सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

shayari लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ऐसा क्यों लगता है ?

जीवन का सम्पूर्ण रस, ज्ञान इसमे ही निहित है बस एक नज़र जो देख ले तो ऐसे पागल हो जाते है जैसे कोई ख़ोया चीज़ मिल गया हो.. लेकिन ये गलत है, बेमानी है मगर क्या इसके बिना कोई रह पाया है प्रेम के बिना, स्त्री के बिना ? नही न... तभी तो ये सब मोह माया है, बंधन है , जाल है, यहाँ से चल चलो कही दूर जहाँ पहाड़ हो, झरने हो, तलाब हो, पेड़-पौधे हो, जहाँ हम अपनी उपस्थिति दर्ज करा सके कंकड़ मार कर उस तालाब में, बात कर सके पेड़ो से, झरनों से तुम्हे क्या लगता है ?  ©मिन्टू/@tumharashahar

अंधकार की ओर

यूँ ही कुछ अधूरा सा ---------------------------  गुरूर, गुमान, अहंकार, द्वेष, जलन,अज्ञानता  जैसी   ज्ञान जो अर्जित कर ले वो विनाश की ओर ही गया है शायद ये संकेत ज़िन्दगी हर किसी को देती है  किसी न किसी रूप में  अब बात है कि कितने लोग समझ पाते है.... जहाँ तक मेरी बात है मैं विनाश की ओर अग्रसर हूँ मेरे अंदर वो सारे गुण मौजूद है जो इशारा करती है कि आप कुछ भी नही है...और ये सच भी है "मैं कुछ भी नही "... मुझे जो आभास होता है, जो प्रतिबिंब दिखता है वो आज नही तो कल सत्य ज़रूर होता है और मेरा मानना है कि मैं अंधकार की ओर जा रहा हूँ जहां से वापस आना बहुत कठिन है शायद जिस दिन इंसान सच्चाई से रूबरू होगा उसे उस दिन असली आज़ादी मिलेगी, उसे खुशी मिलेगी अन्यथा जलन, झूठ, वाहवाही में ही वो रहकर अंधकार को स्वीकार कर खुद को कोसता हुआ एक दिन तड़प के साथ अकेले रहते रहते मिल जाएगा मिट्टी में । शायद मैं उसी राह पर हूँ । ©मिंटू/@tumharashahar

प्रेम में जीया

प्रेम में जिया व्यक्तित्व कभी मरता नही वो समय के साथ-साथ होता जाता है गहरा गहरा समंदर सा नही बल्कि पृथ्वी के कोर सा गहरा कोर सा धधकता लाल नही बल्कि गंगा जल सा शुद्ध, पवित्र, ठंडा जिसका मन भी रहता है शांत,शिथिल । ©मिंटू/@tumharashahar

ये मुस्कान देख रहे हो

ये मुस्कान देख रहे हो  कितनी प्यारी है है न लेकिन ये मुस्कान ही प्यारी है  बाकी दर्द बहुत है इसके पीछे क्या तुम्हें दिख रहा है वो दर्द ? ये आंखे देख रहे हो  कितनी सुंदर है है न लेकिन ये आंखे ही सुंदर है बाकी आंखों के पीछे छूपे है आंसू  क्या तुम्हें दिख रहा है वो दर्द ? कितना कुछ बदल जाता है ज़िन्दगी में जब छायादार वृक्ष न हो तो है न न कोई सुनने वाला, न कोई समझने वाला बस थोप दिए जाते है ज़िन्दगी में कुछ काम, कुछ हिस्से  जिसके हक़दार हो भी और न भी पता नही ज़िन्दगी मेरी क्या रंग लाएगी न जाने कहाँ ले जाएगी, किस मोड़ पर लोग पूछेंगे और न जाने किस मोड़ पर ठुकराएँगे दर्द है , देखो कौन-कौन साथ है और कौन-कौन नही वक़्त, सब्र सब सफल हो रहे असफल हो रहा तो बस अकेला ये मन चंचल मन जो कभी रहा ही नही बस में हमेशा किया अलग ही और जो भी किया  वो गलत ही रहा और ये गलत अक्सर गुजर जाने के बाद ही पता चला तब तक बहुत देर हो चुकी होती है । ©मिंटू/@tumharashahar

मुस्कान देखोगे

मुस्कान देखोगे अरे जाओ भी पहले इसके पीछे झाँक कर तो आओ.... चाल देखोगे अरे जाओ भी पहले कदम तो मिलाओ तुम कोई खुदा हो अरे जाओ भी विश्वास जगाकर तो लाओ तुम शायर हो अरे जाओ भी अल्फ़ाज़, छंद तो उठा लाओ अरे, क्या बोला तुम बेरोजगार हो अरे जाओ भी सबके चेहरे पर मुस्कान तो लाते हो इस से बड़ा और क्या चाहिए तुम्हें ..... ©मिंटू/@tumharashahar

