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संदेश

ठहर सको

अभी थोड़ा पीछे गया हूं, जो साथ चल सको तो ठहरो अभी थोड़ा वक्त लगेगा तुम तक आने में, जो तुम ठहर सको तो ठहरो वक़्त साथ दे रहा कभी कभी, तुम जीवन भर साथ दे सको तो ठहरो मेरा प्रेम तो तुम तक ही सीमित है, जो तुम अनंत तक चल सको तो ठहरो आशियाना बनाएंगे कविताओं की, जो तुम कविता बन सको तो ठहरो कोई इल्ज़ाम लग जाये मुझपर, जो तुम संभाल सकोगी तो ठहरो साथ रहेगा सदैव मेरा, जो तुम खेवइया बन सको तो ठहरो अभी थोड़ा वक्त लगेगा तुम तक आने में, जो तुम ठहर सको तो ठहरो अभी थोड़ा पीछे गया हूं, जो साथ चल सको तो ठहरो।।

अकेलापन

तुम क्यूँ रहते हो इतना दर्द मे ?  सिर्फ इसलिए न कि इश्क़ कर बैठते हो सबसे, अल्फाज़ो से, कविताओं से, उसकी लिखी जज़्बातों से.... तो सुन लो तुम अकेले आये थे अकेले ही जाओगे वैसे भी तुम आज अकेले ही हो आज पहली बार एहसास हो रहा तुम्हरा( माँ और पापा), पता नही जब तुम थी तो मैं बिखरने से नही डरता था, नही डरता था टूटने से मगर आज फिर से टूट गया , बिखर गया जानती हो, तुम्हारे होने से मुझे एक ऊर्जा मिलती थी मगर अब मैं अब खुद की ही ऊर्जा में जलने लगा हुँ, हो सके तो संभाल लो मुझे उस ताप में जलने से तुम सुन रही हो न माँ.....😢😢😢 ~~~मिन्टू

मेरा प्रेम

वो लिखती है बहुत कमाल , निकाल रख देती है दिल पन्नो पर, मजबूर कर देती है पढ़ने को, वो बहुत लाजवाब है वो नायाब तोहफा है मेरे लिए, मेरी नही है तो क्या हुआ जिसकी भी है वो किसी कोहिनूर से कम नही क्यूँ की वो लिखती है बहुत कमाल, निकाल रख देती है दिल पन्नो पर मैं हर बार कायल हो जाता हुँ उसकी कलम का, मैं कायल हो जाता हूँ उसके अल्फ़ाजो से पिरोए माला का, मैं डूब जाता हूं उसकी लेखनी में, क्यूँ की वो है बहुत कमाल, मेरी नही है तो क्या हुआ जिसकी भी है वो है बहुत लाजवाब, वो है कोहिनूर वो है मेरा प्यार वो है नायाब तोहफा मेरी ज़िंदगी का, मैं संभाल कर रखना चाहता हूं उसे किसी म्यूजियम में रहते है जैसे अज़ीज़, नायाब तोहफे कोई इतिहास जैसा सजा रखा होता, क्यों कि वो भी तो मेरे लिए नायाब है, उसका प्यार मेरे लिए तोहफा । ~~~मिन्टू

कभी बन न सका

भावनाओ में बह जाता हूँ लेकिन कभी नदी न हो सका, गुस्सा हो जाता हूं मगर कभी पत्थर न हो सका, टूट जाता हूँ मगर कभी काँच न हो सका, बिखर जाता हूं लेकिन कभी किसी के  राहों का फूल न हो सका, सिमट जाता हूँ मगर कभी पन्ना न हो सका , लिख पाता हूँ लेकिन कभी कलम न हो सका । ~~~~मिन्टू

मेरी राह

तुम चलती रही उस राह और मैं कब तेरी राह का राहगीर हो गया पता ही नही चला, तेरी बिखरती मुस्कान को समेटते रहा मगर कब रात हो गयी पता ही नही चला, चांदनी रात में तुम और खूबसूरत  लगने लगी तुम्हें देखते रहे रात के परहेदार और मैं कब तेरा काजल होता गया पता ही नही चला, तुम चलती रही उस राह और मैं कब तेरी राह का राहगीर हो गया पता ही नही चला । ~~~मिन्टू

शिकायतें

आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे एक दूसरे पर, गर दिल मे क्या है एक दूसरे के, ये जानने की कोशिश नही की कभी बिछड़ते गए समय के साथ-साथ, टूटते-बिखरते , हालात बिगड़ते, अपना अजीज खोया, बिलखते रहे, इंतज़ार करते रहे, और आज तुम फिर याद आ गए, और छलक आए आँसू इन आँखों से जिसमे तुम कभी ख़्वाब देखा करती थी ।

उड़ान

उड़ान देखने आया हुँ आसमान तक कि जमीन से, क्या ज़िन्दगी की उड़ान भी ऐसी ही है जैसे इस वायुयान की या फिर पक्षियों सी , क्या तुम बता सकते हो तकदीर के लेखक ? क्या तुम उड़ना सीखा सकते हो सफर के राहगीर ? या मैं भी वैसे ही वापस लौट जाऊँगा दाने चुंग-चुंग  कर या कोई इतिहास रच जाऊंगा लड़-लड़ कर, क्या तुम साथ दोगे मेरे जन्मदाता उड़ान भरने में मेरी या तुम भी वही छोड़ जाओगे जहाँ से मुझे उड़ान भरनी है ? ~~~मिन्टू