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प्रेम पत्र

प्यार के नाम एक खत ________________________ वैसे ये प्रेम , इश्क़, प्यार  इन शब्दों से आप तो परिचित है ही सबका एक ही मतलब होता है समर्पण,त्याग,भक्ति, आत्मा का मिलन।  "हम जब भी बात करते है प्रेम की तो समर्पण, त्याग तक ही सीमित नही रहते अपितु भक्ति से ऊपर उठ परमात्मा और आत्मा का मिलन तक जाकर ठहर जाते है जो आज के समय मे मुश्किल है ।"  खैर मेरा प्यार अभी तो आत्मा या परमात्मा तक नही पहुंचा है और न कभी पहुंचेगा , अब इसका क्या कारण है ये जब आप स्वयं के अंदर झाँक कर देखेंगे तो महसूस हो जाएगा क्यों कि हम सब एक ही मिट्टी से बने है , एक ही तन, एक ही मन है और एक ही राह से गुज़रते है  परंतु किन्ही की थोड़ी मिलती, किन्ही की ज्यादा मिलती या किन्ही की देर से मिलती है । वैसे मैं उस से मिला तो नही हूँ या यूं कहूँ मैं मिल भी लिया हूँ लेकिन जो भी हो एहसास जबतक जीवित है  मेरा प्रेम सदैव जीवित ही रहेगा। इस प्रेम में मैंने लेखन को लिखना सिख रहा हूँ ।।  मुझे यकीन है मेरा प्रेम तुमतक पहुँचे  मैं चाहता हूं भले हम मिले या न मिले एक हो या न हो परंतु तुम मुझे पढ़ते रहना, मुझे समझते रहना उसमे खोते जाना तुम ।

मैं नही कर पाता हूँ

मैं कहता था न कि लड़कियां जितनी शिद्दत से गाना का चुनाव करती है प्रेम में रहकर मैं नही कर पाता हूँ  तभी तो मुझे ये लड़कियां पसंद है जो पहचान करा जाती है उस मधुर धुन की और सीखा जाती है जीना उन पलों को  जो भरी रहती है प्रेम से, ऐसा प्रेम जहां से वापस लौट आना नामुमकिन है मुमकिन है तो सिर्फ खुद को अकेला पाना, एकांत की तलाश में भटकते रहना अपने ही देश के शहर में, जंगल में, मन्दिर में,  आस-पास खोजता तालाब जहां फेक सके पत्थर जहाँ बढ़ा सकें सोच को  जहाँ धुन हो बांसुरी के, जहाँ चिड़िया गाती हो गाना.... और मचलते मन को मिले कुछ पल के लिए  सुकून, शांति, स्थिरता । ©मिन्टू/@tumharashahar 

प्रेम में जीया

प्रेम में जिया व्यक्तित्व कभी मरता नही वो समय के साथ-साथ होता जाता है गहरा गहरा समंदर सा नही बल्कि पृथ्वी के कोर सा गहरा कोर सा धधकता लाल नही बल्कि गंगा जल सा शुद्ध, पवित्र, ठंडा जिसका मन भी रहता है शांत,शिथिल । ©मिंटू/@tumharashahar