उसके बाल बिखरे थे, माथे पर बिंदी कानों पे झुमके थे, गाल मख़मली सी, होंठो पर हल्की मुस्कान थी कत्थई साड़ी में जब वो राह चल रही थी गुलाबो के पत्ते बिखेरते हुए, लटक झटक कर वो बहुत खूबसूरत लग रही थी पाँव में पायल, चाल में हल्की शरारत लेकर जब वो ठुमक-ठुमक चल रही थी, मेरी आँखें थोड़ी अड़ गयी थी उसपर मैं हो चला दीवाना था उसका शायद वो मेरे शहर जैसी ही थी सुंदर, स्वच्छ, निर्मल, पवित्र वो मेरी झुमके वाली थी.. जब भी बिखेरती थी जलवा अपने अल्फाज़ो से न जाने कितने आह-वाह की तान छेड़ जाते थे, कई चुरा लेते थे उसके अल्फ़ाज़ तो कई उसके राह कदम पर चल पड़ते थे जो भी थी वो जैसी भी थी वो मेरी झुमके वाली थी वो मेरी झुमके वाली थी ।
दिखाई दिए भी तो ऐसे जैसे चांद हो गए, चले भी गए तो ऐसे जैसे मरीचिका हो गए।
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