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कोई बात हो

यूँ नज़रों का मिल जाना एक गुनाह है तो ये गुनाह हो जाए तो कोई बात हो आकर पास मेरे तुम बैठ जाओ कर जाओ तुम दिल को घर , तो कोई बात हो, तुम करती रहना ये साज-सज्जा नखरे-वखरे जो पहली मुलाकात हो तो कोई बात हो, ठहर जाना तुम उस घर जो सजा पाओ  ज़िन्दगी में तो कोई बात हो, मिलेंगी वो खुशियां-वूशिया जहाँ सजन से दिन-रात  मुलाकात  हो तो कोई बात हो, लगा लेना अपने सपनो में पंख हौसलों के समझ जाओ तुम ये बतिया तो कोई बात हो यूँ ही कट  जाएगी ज़िन्दगी पाकर सजन जैसा सखियां जो तुम पास आकर रुक जाओ तो कोई बात हो... यूँ नज़रों का मिल जाना एक गुनाह है तो ये गुनाह हो जाए तो कोई बात हो.....

गुलाब नही उसका मन है

 जब कोई लड़कीं किसी को देती है गुलाब तो वो सिर्फ गुलाब नही देती है वो देती है  अपना सबसे अजीज चीज वो देती है अपना मन, वो देती है अपना सुख, दुख अपना जीवन वो कर देती है समर्पण खुद को ताकि उसे वो सजा सके, सँवार सके रख सके उसे सहेज कर वो करती है हर रात उसका इंतजार  ताकि वो कर सके कुछ गुफ्तगू  वो बता सके कि मैं क्या हूँ वो कर देती है अपना सब कुछ निछावार अपना एक ख़्वाब के लिए वो हो जाती है उस समय के लिए  या यूं कहुँ वो हो जाती है पूरा का पूरा अपने महबूब का वो निकाल कर रख देती है सबकुछ उसके सामने ताकि वो लिख सके एक नया इतिहास ज़िन्दगी का ।

लड़कियां लिखती है प्रेम

लड़कियां लिखती है प्रेम मन की लड़के लिखते है प्रेम तन की नही लिखते वो जज़्बात मन की लडकिया लिखती है कथा अंतर्मन की नही लिख पाते लड़के चलते रहते है दोनों के मन मे शीत युद्ध पिसता जाता है  कोरा कागज और कलम इन दोनों के बीच बच जाता है तो सिर्फ अंर्तमन का  एहसास ज़िसे पढ़कर लोग समझते है कितना गहरा  है ये प्रेम अगर सच मे कहूँ तो उन्हें ये नही पता लगता कि कितने गहरे डूबकर लिखी होती है  कल्पना होती है सच होती है ये  कोरे कागज पर  स्याही के निशान ।

बनाना है तुम्हे

मैं तुम्हे चूमना चाहता हूँ सर् से पांव तक मैं तुम्हे लिखना चाहता हूं कविता से कहानी तक मैं तुम्हे बनाना चाहता हूं शहर से गाँव तक मैं तुम्हे रंगना चाहता हु प्रेम से इंद्रधनुष तक मैं तुम्हे सींचना चाहता हूं दुख से सुख तक मैं तुम्हारा होना चाहता हूं आज से लेकर अनंत  तक । ©मिन्टू

खत

गर वो खत पढ़ लिया होता लिख दिया होता तुम्हे जवाब देर हो चुकी अब तो बहुत तुम अब, लिखी जाती हो दूसरो के खतों में दूसरों के स्याही से, किसी दूसरे के जज़्बात के साथ और मैं तलाश रहा हूँ तुम्हारी ही जैसी कोई ताकि ज़िंदा रहूँ और लिखता रहूँ ताउम्र कोई कविता, कोई गज़ल या कोई कहानी या फिर लिखूं अंदर दबे जज़्बातों को और बन जाऊं पुरातत्व विभाग। ~~~मिन्टू

