सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

फिर तेरी याद

फिर तेरी याद   किचन में, मैं और तुम्हारी याद सफर कर रही थी सफर करते करते पहुंच गए थे किसी सड़क किनारे जहां किसी ढाबा पर  गाने की धुन सुनाई दी "देखा है पहली बार साजन मूवी की" फिर क्या था हम दोनो एक दूसरे को देखते हुए हंस पड़े और निकल पड़े अपने अपने रास्ते रास्तों का क्या है वो कभी खत्म कहां होती है एक बार शुरू हो जाने के बाद चलती रहती है  बस एक ही धुन और याद थे साथ बाकी सब फिजूल की बातें बातें वो भी थी जो बेवजह रही जितने गड्ढे में छुपाए थे सब एक एक करके बाहर निकलती रही और मेरे कदम पड़ते रहे उन गड्ढे में एक बार फिर मै फंस गए था  तुम्हारे बनाए जाल में... @ram_chourasia_  Pic credit @anuradha_poddar
हाल की पोस्ट

शब्द चुनकर दर्ज किया

 शब्द जो बन चुके है अब किसी के निशान ले चलो मुझे वहां जहां के दीवारों पर  अंकित है मेरा नाम दिखाओ मुझे वो जगह  जहां पर गाढ़ रखा था तुमने पौधा जिसे तुम रोज सींचते थे सुना है मैने, वो विशाल पेड़ हो चुका हैं अब उस पेड़ पर  प्रेमी जोड़ी के नाम दर्ज होते है..! @ram_chourasia_

पिता

  पिता वो लहजा है जिससे ढलता, गढ़ता  परिवार है लिखने की शक्ति, जीने का सबक बतियाने का ढंग और विचार हैं सारी ऋणात्कमता एक तरफ पिता की सहानुभूति एक तरफ जिंदगी को पढ़ने, सीखने और लड़ने का सबक एक तरफ, तो एक तरफ विश्वास  स्थापित करने का जरिया, न जाने कितने ही सीढियां चढ़े लड़खड़ाते हुए फिर , उनका हौसला एक तरफ, एक तरफ तंज समाज का तो एक तरफ प्यार पिता का, एक तरफ जवानी तो एक तरफ बुढ़ापे की लाठी, सारे मसले एक तरफ तो पिता का ज्ञान एक तरफ एक तरफ  अकेले खड़ा रहने की शक्ति तो एक तरफ सूखे आंखों में पानी । Insta -(ram_chourasia) पिता by hare ram chourasia

अहंकार

हम पढें इसलिए कि विकास हो ,तरक्की हो संस्कार सीखें, लोगो को जान सकें उन्हें समझ सकें  परन्तु हम  सब इन चीज़ों से असल मायने में उतना ही दूर चले गये जितना पास जाना था । झोपड़ी में पढ़ने के वजाए पढ़े आधुनिक खेल मैदान के स्कूल में  घर छोड़ा, पढ़ने और नौकरी की तलाश में मिट्टी के मकान छोड़ गए पक्के मकानों में रहने लगे रिश्ते बनाने की जगह हम पैसे बना रहे  पैसे तो बन रहें मगर  रिश्ते, रिश्तेदार सब दूर हो रहें प्रेम की वजाये भीतर पनप रहा है ईर्ष्या, जलन.... आखिर क्यों ? किस तरफ जा रहा है ये जीवन, ये काल प्रेमी बिछड़ रहे सिर्फ इसलिए कि  वो योग्य नही । योग्य , प्रेम के लिए नही अपितु घर- संसार चलाने के लिए  उन्हें लगता है आज खाली हाथ है तो कल भी रहेगा  वैसे ये बात तो सत्य है खाली हाथ तो रहेंगे लेकिन  किसी झूठी आस से तो अच्छा रहेगा  किसी की उम्मीदों को तार-तार तो नही करेगा .... खैर  जीवन  एक  काल  खंड है जहाँ  अतीत के संग- संग कर्म  अपना दम-खम दिखाती है । @tumharashahar 

आखिर ऐसा क्यों ?

