सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कभी बन न सका

भावनाओ में बह जाता हूँ लेकिन कभी नदी न हो सका, गुस्सा हो जाता हूं मगर कभी पत्थर न हो सका, टूट जाता हूँ मगर कभी काँच न हो सका, बिखर जाता हूं लेकिन कभी किसी के  राहों का फूल न हो सका, सिमट जाता हूँ मगर कभी पन्ना न हो सका , लिख पाता हूँ लेकिन कभी कलम न हो सका । ~~~~मिन्टू

मेरी राह

तुम चलती रही उस राह और मैं कब तेरी राह का राहगीर हो गया पता ही नही चला, तेरी बिखरती मुस्कान को समेटते रहा मगर कब रात हो गयी पता ही नही चला, चांदनी रात में तुम और खूबसूरत  लगने लगी तुम्हें देखते रहे रात के परहेदार और मैं कब तेरा काजल होता गया पता ही नही चला, तुम चलती रही उस राह और मैं कब तेरी राह का राहगीर हो गया पता ही नही चला । ~~~मिन्टू

शिकायतें

आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे एक दूसरे पर, गर दिल मे क्या है एक दूसरे के, ये जानने की कोशिश नही की कभी बिछड़ते गए समय के साथ-साथ, टूटते-बिखरते , हालात बिगड़ते, अपना अजीज खोया, बिलखते रहे, इंतज़ार करते रहे, और आज तुम फिर याद आ गए, और छलक आए आँसू इन आँखों से जिसमे तुम कभी ख़्वाब देखा करती थी ।

उड़ान

उड़ान देखने आया हुँ आसमान तक कि जमीन से, क्या ज़िन्दगी की उड़ान भी ऐसी ही है जैसे इस वायुयान की या फिर पक्षियों सी , क्या तुम बता सकते हो तकदीर के लेखक ? क्या तुम उड़ना सीखा सकते हो सफर के राहगीर ? या मैं भी वैसे ही वापस लौट जाऊँगा दाने चुंग-चुंग  कर या कोई इतिहास रच जाऊंगा लड़-लड़ कर, क्या तुम साथ दोगे मेरे जन्मदाता उड़ान भरने में मेरी या तुम भी वही छोड़ जाओगे जहाँ से मुझे उड़ान भरनी है ? ~~~मिन्टू

टूटते ख़्वाब

तुम्हारी तलाश में भटकता रहा राह गुजर बनकर, हर तकलीफ, हर दर्द से अंजान होकर, मिलो तक का सफर तय कर आया  पास तेरे, कई राते बीती है संग , कुछ ख्यालों के कुछ उम्मीदों के तो कुछ विश्वास के साथ, न जाने ये अल्फ़ाज़ भी आज दगा दे रहे है तुमसे मिलने के बाद हम तन्हा , अकेले से हो गए, क्यूँ ये वही प्यार है न जो तुम पहले किया करती थी ? क्यूँ आज ठोकर मार जला रही हो प्यार को इस जेठ की दोपहर की तरह, आज भी इतने तकलीफ देकर तुम्हे खुशियों से भेंट होती है न तो ठीक है मैं भी टूटकर बिखर जाऊँगा टूटे कांच के तरह, चूर चूर हो जाऊंगा , बिछ जाऊंगा तेरी राह में उस टूटे फूल की तरह, तब तो तुम्हे जाकर मुझपर विश्वास होगा न की मेरा प्यार भी आज वैसा ही है जो पहले हुआ करता था । बोलो तो कुछ.....

नदी जैसी तुम

जब कोई नदी जैसा मिलता है न,  मन करता  उसके साथ-साथ बहता जाऊ, बहता जाऊं जहाँ-जहाँ वो बहती है, टकराता जाऊ उन चट्टानों से भी, छूता जाऊ उस धरती को भी बस बहता जाऊ  उसके संग-संग । ~~मिन्टू Pic- अमित शाह(fb)

कड़ी मेहनत

नंगे पांव , पक्की सड़क, जेठ की कड़क धूप ज़िन्दगी भी कुछ इस तरह से  हो गयी है , तपती , झुलसती हुई । मगर इतना तो पता है ''जो तपेगा वो बनेगा, वही निखरेगा भी '' गर्म लोहा को जैसा रूप दे दो वो उसमें ढल जायेगा / ढल जाता भी है उसी तरह ज़िन्दगी गर्म हो रही है और  वो भी ढलेगी अपने नक्शा पर, अपने आकार में, अपने रंग में, अपने रूप में, निखरेगी संवरेगी एक दिन फिर से जानी जायगी उसी नाम से एक अलग पहचान के साथ । ~~~मिन्टू