गाँव हो जाना

मेरे लिए तुम जितनी प्यारी और मासूम हो उतना ही मेरा लिए मेरा गाँव भी है तुम्हे देखना एक गाँव को देखने जैसा ही तो है या यूं कहूँ तुम्हारे अंदर पूरा गांव समाया हुआ है मुझे कभी कमी महसूस नही हुई गाँव की जब मैं तुम्हारे इर्द-गिर्द रहा हूँ  बस ये हुआ है कि मैं गले नही लगा पाया हूँ अबतक मगर उम्मीद है कि मैं तुम्हारे संग-संग रहकर एक दिन पूरा गांव हो जाऊंगा और  फिर हम दोनों के पीछे-पीछे ये शहर दौड़ा आएगा।  ये शहर ,  जो पहले कभी गाँव हुआ करता था और हम भागते रहते थे इसके पीछे-पीछे मगर वो तो तुम जानती ही हो जो चीज़ जहाँ से शुरू होती है वही आकर खत्म भी होती है। जैसे शून्य का सफर शून्य तक जन्म का सफर जन्म तक ठीक उसी तरह "गाँव का सफर गाँव तक " और इस तरह से तुमसे मिलकर मेरा गाँव हो जाना  एक बार फिर से दर्शा गया ये कथन...  देखो तुम गाँव ही रहना ताकि मैं तुम्हें तलाशते शहर से गाँव हो जाऊं।  ठीक है न....  ©मिंटू/@tumharashahar

प्रेम

आवारा मन,आवारा लड़का का कोई शहर नही होता कुछ धुन, छंद , अल्फ़ाज़ होते है इनके जिससे कर देते है साजो-श्रृंगार काल्पनिक रूप में स्त्रियों की और साक्षात दर्शन पाने पर हो जाते है मंत्रमुग्द , और साध लेते है चुप्पी बस एकटक निहारते रहते है । ©मिंटू/@tumharashahar

प्रेम में कुछ भी नही रहता

प्रेम में पुरूष का नही रहता कुछ भी सब हो जाता है उस स्त्री का और वो स्त्री हो जाती है वहाँ के रह रहे पौधो, झरना, पेड़ से लटकते लत्तर का, अपने जुल्फ का, फूलों पर बैठे तितलियों का यहाँ तक कि खो जाती है उन तमाम ख्यालो में जो काल्पनिक परिवेश में बुना गया है वो स्त्री हो जाती है घुमंतू  वक़्त-बेवक्त कही ठहरकर कुछ ख़्वाब बुनकर फिर निकल पड़ती है किसी अन्य तलाश में और ये तलाश जब तक जारी रहती है तब तक उसे चैन या सुकून न मिल जाए और वैसे भी प्रेम  में स्त्री को कहाँ मिलता है चैन, सुकून, वो तो निरंतर गढ़ते रहती है सींचते रहती है ढलते रहती है अपने प्रेमी में खुद को अलग कर खुद को बना लेती है पुरूष । ©मिंटू/@tumharashahar

बस यूं ही कुछ अधूरा सा

बस यूं ही कुछ अधूरा सा ................................. कौन सी गहराई की तलाश में है ? कही नही जी,  जहाँ कुछ नही वहाँ कुछ होना चाहिए ताकि लोगो को लगे कि व्यस्त है, कुछ कर रहा है वरना ताना-वाना में ज़िन्दगी तो गुजर- बसर हो ही रही है, अधपक्के ख्वाबो के बीच , मगर पता नही कब पकेगा ये ख़्वाब । बस यूं समझीये     धीमी आंच पर  पक रहे है , अब देख लीजिए इसी कहावत को "बूँद-बूँद से घड़ा भरता है"  अब अपना ज़िन्दगी का घड़ा कब भरेगा ये तो भगवान जाने बाकी सफर चलता रहेगा, कुछ पुराने लोगो और नए रिश्तों के साथ , कुछ उतार-चढ़ाव तो कुछ सीख को लेकर , बाकी हुनर तो है अपने पास अब इसे कोयले से हीरा बनाना है थोड़ा समय लगेगा मगर बन जाएगा ।

इंतजार

वो जानती है कि मैं पढ़ लेता हूँ उसका मन मगर फिर भी वो मेरी बात रखने के लिए अपनी बात को रख देती है उसी मेज़ पर जहाँ वो रखा करती है किताब और करती रहती है मेरा इंतजार उस ठंड वाली रात में मैं उसको उसकी बात समझकर सो जाता हूँ उसी रात जिस रात वो करना चाहती है बेइंतेहा इश्क़, कहना चाहती है बहुत कुछ मेरे बाहों में आकर, वो बताना चाहती है कि मुझे तुमसे बहुत प्यार है मगर कह नही पाती बस हमेशा की तरह "इंतजार" से जता देती है वो अपना निश्छल प्रेम अपना निस्वार्थ प्रेम ।