 कभी-कभी लोगों पर हँसी भी आती हैं और कभी-कभी बुरा भी लगता हैं।  हँसी इसलिए क्यों कि वो आपके साथ रहकर इतने बेवाकी से सफाई देते चलते रहते है कि वो अच्छे हैं, अपने या आपके साथ अच्छा करना चाहते हैं लेकिन इसके पीछे उलट हो जाता हैं। बुरा इसलिए क्यों कि वो साथ होकर, दिखावा करके भी साथ नही होते। "वो ऐसे सकारात्मक के जगह नकारात्मक हो जाते हैं जैसे धूप में घनघोर काले बादल"। वो बातें तो इतनी बड़ी-बड़ी करेंगे लेकिन जब बारी आएगी तो सबसे पहले पीछे कदम हटा लेंगे।  अगर कोई इंसान तनाव में या तनाव में आकर कोई गलत कदम उठा लेता हैं तो उसके बाद कि जो परिस्थिति उत्पन्न होती है ,जो भी बातें अखबार में या समाचार चैनल पर देखते है तो  "कहते है उन्हें ऐसा नही करना चाहिए था, ये कदम उठाने से पहले बात करनी चाहिए थी, हमलोग किसलिए है ? उसने गलत किया, उसका परिवार का क्या होगा... न जाने ऐसे कितने सवाल कर बैठते है , न जाने कितने सवाल गोली की तरह दाग देते है।" लेकिन जब तनावग्रस्त व्यक्ति ,मित्र,परिवार का कोई सदस्य यही बात उसके सामने रखता हैं या अपने आप को उस जगह से उभारने की कोशिश करता है तो ऐस कितने लोग

खोत बा बचपन

 खोत बा बचपन ----------------------- "एक समय रहल जब हमनी के शिकार करत रहीं अब हमनी के शिकार होत बा ।" हम बात कर रहल बानी बचपन से जुड़ल वो सब घटना के जवन एक फूल, पौधन के खूबसूरती और विशाल रूप दिहलस ।  हम बात करम मजबूत नींव से तैयार होत मकान के।  हम बात करम आँगन में चहक़त चिड़ैया ,तुलसी के । एक समय रहल जहां आधुनिकता से दूर-दूर तक नाता न रहल, सब भागत रहें , जुड़ल न चाहत रहे अब समय अइसन आ गईल बा कि एकरा बिना काम ठप पड़ जाला । बचपन के रूप खरा सोना हs। बचपन मे मिलल प्यार, स्नेह, दुलार, मार  ई सब अनमोल खज़ाना है  जवन कबहुँ पूरा न क़ईल जा सकेला एक समय बीत जइला पर । बचपन पर जब से आधुनिकता , दिखावा आउर दबाब के दीमक लागल बा का कहीं हम , बचपन एकदम बिखर गईल बा। जहां एक तरफ खुशियां चहक़त रहें, प्रेम मिलत रहे संस्कृति के साथ-साथ  आशीर्वाद मिलत रहें और प्रकृति पनपत रहें ऊहे अब धीरे-धीरे सब खत्म हो रहल बा। इहवाँ दुगो बात करम  एक त आधुकनिकता के हवा में बचपन के खेल हवा में उड़ गईल  आउर दूसरा कोरोना काल मे बचन के खुशियां दबाब में कही कौनो कोना में दब गईल । जहाँ ई पूस में , कार्तिक माह में कंचा, लट्टू, ति

जिंदगी

 सर पर बोझ डुबोकर ख़्वाब फटे एड़ियां,घिसकर चप्पल  लालन-पालन है ज़िन्दगी  बुन कर, सहेज कर तारीफ एक गलती पर  बदनाम होना है ज़िन्दगी थाम कर उंगली बांध कर कलाई विदा कर बिटिया  आँसू बहाना है ज़िन्दगी  इकट्ठा कर मेहनत को पोटली में बांध घर से धक्के खाना है ज़िन्दगी  भटकते राहों में ठोकर खाकर  बिना बेटे/बेटियों के हाथों अग्नि से प्यार होना है ज़िन्दगी । @tumharashahar