तुम तो मुझे लेखक ही समझते रह गए
शायद कभी मेरी शब्दों को समझा होता
तो शायद मैं आज
तेरे दिल के दरबार मे तानसेन होता,
तुम मुझे छेड़ पाती
हर बार
एक नया आलाप लगाती,
तुम्हरा जब मन करता
तो तुम मुझे सुन पाती
गहराई से,
मुझे समझ पाती
मन की परछाई से ।
~~मिन्टू
शायद कभी मेरी शब्दों को समझा होता
तो शायद मैं आज
तेरे दिल के दरबार मे तानसेन होता,
तुम मुझे छेड़ पाती
हर बार
एक नया आलाप लगाती,
तुम्हरा जब मन करता
तो तुम मुझे सुन पाती
गहराई से,
मुझे समझ पाती
मन की परछाई से ।
~~मिन्टू
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