कुछ अधूरा सा

कुछ अधूरा सा - खुद में कमी हो तो हमलोग दूसरों को दोषी ठहराने में कोई कसर नही छोड़ते अरे इतना फुरसत भी किसे रहता है जो तुम्हे याद करे और वैसे भी "काम के न काज के दुश्मन अनाज के" न जाने कितने बरस हो गए आजतक तुमने मुझे दिया ही क्या है ? बस जब देखो तब शिकायतों के लड़िया लगा देते हो अरे वो तो  हम है जो आजतक उफ्फ तक नही किए और तुम्हारा क्या है घर से बाहर, बाहर से घर और लाए भी तो मेरे लिए क्या... बस शिकायतों की फुलझड़ियां और वो भी इस दीवाली हमपर  ही .... अरे जाओ भी अब यहाँ से , हमे काम करने दो अच्छा ठीक है, जा रहे है इतना भी न इतराओ अपने काम पर हम है तो इतना सहायता कर भी देते है दूसरा कोई रहता न तो दर्जन भर सुनाता और  कुछ देता भी नही....

फिर तेरी याद

फिर तेरी याद आ गयी रात गुजरते-गुजरते, दिन ढल रही है जज़्बात  संग चलते-चलते, मर्म इतना सा है तू रहती पास हफ्ते-हफ्ते, मैं करता रहता  प्यार आहिस्ते-आहिस्ते, फिर तेरी याद आ गयी रात गुजरते-गुजरते ।। ----मिन्टू Pic- google से

इंतजार

वो नादान लड़कीं, मासूम , भोली सी, आज भी उसी पेड़ की छांव में करती है मेरा इंतजार, आज भी वो उसी उम्मीद में जी रही है कि मेरा साजन आएगा, मगर वक़्त को क्या भरोसा, उसकी आश को भी तोड जाएगा, दिल की साफ, मन की पवित्र चंचल अदाकारा वाली लड़की, अपना सबकुछ छोड़कर बस करती रही प्रकृति के साथ-साथ मेरा इंतजार, उसे क्या पता था किस्मत उसकिंकया रंग लाएगी मगर वो अडिग रही, तन से , मन से, और करती रही मेरा इंतजार उसी पेड़ की छांव में । ~~~मिन्टू

वो पागल लड़की

पागल सी लड़की, कोमल, नाज़ुक सी आँखों से करती थी वो शिकार अपने महबूब का, जुल्फों से फसा लेती थी, करती थी होंठो से घायल लफ़्ज़ों से चलाती थी खंजर अपने महबूब पर वो पागल सी लड़की, जब भी करती थी  सोलहों श्रृंगार मचलने लगते थे सरफिरे आशिक़ मछलियों की तरह, कोमल अदा की अदाकारा थी वो जो सजाते रहती थी शब्दो से दिल की बात कोरे कागज पर, जो लिखा करती थी अपने महबूब के नाम खत, वो पागल सी लड़की, कर देती थी अपनी मुस्कान से वार होते थे कई कायल उनके तो कई मर-मिटने को होते थे तैयार, जब भी पहनती थी हल्की कोई रंग के वस्त्र, भूल जाते थे सब कोई इश्क का मंत्र, सुध-बुध खो जाते थे सब जब देखा करते थे उसे राह में थी वो अपनी शहर की एक कली रहती थी गुमनाम मगर उसके भी होते थे नाम कई के होंठो पर तो कई के दिलो पर वो पागल सी लड़की आज भी किसी के इंतजार में खोती जा रही है अपना वजूद, अपना नाम, अपना काम.....

कुछ न लिखो

कुछ न लिखो, चंद ख़्वाब लिखो, चंद छंद लिखो, चंद अल्फ़ाज़ लिखो, कुछ हाल लिखो, कुछ चाल लिखो, कुछ पुरानी कुछ नई सवाल लिखो,  बस लिखो गुलाल ज़िन्दगी के, कुछ न लिखो, चंद प्यार, चंद तकरार लिखो, चंद सपने , कुछ अपने लिखो, ज़िन्दगी से जुड़े सारे वो पल लिखो, लिखो माँ का आँचल, लिखो पिता का सहारा, लिखो बहना का प्यार, कुछ मुझे लिखो, कुछ घर-परिवार की लिखो कुछ न लिखो चंद ख़्वाब लिखो, चंद छंद लिखो लिखो तुम कुछ घर-परिवार लिखो ।

