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संदेश

वेक उप(up)

मैं उठता हूँ तेरे ख्यालो से तेरे सीख से तेरे चाय से मैं उठता हूँ तेरे संस्कार से तेरे आवाज़ से तेरे प्यार से मैं उठता हूँ अपने माँ से उसके त्याग से उसके बलिदान से

देश भक्ति

धरती के रंग में रंग गए  जो , वो सिंह, सुख और राज थे । तीनो ने जो कर दिखाया लाज बचाई माँ की,  हँसी खुशी फांसी चढ़ गए जो  वो धरती के  लाल थे । रंग गए जो भक्ति के रंग में  सिंह , सुख और राज थे।

प्यासा हूँ

इश्क़ का तो पता नही मगर इश्क़ की तलाश में भटकता राही हूँ, हर किसी से मिल जाता हूँ इश्क़ हूँ फरेबी नहीं, राही इश्क़ से जानिए या इश्क़ से बस प्यासा हूँ प्यासा हूँ प्यास हूँ

तुम तक

तुम्हारी नामौजूदगी में हमने साहित्य को चुन लिया, अब तो इसी से हर बाते होती है, शिकवे, गिले, और इश्क़ भी, मगर जानती हो, इस तक पहुँचने के लिए भी न मुझे तुमसे होकर गुजरना ही पड़ता है, और मेरा इश्क़ हर रोज़ जवां हो उठता  है।

त्याग

बाबा जो ऐसे देखन मैं रोज़ पढने को जाई उसे कितनी पीड़ा सही ये एहसास मोहे रास न आयी, मैं पढ़ के जग नाम कमाऊ बाबा ये आश लगायी उसे कितनी पीड़ा सही ये एहसास मोहे रास न आयी।

चुपके से

अच्छा सुनो ये जो तुम चुपके चुपके मेरे वॉल पढते हो न इश्क़ की पहली सीढ़ी है थोड़ा सम्भल कर चढ़ना कही गिर गए न तो ..... तो क्या... तो मैं भी गिर जाऊंगी... समझे तुम... और हां सुनो.. जब एक बार आ जाओगे न तो जाना नही छोड़ कर.... वैसे भी सब चले जाते है ...... अगर तुम गए न तो मेरी साँसे भी लेते जाना ... समझे तुम...

सच

ये जो तुम कहते हो न कि मेरी उम्र बढ़ रही है मैं आगे बढ़ रहा हूं मगर सच तो ये है कि तुम मौत की ओर जा रहे हो धीरे धीरे कुछ दर्द लेकर तो कुछ मीठा दर्द लेकर तुम तो आज भी सन्देह में जी रहे हो सत्य से जिस दिन अवगत हो गए न तुम उस दिन से ये मोह, माया त्याग कर सिर्फ प्रेम करोगे प्रकृति से।