कभी उन सजती हुई दीवारों पर मेरी ज़िक्र तो हो,
माँ हूँ तुम्हारी कभी तुझे मेरी फिक्र तो हो,
अपनी ज़िंदगी जप तप से तुझपे कर दिया कुर्बान
कभी तो उसकी भी इस पन्नो पर ज़िक्र तो हो,
माना कि वो तुम्हारी हमसफ़र है,
मगर इस सफ़रनामा का भी तो तुम्हे फिक्र हो
कभी उन सजती हुई दीवारों पर मेरी ज़िक्र तो हो।
माँ हूँ तुम्हारी कभी तुझे मेरी फिक्र तो हो,
अपनी ज़िंदगी जप तप से तुझपे कर दिया कुर्बान
कभी तो उसकी भी इस पन्नो पर ज़िक्र तो हो,
माना कि वो तुम्हारी हमसफ़र है,
मगर इस सफ़रनामा का भी तो तुम्हे फिक्र हो
कभी उन सजती हुई दीवारों पर मेरी ज़िक्र तो हो।
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