वो मेरी सुर थी वो मेरी लय थी वो मेरी गीत थी मेरी संगीत थी, वो मेरी नृत्य थी मेरी नृत्यांगना थी, वो छेड़ जाया करती थी अक्सर मुझे मैं बन जाया करता था उसका वाद्ययंत्र, रम जाया करता था उसके संग-संग बनते-बिगड़ते एक नए सुर में पहचान बनती एक नए रंग रूप में ऐसी थी मेरी प्रिये
दिखाई दिए भी तो ऐसे जैसे चांद हो गए, चले भी गए तो ऐसे जैसे मरीचिका हो गए।