकि मैं तुम्हें तलाशते शहर से गाँव हो जाऊं।  ठीक है न....  ©मिंटू/@tumharashahar

प्रेम

आवारा मन,आवारा लड़का का कोई शहर नही होता कुछ धुन, छंद , अल्फ़ाज़ होते है इनके जिससे कर देते है साजो-श्रृंगार काल्पनिक रूप में स्त्रियों की और साक्षात दर्शन पाने पर हो जाते है मंत्रमुग्द , और साध लेते है चुप्पी बस एकटक निहारते रहते है । ©मिंटू/@tumharashahar

प्रेम में कुछ भी नही रहता

प्रेम में पुरूष का नही रहता कुछ भी सब हो जाता है उस स्त्री का और वो स्त्री हो जाती है वहाँ के रह रहे पौधो, झरना, पेड़ से लटकते लत्तर का, अपने जुल्फ का, फूलों पर बैठे तितलियों का यहाँ तक कि खो जाती है उन तमाम ख्यालो में जो काल्पनिक परिवेश में बुना गया है वो स्त्री हो जाती है घुमंतू  वक़्त-बेवक्त कही ठहरकर कुछ ख़्वाब बुनकर फिर निकल पड़ती है किसी अन्य तलाश में और ये तलाश जब तक जारी रहती है तब तक उसे चैन या सुकून न मिल जाए और वैसे भी प्रेम  में स्त्री को कहाँ मिलता है चैन, सुकून, वो तो निरंतर गढ़ते रहती है सींचते रहती है ढलते रहती है अपने प्रेमी में खुद को अलग कर खुद को बना लेती है पुरूष । ©मिंटू/@tumharashahar

बस यूं ही कुछ अधूरा सा

बस यूं ही कुछ अधूरा सा ................................. कौन सी गहराई की तलाश में है ? कही नही जी,  जहाँ कुछ नही वहाँ कुछ होना चाहिए ताकि लोगो को लगे कि व्यस्त है, कुछ कर रहा है वरना ताना-वाना में ज़िन्दगी तो गुजर- बसर हो ही रही है, अधपक्के ख्वाबो के बीच , मगर पता नही कब पकेगा ये ख़्वाब । बस यूं समझीये     धीमी आंच पर  पक रहे है , अब देख लीजिए इसी कहावत को "बूँद-बूँद से घड़ा भरता है"  अब अपना ज़िन्दगी का घड़ा कब भरेगा ये तो भगवान जाने बाकी सफर चलता रहेगा, कुछ पुराने लोगो और नए रिश्तों के साथ , कुछ उतार-चढ़ाव तो कुछ सीख को लेकर , बाकी हुनर तो है अपने पास अब इसे कोयले से हीरा बनाना है थोड़ा समय लगेगा मगर बन जाएगा ।

इंतजार

वो जानती है कि मैं पढ़ लेता हूँ उसका मन मगर फिर भी वो मेरी बात रखने के लिए अपनी बात को रख देती है उसी मेज़ पर जहाँ वो रखा करती है किताब और करती रहती है मेरा इंतजार उस ठंड वाली रात में मैं उसको उसकी बात समझकर सो जाता हूँ उसी रात जिस रात वो करना चाहती है बेइंतेहा इश्क़, कहना चाहती है बहुत कुछ मेरे बाहों में आकर, वो बताना चाहती है कि मुझे तुमसे बहुत प्यार है मगर कह नही पाती बस हमेशा की तरह "इंतजार" से जता देती है वो अपना निश्छल प्रेम अपना निस्वार्थ प्रेम ।

सुनहरे बालो वाली

वो सुनहरे लंबे बालों वाली लड़की, लंबी कद काठी की , गोरी सी बहुत ही मासूम दिखने वाली, शरारती लड़कीं, वो मेरी किताबो वाली लड़की, बहुत प्यार से दबाए रखती है दिल मे जज़्बात, और उसे जब गढ़ती है पन्नो पर तो मानो जैसे सच मे वो एक एहसास उतार देती , न जाने कितने लोग आह- वाह की सौगात लिए पहुंच जाते है उसके द्वार, वो किसी को न नही कहती सबको अपना समझती अल्फाज़ो जैसा और उसके लिए दिल मे एक अलग सा सम्मान झलकता है, वो जैसी भी है जिस धरती की है,जहाँ से भी आई है सच मानो वो बहुत ही खूबसूरत है सूरत से भी और सिरत से भी,  उसका नाम जो भी हो पर मैं उसे प्यार से  कहता वो मेरी किताबो वाली लड़की है, उसके ख़्वाब हज़ार है मन मे मगर वो कुछ करना एक चाहती है या कभी-कभी वो सब करना चाहती है जिससे उसे वो मकाम मिले, वो खुलकर जीना चाहती है ठीक उसी तितली की तरह और लिपट जाना चाहती है किसी मद्म से, और छोड़ जाना चाहती है अपनी एक अलग पहचान, वो जो भी है, जैसी भी है वो मेरी किताबो वाली लड़की है । वो लिखना तो चाहती है, वो पढना भी चाहती है मगर उसे खुद नही पता कि वो एक खुद किताब है, वो खुद एक नायाब तोहफा है किस