निकलते धार सी जो तुम गुस्सा दिखाते हो न,
वो भी इसी की तरह है एक जगह से दूसरे जगह जाती हुई
हरे भरे ख्यालो से निकलते हुए,
मन के पहाड़ो चट्टानों से होते हुए,
वो भी किसी शांत समंदर में जा गिरती है,
और
लंबे अरसे तक
लहरों की लहर झेलती हुई,
फिर से तूफान का रूप ले लेती है
न जाने कितनो के घर तबाह कर जाती है,
कभी तो समझो तुम ।
क्या बोलते हो ?
वो भी इसी की तरह है एक जगह से दूसरे जगह जाती हुई
हरे भरे ख्यालो से निकलते हुए,
मन के पहाड़ो चट्टानों से होते हुए,
वो भी किसी शांत समंदर में जा गिरती है,
और
लंबे अरसे तक
लहरों की लहर झेलती हुई,
फिर से तूफान का रूप ले लेती है
न जाने कितनो के घर तबाह कर जाती है,
कभी तो समझो तुम ।
क्या बोलते हो ?
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