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संदेश

उड़ान

उड़ान देखने आया हुँ आसमान तक कि जमीन से, क्या ज़िन्दगी की उड़ान भी ऐसी ही है जैसे इस वायुयान की या फिर पक्षियों सी , क्या तुम बता सकते हो तकदीर के लेखक ? क्या तुम उड़ना सीखा सकते हो सफर के राहगीर ? या मैं भी वैसे ही वापस लौट जाऊँगा दाने चुंग-चुंग  कर या कोई इतिहास रच जाऊंगा लड़-लड़ कर, क्या तुम साथ दोगे मेरे जन्मदाता उड़ान भरने में मेरी या तुम भी वही छोड़ जाओगे जहाँ से मुझे उड़ान भरनी है ? ~~~मिन्टू

टूटते ख़्वाब

तुम्हारी तलाश में भटकता रहा राह गुजर बनकर, हर तकलीफ, हर दर्द से अंजान होकर, मिलो तक का सफर तय कर आया  पास तेरे, कई राते बीती है संग , कुछ ख्यालों के कुछ उम्मीदों के तो कुछ विश्वास के साथ, न जाने ये अल्फ़ाज़ भी आज दगा दे रहे है तुमसे मिलने के बाद हम तन्हा , अकेले से हो गए, क्यूँ ये वही प्यार है न जो तुम पहले किया करती थी ? क्यूँ आज ठोकर मार जला रही हो प्यार को इस जेठ की दोपहर की तरह, आज भी इतने तकलीफ देकर तुम्हे खुशियों से भेंट होती है न तो ठीक है मैं भी टूटकर बिखर जाऊँगा टूटे कांच के तरह, चूर चूर हो जाऊंगा , बिछ जाऊंगा तेरी राह में उस टूटे फूल की तरह, तब तो तुम्हे जाकर मुझपर विश्वास होगा न की मेरा प्यार भी आज वैसा ही है जो पहले हुआ करता था । बोलो तो कुछ.....

नदी जैसी तुम

जब कोई नदी जैसा मिलता है न,  मन करता  उसके साथ-साथ बहता जाऊ, बहता जाऊं जहाँ-जहाँ वो बहती है, टकराता जाऊ उन चट्टानों से भी, छूता जाऊ उस धरती को भी बस बहता जाऊ  उसके संग-संग । ~~मिन्टू Pic- अमित शाह(fb)

कड़ी मेहनत

नंगे पांव , पक्की सड़क, जेठ की कड़क धूप ज़िन्दगी भी कुछ इस तरह से  हो गयी है , तपती , झुलसती हुई । मगर इतना तो पता है ''जो तपेगा वो बनेगा, वही निखरेगा भी '' गर्म लोहा को जैसा रूप दे दो वो उसमें ढल जायेगा / ढल जाता भी है उसी तरह ज़िन्दगी गर्म हो रही है और  वो भी ढलेगी अपने नक्शा पर, अपने आकार में, अपने रंग में, अपने रूप में, निखरेगी संवरेगी एक दिन फिर से जानी जायगी उसी नाम से एक अलग पहचान के साथ । ~~~मिन्टू

यारी

ये जो रंगत है, ये जो संगत है ये तो तुम्हारे(मुस्कान) से है, तुम(किस्मत) कितना ज़ोर लगा लो, ये जो मुस्कान है, तुम सिर्फ कुछ पल के लिए ही रोक सकते हो मगर जानते हो समय और वक़्त सबका है, मुस्कान तो रहेगा जबतक रहेगी ये रंगत ये संगत ये जो यारी है बरसो पुरानी है तुम्हरे बिगड़ने से कुछ नही होगा कुछ देर अलग कर सकते हो मगर हम तो आएंगे नए रूप, नए रंग में, उस समय वक़्त भी मेरा होगा और वार भी, मुस्कान से रहेगी ये रंगत ये संगत ~~~~मिन्टू

सोच- गली की

मैं निकला था गलियों में पहले जैसा दौर लाने को, मगर बदनामियों के जंजीर ने मेरे पैर जकड़ लिए, सोचा समझा दु उन्हें , हालाते-ए-मंजर शहर की मगर सोचें-ए-परिंदे उनके उड़ते चले गए, ऐसा नही की वो नासमझ है मगर वो नासमझी के शिकार होते चले गए । ~~मिन्टू

बिखरते उम्मीद

उम्मीदों की गांठ बाँधे, मंज़िल को चल दिये साधे, टूटता , बिखरता, तड़पता हुआ फरेब की गलियों से होता पहुंचा हुँ तुम्हारे पास, और तुम कहती हो तुम किसी काम से नही । तमाम उम्र, खुद को झोंक दिया इश्क़ की भट्टी में, घूमता रहा तेरे इर्द-गिर्द तितलियों की तरह, और तुम कहती हो किसी काम के नही । कभी जो तुम्हे अकेला छोड़ गए थे सब बस सहारा बना था मैं , अजनबी होकर भी अपना माना था तुम्हें और तुम कहती हो किसी काम के नही । ~~मिन्टू