Pic-self click किसान की मेहनत, पसीने से सींचे मिट्टी से बने, कलाकृतियों से सजे देवालय सा घर जिसमें वास करती है देवी-देवता जिसे चढ़ता है पूंडरी जलते है दीपक रात के समय चाँद की उपस्थिति में आँगन होती रौशन... बटोरने खुशियां कभी लौट आना शहरों से तुम उस गाँव की तरफ जहां वास करती है आज भी संस्कृति, पवित्रता, अध्यात्म निश्च्छल प्रेम घर आँगन में । @tumharashahar0
दिखाई दिए भी तो ऐसे जैसे चांद हो गए, चले भी गए तो ऐसे जैसे मरीचिका हो गए।