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संदेश

शहर में गांव

ये गांव की दौलत आज शहरों में घुमक्कड़ी कर रही है लोग कहते है हमारा गांव मिट रहा है गांव के बचपन की दौलत समेटे हुए,  शहरों में उसको लुटाना कितना अच्छा होता है ना , जो मन मे दबाए इच्छा को आज निकलते देख रहा हूं जो शर्म से अंदर दफ़्न ख्वाइश है, उसे रोड पर उतरते देख रहा हूँ जो कभी गांव में खेला करता था वो ख़्वाब आज शहर में देख रहा हूँ तो ये तो अच्छा ही है ना, देखो न , ये मासूमियत को क्या पता कि ये बैंगलोर की सड़कों पर गांव के रंग बिखेर रहा है, कितनों की यादें ताज़ा कर रहा है सबसे अलग, मग्न होकर निकल रहा है ये तो अच्छा है ना गांव की दौलत शहरों में घुम्मकड़ी कर रही है। ~~~मिन्टू Pic- sarita sail

तेरी ओर

न जाने क्यूँ न चाहते हुए भी खिंचा चला आ रहा तेरी ओर, अपनी मंज़िल से भटकता हुआ, ठोकर खाता हुआ, कुछ अल्फ़ाज़ निकालते हुए, तो कुछ रचना करते कविताओं की जो अक्सर तेरे होने का सवाल छोड़ जाता है । ~~मिन्टू

माँ प्रेम 5

-तुम छोड़ गई माँ उस आँगन में,  जिसे  सजाया था, जिसे सींचा था अपने कर्मो से, अपने बलिदान से, अपने अश्को से, और कह गयी थी मैं न रहूं तो जीना सीख लेना वर्तमान के हालतों में कुछ सीख लेना हुनर वर्तमान के हालातों में

माँ प्रेम 4

आज भी उस बंधन में बंधा हूँ माँ मोह के बंधन में जो तुमसे है जो मेरे इश्क़ से है टूटता भी हूँ उन यादों के बीच जुड़ता भी हूँ तुम्हरे उम्मीदों के साथ देखो न माँ आज भी बंधा हूँ मैं उस बंधन में मोह के बंधन में ।

वेक उप(up)

मैं उठता हूँ तेरे ख्यालो से तेरे सीख से तेरे चाय से मैं उठता हूँ तेरे संस्कार से तेरे आवाज़ से तेरे प्यार से मैं उठता हूँ अपने माँ से उसके त्याग से उसके बलिदान से

देश भक्ति

धरती के रंग में रंग गए  जो , वो सिंह, सुख और राज थे । तीनो ने जो कर दिखाया लाज बचाई माँ की,  हँसी खुशी फांसी चढ़ गए जो  वो धरती के  लाल थे । रंग गए जो भक्ति के रंग में  सिंह , सुख और राज थे।

प्यासा हूँ

इश्क़ का तो पता नही मगर इश्क़ की तलाश में भटकता राही हूँ, हर किसी से मिल जाता हूँ इश्क़ हूँ फरेबी नहीं, राही इश्क़ से जानिए या इश्क़ से बस प्यासा हूँ प्यासा हूँ प्यास हूँ