हम पढें इसलिए कि विकास हो ,तरक्की हो
संस्कार सीखें, लोगो को जान सकें
उन्हें समझ सकें
परन्तु हम सब इन चीज़ों से असल मायने में उतना ही दूर चले गये जितना पास जाना था ।
झोपड़ी में पढ़ने के वजाए पढ़े आधुनिक खेल मैदान के स्कूल में
घर छोड़ा, पढ़ने और नौकरी की तलाश में
मिट्टी के मकान छोड़ गए पक्के मकानों में रहने लगे
रिश्ते बनाने की जगह हम पैसे बना रहे
पैसे तो बन रहें मगर
रिश्ते, रिश्तेदार सब दूर हो रहें
प्रेम की वजाये भीतर पनप रहा है ईर्ष्या,
जलन....
आखिर क्यों ?
किस तरफ जा रहा है ये जीवन, ये काल
प्रेमी बिछड़ रहे सिर्फ इसलिए कि
वो योग्य नही ।
योग्य , प्रेम के लिए नही अपितु घर- संसार चलाने के लिए
उन्हें लगता है आज खाली हाथ है तो कल भी रहेगा
वैसे ये बात तो सत्य है खाली हाथ तो रहेंगे लेकिन
किसी झूठी आस से तो अच्छा रहेगा
किसी की उम्मीदों को तार-तार तो नही करेगा ....
खैर
जीवन एक काल खंड है जहाँ
अतीत के संग- संग
कर्म अपना दम-खम दिखाती है ।
@tumharashahar
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें