यूँ नज़रों का मिल जाना एक गुनाह है तो ये गुनाह हो जाए तो कोई बात हो आकर पास मेरे तुम बैठ जाओ कर जाओ तुम दिल को घर , तो कोई बात हो, तुम करती रहना ये साज-सज्जा नखरे-वखरे जो पहली मुलाकात हो तो कोई बात हो, ठहर जाना तुम उस घर जो सजा पाओ ज़िन्दगी में तो कोई बात हो, मिलेंगी वो खुशियां-वूशिया जहाँ सजन से दिन-रात मुलाकात हो तो कोई बात हो, लगा लेना अपने सपनो में पंख हौसलों के समझ जाओ तुम ये बतिया तो कोई बात हो यूँ ही कट जाएगी ज़िन्दगी पाकर सजन जैसा सखियां जो तुम पास आकर रुक जाओ तो कोई बात हो... यूँ नज़रों का मिल जाना एक गुनाह है तो ये गुनाह हो जाए तो कोई बात हो.....
दिखाई दिए भी तो ऐसे जैसे चांद हो गए, चले भी गए तो ऐसे जैसे मरीचिका हो गए।