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खोत बा बचपन

 खोत बा बचपन

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"एक समय रहल जब हमनी के शिकार करत रहीं

अब हमनी के शिकार होत बा ।"


हम बात कर रहल बानी बचपन से जुड़ल वो सब घटना के जवन एक फूल, पौधन के खूबसूरती और विशाल रूप दिहलस ।

 हम बात करम मजबूत नींव से तैयार होत मकान के।

 हम बात करम आँगन में चहक़त चिड़ैया ,तुलसी के ।


एक समय रहल जहां आधुनिकता से दूर-दूर तक नाता न रहल, सब भागत रहें , जुड़ल न चाहत रहे

अब समय अइसन आ गईल बा कि एकरा बिना काम ठप पड़ जाला ।


बचपन के रूप खरा सोना हs।

बचपन मे मिलल प्यार, स्नेह, दुलार, मार 

ई सब अनमोल खज़ाना है 

जवन कबहुँ पूरा न क़ईल जा सकेला एक समय बीत जइला पर ।

बचपन पर जब से आधुनिकता , दिखावा आउर दबाब के दीमक लागल बा का कहीं हम ,

बचपन एकदम बिखर गईल बा।

जहां एक तरफ खुशियां चहक़त रहें, प्रेम मिलत रहे

संस्कृति के साथ-साथ 

आशीर्वाद मिलत रहें और प्रकृति पनपत रहें ऊहे अब धीरे-धीरे सब खत्म हो रहल बा।


इहवाँ दुगो बात करम 

एक त आधुकनिकता के हवा में बचपन के खेल हवा में उड़ गईल 

आउर दूसरा कोरोना काल मे बचन के खुशियां दबाब में कही कौनो कोना में दब गईल ।


जहाँ ई पूस में , कार्तिक माह में

कंचा, लट्टू, तिलँगी,गुली डंडा , कबड्डी,अंताक्षरी ,कित-कित,

कमल फूल, पोसम पा जइसन खेल से 

गली, मैदान गुलज़ार  रहत रहे ऊहे अब ई समय मे 

बचन सब मोबाइल में घुस गईल ।

ई जवन दौर चल रहल बा 

आवे वाला पीढ़ी आउर समय मे एकदम विलुप्त हो जाई ई सब खेल

आउर खाई में गिरत दिखी खुशी, अपनापन ,प्रेम-स्नेह ,सब्र ।


कहीं-कहीं हम दूर दृष्टि से ई देखतो बानी 

धीरे-धीरे सब लोगन से रिश्ता में मजबूती की जगह कड़वाहट पनपत बा,

हमार बात मानी सबे बचा ली ये बचपन के,

खेल के, रिश्तन के ।


इहे बचपन ह जवन जोड़ के राखेला घर-परिवार के, देश के, खेल के, आत्मसम्मान आउर सब्र के ।


"राउर सबे कबहुँ सोची, ये बात पर विचार करी

आखिर काहे हमनी के अइसन हो रहल बानी

काहे दीमक लग रहल बा बचन में, संस्कृति में 

आखिर कहां हमनिक सबसे भूल-चूक हो रहल बा ?

ई काम बुजुर्ग लोग पर छोडला से काम न चली

कहीं-कहीं बचन आउर जवान लइकन पर छोड़ दी

उनकरा से बात करी, उनकरा के बताई बचपन का हs

खेल का हs, बाप-माई,दादा-दादी,नाना नानी जइसन कीमती ख़ज़ाना का हs?


"हम त सब बात के एक बात कहम

एकरा के संग्रहालय बनावे से पहले

एकरा के एक नया रूप दिहल जाये

काहे की परिवर्तन जवन बा 

उ संसार आउर प्रकृति के नियम हs

एकरा के बचाकर राखल ई हमनी के

आउर आवे वाले पीढ़ी के कर्तव्य भी बा । "


आई दूसरा जवन बात बा

उ बा "दबाब "

 अभी जवन परिस्थिति से गुजर रहल बानी

ओकरा से त सबे केहू अवगत बा

कोरोना से..

कोरोना त अइसन दीमक की तरह लागल की सबे कुछ बर्बाद कर दिहलस ।

आई हम बात करम

कोरोना में दबाब के,

घृणा के, मानसिक स्थिति के ।


ये काल में सबे लोग पेराइल बा

बच्चन से लेकर बुजुर्क तक

लेकिन हम बात करम बच्चन के।।


"जब से ई चढ़ल बा कोरोनवा 

बवाल कईले बा

बच्चन के संगे-संगे बुजुर्गों के तबाह कईले बा "


ई काल में, शिक्षा के जवन गति भईल बा

ओकरा से बच्चन पर बहुत असर पड़ल बा

जहां सब कुछ समय से होत रहे उहे अब सब समय पर नइखे होत

पढ़ाई के संगे-संगे कुटाई आउर मानसिक दबाब अइसन बनल बा कि खुशी छीन गईल बा।

स्कूल बंद रहलाs से जहां खुशी चौगुना होखे के रहे

उ खुशी सिमट के रह गईल बा दबाब में।

पढ़ाई के साथ-साथ घरों के काम करवाईल जात बा

दिनभर पढें के, याद करे के, धमकी दिहल जात बा

 दबाब में लइकन के दुनो तरह से दिक्कत बा

मानसिक आउर शरीरिक।


न त मन से खुश बा आउर न त शरीर पर खाना लागत बा ।

जवन बचपन सोच, खुशी ,उत्सुकता आउर विकसित होखे के चाही उहे बचपन सिकुड़ के रह गईल बा

उहे ऑनलाइन क्लास , मोबाइल में गेम, आउर गाना तक सीमित रह गईल बा।

एक नज़र से जुड़ल ठीक बा लेकिन एक साइड से 

बचपन खो रहल बा डिजिटल जमाना में ।


हम त एतने कहम

बचपन के संगे-संगे बचा ली

खेल के, खुशी के, रिश्तन के

लइकन के पढ़ाई लेकिन बचपन के जीवित रख के

उनकरा ऊपर दबाब देकर नाही

बल्कि खुशी देकर ,

अपनापन, प्यार-दुलार, स्नेह देकर

बचा ली उनकरा के 

ताकि मजबूत नींव जवन बा

एक समय आइला पर 

एक विशाल पेड़ बन सके,

एक मजबूत दीवाल बन खड़ा रहे ।

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