कभी-कभी लोगों पर हँसी भी आती हैं और कभी-कभी बुरा भी लगता हैं।
हँसी इसलिए क्यों कि वो आपके साथ रहकर इतने बेवाकी से सफाई देते चलते रहते है कि वो अच्छे हैं, अपने या आपके साथ अच्छा करना चाहते हैं लेकिन इसके पीछे उलट हो जाता हैं।
बुरा इसलिए क्यों कि वो साथ होकर, दिखावा करके भी साथ नही होते। "वो ऐसे सकारात्मक के जगह नकारात्मक हो जाते हैं जैसे धूप में घनघोर काले बादल"।
वो बातें तो इतनी बड़ी-बड़ी करेंगे लेकिन जब बारी आएगी तो सबसे पहले पीछे कदम हटा लेंगे।
अगर कोई इंसान तनाव में या तनाव में आकर कोई गलत कदम उठा लेता हैं तो उसके बाद कि जो परिस्थिति उत्पन्न होती है ,जो भी बातें अखबार में या समाचार चैनल पर देखते है तो
"कहते है उन्हें ऐसा नही करना चाहिए था, ये कदम उठाने से पहले बात करनी चाहिए थी, हमलोग किसलिए है ? उसने गलत किया, उसका परिवार का क्या होगा... न जाने ऐसे कितने सवाल कर बैठते है , न जाने कितने सवाल गोली की तरह दाग देते है।"
लेकिन जब तनावग्रस्त व्यक्ति ,मित्र,परिवार का कोई सदस्य यही बात उसके सामने रखता हैं या अपने आप को उस जगह से उभारने की कोशिश करता है तो ऐस कितने लोग है जो उनकी सहायता करने के बावजूद ताने मारते है, उनके हौसले को पैरों पर नतमस्तक करने की भरपूर कोशिश करते हैं।
जहाँ बड़े-बड़े लोग के सामान खरीदने को आगे आ जाते हैं। वही वो व्यक्ति चिल्लाते-चिल्लाते थक जाता हैं कि भाई उसकी शॉप से लेना, या उसकी हेल्प करना, उसका स्टार्टअप हैं उसे मज़बूत करना हैं। लेकिन हम या आप ऐसा नही करते ये सोचकर कि वो सस्ता दे रहा, महंगा दे रहा या उसका प्रोडक्ट अच्छा नही है।
जहाँ हम तमाम तरह की बातें करते हैं, सोच रखते है वहाँ एक बात ये भी रखे और उसे पूरा करे कि वो खड़ा होना चाहता है खुद के पैरों पर तो उसे खड़ा करे, मज़बूत करें सिवाय बतकही के, ताने के ।
बड़े लोग तो जी लेंगे लेकिन उनका क्या होगा जो शुरुवाती दौर में लड़खड़ा रहा हैं उसके लिए तो एक ही रास्ता है लोन चुकता करते-करते मर जाना फिर भी पीछे कर्ज छोड़ जाना या आत्महत्या कर लेना।
बाकी दिखावा में हम इंसान से आगे कोई प्रजाति नही भले ही सामने वाला तड़प कर मर जाए, या ऐसे परिस्थिति उत्पन्न हो जाये जहां से उसे ऐसा कदम उठाना पड़े।
कभी स्थिर होकर हमें सोचना चाहिए कि हम किसके पीछे भाग रहे है, उस से मुझे या उसे क्या फायदा हो रहा? क्या वो उभर रहा है तनाव से, क्या मेरी सहायता से उसे आगे बढ़ने की हिम्मत मिली ?
वैसे तो समाज में बातें होते ही रहेंगी किसी के मौत पर, उसपर चर्चा भी होगी किसी चौक-चौराहों पर , किसी चाय-चौपाल पर । लेकिन याद रखना कि उस बात का क्या मतलब हुआ, उस बात का क्या हल निकला जिसपर इतने गहन चर्चे किये, संसद में सवाल किये ? आखिर ऐसा क्यों? क्या भारत के लोगो मे इतनी क्षमता नही की एक-दूसरे की सहायत कर, एक चैन बना इसे बचाया जा सके ?
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