प्रिये

वो मेरी सुर थी वो मेरी लय थी वो मेरी गीत थी मेरी संगीत थी, वो मेरी नृत्य थी मेरी नृत्यांगना थी, वो छेड़ जाया करती थी अक्सर मुझे मैं बन जाया करता था उसका वाद्ययंत्र, रम जाया करता था उसके संग-संग बनते-बिगड़ते एक नए सुर में पहचान बनती एक नए रंग रूप में ऐसी थी मेरी प्रिये

सादगी वाली लड़की

उसकी आवाज़ मधुर है, वो अदाओं से भरपूर है रहती तो गंगा तट पर है मगर हल्का सा भी न गुरूर है न गुमान है वो सुंदर है, सुशील है सब से अनोखी, अलबेली है, खुद में मस्तमॉली, छरहरी ,नाजूक, छुईमुई सी है उसके जुल्फों जब भी चूमि है उसको गालों को, झलकती है मुस्कान और सादगी, जो भरपूर है ,भोली है मगर सबकी चहेती बोली है वो गंगा तट की छोरी है वो अनोखी अलबेली है उसकी बातों से झलकती मासूमियत, प्यार है वो अपने आँगन की खुशबूदार पेड़ है देती है छांव करती है रखवाली मृदा की वो अनोखी अलबेली वो गंगा तट की छोरी है ।

एक पहाड़न

वो जानती है कि मुझे कैसे मनाना है वो हर बार जीत जाती है मेरी हार से खुद को बदनाम न कर मेरा नाम कर जाती है ये वही सुनहरे बालो वाली लड़की है, जो उस रात मिली थी मुझे पीपल पेड़ के पास, कुछ आस लिए, कुछ ख्याब लिए टूटना जानती है वो म गर जुड़ने के लिए उसे किसी का साथ चाहिए, वो रहना चाहती है सबके साथ मगर उसे उसकी तन्हाई ने रहने नही दिया, मान रखना जानती है वो सबका मगर उसे किसी ने समझा ही नही आजतक, वो वही लड़कीं है पहाडोवाली जो जुगनुओं सी रात भर जगी रहती है मगर आंखों में टिमटिमाते तारो की झलक की जगह मोतियों जैसी बूंद रहती है पानी की, ये वही कोमल कली है, खुशबूओं से भरी, गुलमोहर सी चमक वाली, महफ़िल लूट ले जाने वाली, खुले मन की,  स्वतंत्र विचार की, पहाडोवाली लड़कीं न जाने कौन सी मिट्टी की बनी है ये शायद कुछ अंश है चट्टानों वाली, नमी है , हरियाली है, ठंडक है इसकी आंखों में, मगर जैसी भी है , है तो हिम्मत वाली क्यों कि ये वही लड़कीं है पहाड़ोवाली पहाड़ोवाली.....

झुमके वाली लड़की

उसके बाल बिखरे थे, माथे पर बिंदी कानों पे झुमके थे, गाल मख़मली सी, होंठो पर हल्की मुस्कान थी कत्थई साड़ी में जब वो राह चल रही थी गुलाबो के पत्ते बिखेरते हुए, लटक झटक कर वो बहुत खूबसूरत लग रही थी पाँव में पायल, चाल में हल्की शरारत लेकर जब वो ठुमक-ठुमक चल रही थी, मेरी आँखें थोड़ी अड़ गयी थी उसपर मैं हो चला दीवाना था उसका शायद वो मेरे शहर जैसी ही थी सुंदर, स्वच्छ, निर्मल, पवित्र वो मेरी झुमके वाली थी.. जब भी बिखेरती थी जलवा अपने अल्फाज़ो से न जाने कितने आह-वाह की तान छेड़ जाते थे, कई चुरा लेते थे उसके अल्फ़ाज़ तो कई उसके राह कदम पर चल पड़ते थे जो भी थी वो जैसी भी थी वो मेरी झुमके वाली थी वो मेरी झुमके वाली थी ।