सुनहरे बालो वाली

वो सुनहरे लंबे बालों वाली लड़की, लंबी कद काठी की , गोरी सी बहुत ही मासूम दिखने वाली, शरारती लड़कीं, वो मेरी किताबो वाली लड़की, बहुत प्यार से दबाए रखती है दिल मे जज़्बात, और उसे जब गढ़ती है पन्नो पर तो मानो जैसे सच मे वो एक एहसास उतार देती , न जाने कितने लोग आह- वाह की सौगात लिए पहुंच जाते है उसके द्वार, वो किसी को न नही कहती सबको अपना समझती अल्फाज़ो जैसा और उसके लिए दिल मे एक अलग सा सम्मान झलकता है, वो जैसी भी है जिस धरती की है,जहाँ से भी आई है सच मानो वो बहुत ही खूबसूरत है सूरत से भी और सिरत से भी,  उसका नाम जो भी हो पर मैं उसे प्यार से  कहता वो मेरी किताबो वाली लड़की है, उसके ख़्वाब हज़ार है मन मे मगर वो कुछ करना एक चाहती है या कभी-कभी वो सब करना चाहती है जिससे उसे वो मकाम मिले, वो खुलकर जीना चाहती है ठीक उसी तितली की तरह और लिपट जाना चाहती है किसी मद्म से, और छोड़ जाना चाहती है अपनी एक अलग पहचान, वो जो भी है, जैसी भी है वो मेरी किताबो वाली लड़की है । वो लिखना तो चाहती है, वो पढना भी चाहती है मगर उसे खुद नही पता कि वो एक खुद किताब है, वो खुद एक नायाब तोहफा है किस

कोई बात हो

यूँ नज़रों का मिल जाना एक गुनाह है तो ये गुनाह हो जाए तो कोई बात हो आकर पास मेरे तुम बैठ जाओ कर जाओ तुम दिल को घर , तो कोई बात हो, तुम करती रहना ये साज-सज्जा नखरे-वखरे जो पहली मुलाकात हो तो कोई बात हो, ठहर जाना तुम उस घर जो सजा पाओ  ज़िन्दगी में तो कोई बात हो, मिलेंगी वो खुशियां-वूशिया जहाँ सजन से दिन-रात  मुलाकात  हो तो कोई बात हो, लगा लेना अपने सपनो में पंख हौसलों के समझ जाओ तुम ये बतिया तो कोई बात हो यूँ ही कट  जाएगी ज़िन्दगी पाकर सजन जैसा सखियां जो तुम पास आकर रुक जाओ तो कोई बात हो... यूँ नज़रों का मिल जाना एक गुनाह है तो ये गुनाह हो जाए तो कोई बात हो.....

गुलाब नही उसका मन है

 जब कोई लड़कीं किसी को देती है गुलाब तो वो सिर्फ गुलाब नही देती है वो देती है  अपना सबसे अजीज चीज वो देती है अपना मन, वो देती है अपना सुख, दुख अपना जीवन वो कर देती है समर्पण खुद को ताकि उसे वो सजा सके, सँवार सके रख सके उसे सहेज कर वो करती है हर रात उसका इंतजार  ताकि वो कर सके कुछ गुफ्तगू  वो बता सके कि मैं क्या हूँ वो कर देती है अपना सब कुछ निछावार अपना एक ख़्वाब के लिए वो हो जाती है उस समय के लिए  या यूं कहुँ वो हो जाती है पूरा का पूरा अपने महबूब का वो निकाल कर रख देती है सबकुछ उसके सामने ताकि वो लिख सके एक नया इतिहास ज़िन्दगी का ।

लड़कियां लिखती है प्रेम

लड़कियां लिखती है प्रेम मन की लड़के लिखते है प्रेम तन की नही लिखते वो जज़्बात मन की लडकिया लिखती है कथा अंतर्मन की नही लिख पाते लड़के चलते रहते है दोनों के मन मे शीत युद्ध पिसता जाता है  कोरा कागज और कलम इन दोनों के बीच बच जाता है तो सिर्फ अंर्तमन का  एहसास ज़िसे पढ़कर लोग समझते है कितना गहरा  है ये प्रेम अगर सच मे कहूँ तो उन्हें ये नही पता लगता कि कितने गहरे डूबकर लिखी होती है  कल्पना होती है सच होती है ये  कोरे कागज पर  स्याही के निशान ।

