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मुस्कान देखोगे

मुस्कान देखोगे अरे जाओ भी पहले इसके पीछे झाँक कर तो आओ.... चाल देखोगे अरे जाओ भी पहले कदम तो मिलाओ तुम कोई खुदा हो अरे जाओ भी विश्वास जगाकर तो लाओ तुम शायर हो अरे जाओ भी अल्फ़ाज़, छंद तो उठा लाओ अरे, क्या बोला तुम बेरोजगार हो अरे जाओ भी सबके चेहरे पर मुस्कान तो लाते हो इस से बड़ा और क्या चाहिए तुम्हें ..... ©मिंटू/@tumharashahar

गाँव हो जाना

मेरे लिए तुम जितनी प्यारी और मासूम हो उतना ही मेरा लिए मेरा गाँव भी है तुम्हे देखना एक गाँव को देखने जैसा ही तो है या यूं कहूँ तुम्हारे अंदर पूरा गांव समाया हुआ है मुझे कभी कमी महसूस नही हुई गाँव की जब मैं तुम्हारे इर्द-गिर्द रहा हूँ  बस ये हुआ है कि मैं गले नही लगा पाया हूँ अबतक मगर उम्मीद है कि मैं तुम्हारे संग-संग रहकर एक दिन पूरा गांव हो जाऊंगा और  फिर हम दोनों के पीछे-पीछे ये शहर दौड़ा आएगा।  ये शहर ,  जो पहले कभी गाँव हुआ करता था और हम भागते रहते थे इसके पीछे-पीछे मगर वो तो तुम जानती ही हो जो चीज़ जहाँ से शुरू होती है वही आकर खत्म भी होती है। जैसे शून्य का सफर शून्य तक जन्म का सफर जन्म तक ठीक उसी तरह "गाँव का सफर गाँव तक " और इस तरह से तुमसे मिलकर मेरा गाँव हो जाना  एक बार फिर से दर्शा गया ये कथन...  देखो तुम गाँव ही रहना ताकि मैं तुम्हें तलाशते शहर से गाँव हो जाऊं।  ठीक है न....  ©मिंटू/@tumharashahar

प्रेम

आवारा मन,आवारा लड़का का कोई शहर नही होता कुछ धुन, छंद , अल्फ़ाज़ होते है इनके जिससे कर देते है साजो-श्रृंगार काल्पनिक रूप में स्त्रियों की और साक्षात दर्शन पाने पर हो जाते है मंत्रमुग्द , और साध लेते है चुप्पी बस एकटक निहारते रहते है । ©मिंटू/@tumharashahar

प्रेम में कुछ भी नही रहता

प्रेम में पुरूष का नही रहता कुछ भी सब हो जाता है उस स्त्री का और वो स्त्री हो जाती है वहाँ के रह रहे पौधो, झरना, पेड़ से लटकते लत्तर का, अपने जुल्फ का, फूलों पर बैठे तितलियों का यहाँ तक कि खो जाती है उन तमाम ख्यालो में जो काल्पनिक परिवेश में बुना गया है वो स्त्री हो जाती है घुमंतू  वक़्त-बेवक्त कही ठहरकर कुछ ख़्वाब बुनकर फिर निकल पड़ती है किसी अन्य तलाश में और ये तलाश जब तक जारी रहती है तब तक उसे चैन या सुकून न मिल जाए और वैसे भी प्रेम  में स्त्री को कहाँ मिलता है चैन, सुकून, वो तो निरंतर गढ़ते रहती है सींचते रहती है ढलते रहती है अपने प्रेमी में खुद को अलग कर खुद को बना लेती है पुरूष । ©मिंटू/@tumharashahar

यूँ ही बैठे-बैठे

कोई जहर लाया है  कोई दवात लाया है तुही बता मेरे खुदा तू मेरी ज़िंदगी मे क्या बिसात लाया है  ? ©मिंटू/@tumharashahar

Tum

तुम मेरी साधारण सी कविता नही पढ़ते हो, अगर यही किसी पुस्तक में होती तो तुम भी वाह-वाह करते इसे तस्वीर बना कही सजाते । ©मिंटू/@ tumharashahar

बस यूं ही कुछ अधूरा सा

बस यूं ही कुछ अधूरा सा ................................. कौन सी गहराई की तलाश में है ? कही नही जी,  जहाँ कुछ नही वहाँ कुछ होना चाहिए ताकि लोगो को लगे कि व्यस्त है, कुछ कर रहा है वरना ताना-वाना में ज़िन्दगी तो गुजर- बसर हो ही रही है, अधपक्के ख्वाबो के बीच , मगर पता नही कब पकेगा ये ख़्वाब । बस यूं समझीये     धीमी आंच पर  पक रहे है , अब देख लीजिए इसी कहावत को "बूँद-बूँद से घड़ा भरता है"  अब अपना ज़िन्दगी का घड़ा कब भरेगा ये तो भगवान जाने बाकी सफर चलता रहेगा, कुछ पुराने लोगो और नए रिश्तों के साथ , कुछ उतार-चढ़ाव तो कुछ सीख को लेकर , बाकी हुनर तो है अपने पास अब इसे कोयले से हीरा बनाना है थोड़ा समय लगेगा मगर बन जाएगा ।