गाँव प्रेम

यूँ ढूंढने से क्या मिलेगा साहिबा जब पूरा शहर ही ईट का हो, ज़रा घूम आओ वो गाँव जहाँ पूरा घर मिट्टी का हो, तुम पाओगे वो संस्कार, वो प्यार तुम ढल जाओगे उस आकार, फिर बनेगी तुम्हारी मिट्टी सी सौन्धी खुश्बू वाली इश्क़ की कहानी, इश्क़ की खुश्बू , जो हर मौसम आबाद रहेगी, महक उठेगी बारिश की बूंदों से जब पड़ेगी, इश्क़ की मिट्टी से पूरा गांव महक उठेगा, और करता रहेगा सदा के लिए इश्क़ सनम से । ~~~~मिन्टू

ठहर सको

अभी थोड़ा पीछे गया हूं, जो साथ चल सको तो ठहरो अभी थोड़ा वक्त लगेगा तुम तक आने में, जो तुम ठहर सको तो ठहरो वक़्त साथ दे रहा कभी कभी, तुम जीवन भर साथ दे सको तो ठहरो मेरा प्रेम तो तुम तक ही सीमित है, जो तुम अनंत तक चल सको तो ठहरो आशियाना बनाएंगे कविताओं की, जो तुम कविता बन सको तो ठहरो कोई इल्ज़ाम लग जाये मुझपर, जो तुम संभाल सकोगी तो ठहरो साथ रहेगा सदैव मेरा, जो तुम खेवइया बन सको तो ठहरो अभी थोड़ा वक्त लगेगा तुम तक आने में, जो तुम ठहर सको तो ठहरो अभी थोड़ा पीछे गया हूं, जो साथ चल सको तो ठहरो।।

कभी बन न सका

भावनाओ में बह जाता हूँ लेकिन कभी नदी न हो सका, गुस्सा हो जाता हूं मगर कभी पत्थर न हो सका, टूट जाता हूँ मगर कभी काँच न हो सका, बिखर जाता हूं लेकिन कभी किसी के  राहों का फूल न हो सका, सिमट जाता हूँ मगर कभी पन्ना न हो सका , लिख पाता हूँ लेकिन कभी कलम न हो सका । ~~~~मिन्टू

शिकायतें

आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे एक दूसरे पर, गर दिल मे क्या है एक दूसरे के, ये जानने की कोशिश नही की कभी बिछड़ते गए समय के साथ-साथ, टूटते-बिखरते , हालात बिगड़ते, अपना अजीज खोया, बिलखते रहे, इंतज़ार करते रहे, और आज तुम फिर याद आ गए, और छलक आए आँसू इन आँखों से जिसमे तुम कभी ख़्वाब देखा करती थी ।

उड़ान

उड़ान देखने आया हुँ आसमान तक कि जमीन से, क्या ज़िन्दगी की उड़ान भी ऐसी ही है जैसे इस वायुयान की या फिर पक्षियों सी , क्या तुम बता सकते हो तकदीर के लेखक ? क्या तुम उड़ना सीखा सकते हो सफर के राहगीर ? या मैं भी वैसे ही वापस लौट जाऊँगा दाने चुंग-चुंग  कर या कोई इतिहास रच जाऊंगा लड़-लड़ कर, क्या तुम साथ दोगे मेरे जन्मदाता उड़ान भरने में मेरी या तुम भी वही छोड़ जाओगे जहाँ से मुझे उड़ान भरनी है ? ~~~मिन्टू

नदी जैसी तुम

जब कोई नदी जैसा मिलता है न,  मन करता  उसके साथ-साथ बहता जाऊ, बहता जाऊं जहाँ-जहाँ वो बहती है, टकराता जाऊ उन चट्टानों से भी, छूता जाऊ उस धरती को भी बस बहता जाऊ  उसके संग-संग । ~~मिन्टू Pic- अमित शाह(fb)