बनाना है तुम्हे

मैं तुम्हे चूमना चाहता हूँ सर् से पांव तक मैं तुम्हे लिखना चाहता हूं कविता से कहानी तक मैं तुम्हे बनाना चाहता हूं शहर से गाँव तक मैं तुम्हे रंगना चाहता हु प्रेम से इंद्रधनुष तक मैं तुम्हे सींचना चाहता हूं दुख से सुख तक मैं तुम्हारा होना चाहता हूं आज से लेकर अनंत  तक । ©मिन्टू

खत

गर वो खत पढ़ लिया होता लिख दिया होता तुम्हे जवाब देर हो चुकी अब तो बहुत तुम अब, लिखी जाती हो दूसरो के खतों में दूसरों के स्याही से, किसी दूसरे के जज़्बात के साथ और मैं तलाश रहा हूँ तुम्हारी ही जैसी कोई ताकि ज़िंदा रहूँ और लिखता रहूँ ताउम्र कोई कविता, कोई गज़ल या कोई कहानी या फिर लिखूं अंदर दबे जज़्बातों को और बन जाऊं पुरातत्व विभाग। ~~~मिन्टू

कुछ अधूरा सा

कुछ अधूरा सा - खुद में कमी हो तो हमलोग दूसरों को दोषी ठहराने में कोई कसर नही छोड़ते अरे इतना फुरसत भी किसे रहता है जो तुम्हे याद करे और वैसे भी "काम के न काज के दुश्मन अनाज के" न जाने कितने बरस हो गए आजतक तुमने मुझे दिया ही क्या है ? बस जब देखो तब शिकायतों के लड़िया लगा देते हो अरे वो तो  हम है जो आजतक उफ्फ तक नही किए और तुम्हारा क्या है घर से बाहर, बाहर से घर और लाए भी तो मेरे लिए क्या... बस शिकायतों की फुलझड़ियां और वो भी इस दीवाली हमपर  ही .... अरे जाओ भी अब यहाँ से , हमे काम करने दो अच्छा ठीक है, जा रहे है इतना भी न इतराओ अपने काम पर हम है तो इतना सहायता कर भी देते है दूसरा कोई रहता न तो दर्जन भर सुनाता और  कुछ देता भी नही....

फिर तेरी याद

फिर तेरी याद आ गयी रात गुजरते-गुजरते, दिन ढल रही है जज़्बात  संग चलते-चलते, मर्म इतना सा है तू रहती पास हफ्ते-हफ्ते, मैं करता रहता  प्यार आहिस्ते-आहिस्ते, फिर तेरी याद आ गयी रात गुजरते-गुजरते ।। ----मिन्टू Pic- google से

इंतजार

वो नादान लड़कीं, मासूम , भोली सी, आज भी उसी पेड़ की छांव में करती है मेरा इंतजार, आज भी वो उसी उम्मीद में जी रही है कि मेरा साजन आएगा, मगर वक़्त को क्या भरोसा, उसकी आश को भी तोड जाएगा, दिल की साफ, मन की पवित्र चंचल अदाकारा वाली लड़की, अपना सबकुछ छोड़कर बस करती रही प्रकृति के साथ-साथ मेरा इंतजार, उसे क्या पता था किस्मत उसकिंकया रंग लाएगी मगर वो अडिग रही, तन से , मन से, और करती रही मेरा इंतजार उसी पेड़ की छांव में । ~~~मिन्टू

वो पागल लड़की

पागल सी लड़की, कोमल, नाज़ुक सी आँखों से करती थी वो शिकार अपने महबूब का, जुल्फों से फसा लेती थी, करती थी होंठो से घायल लफ़्ज़ों से चलाती थी खंजर अपने महबूब पर वो पागल सी लड़की, जब भी करती थी  सोलहों श्रृंगार मचलने लगते थे सरफिरे आशिक़ मछलियों की तरह, कोमल अदा की अदाकारा थी वो जो सजाते रहती थी शब्दो से दिल की बात कोरे कागज पर, जो लिखा करती थी अपने महबूब के नाम खत, वो पागल सी लड़की, कर देती थी अपनी मुस्कान से वार होते थे कई कायल उनके तो कई मर-मिटने को होते थे तैयार, जब भी पहनती थी हल्की कोई रंग के वस्त्र, भूल जाते थे सब कोई इश्क का मंत्र, सुध-बुध खो जाते थे सब जब देखा करते थे उसे राह में थी वो अपनी शहर की एक कली रहती थी गुमनाम मगर उसके भी होते थे नाम कई के होंठो पर तो कई के दिलो पर वो पागल सी लड़की आज भी किसी के इंतजार में खोती जा रही है अपना वजूद, अपना नाम, अपना काम.....